रिपोर्ट- विशाल झा
गाजियाबाद. उत्तर प्रदेश का द्वार कहे जाने वाले गाजियाबाद में एक ऐसा गांव है जो अपनी हरियाली, खान- पान या अपने रहन-सहन के लिए नहीं बल्कि अपनी पहलवानी के कारण मशहूर है. News 18 Local आपके लिए लाया है पहलवानों का गांव बम्हैटा की कहानी. गाजियाबाद के वार्ड 42 स्थित शाहपुर- बम्हैटा के बारे में कहा जाता है की यहां हर घर में पहलवान है. इस गांव में युवाओं की एक बड़ी आबादी का झुकाव कुश्ती के प्रति है. गांव के बड़े- बुजुर्गो द्वारा कुश्ती के दांव नौजवानों को सिखाया जाता है. गांव में कई सारे पुराने अखाड़े मौजूद है. जिनमे बजरंगबली की प्रतिमा रखी हुई है. दमखम के इस खेल में पहलवान बजरंगबली से जोरदार ताकत का वरदान मांगते हुए आराधना करते है. गांव का सबसे पुराना अखाडा है जगदीश खलीफा अखाडा. जहां रोज दोपहर- शाम के समय कई युवा कुश्ती के गुर सीखते है.
जगदीश खलीफा अखाड़ा से सिखी कुश्ती की बारिकियां
News 18 Local ने बात की युवा पहलवान पीके पहलवान से. पीके ने बताया की उन्होंने भी अपनी कुश्ती की बारिकियां जगदीश खलीफा अखाड़े से ही सीखी है. गांव का माहौल ही ऐसा है कि अपने आप कुश्ती के प्रति झुकाव हो जाता है. इस गांव की मिट्टी में ही कुश्ती बसती है. सबसे मुश्किल दांव का सवाल पूछने पर उन्होंने बताया की बैठकर जो पटकी देनी होती है, क्योंकि उसके नीचे दूसरे पहलवान का दबने का खतरा होता है. ऐसे में एक बार आप दब गए तो वापिसी करना मुश्किल हो जाता है.
इसी अखाड़े के अन्य पहलवान भोला पहलवान का कहना है कि यहां बच्चा पैदा बाद में होता है, लंगोट पहले पहनता है. भोला ने बताया की गांव में देसी कुश्ती होती है. हम लोग खाने पीने में ज्यादातर घी -दूध, ड्राईफ्रूट इनका ही इस्तेमाल करते है. गांव में ज्यादातर युवा स्पोर्ट्स आउटफिट पहनना ही पसंद करते है. किसी भी सामान्य गांव की तरह ही यहां पर भी कृषि रोजगार का एक बड़ा साधन है.
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