गाजीपुर हिंसा के बाद
निषाद पार्टी एक बार फिर चर्चा में है. इससे पहले यह पार्टी उस वक्त सुर्खियों में थी जब उसने मार्च 2018 में समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर
बीजेपी से
योगी आदित्यनाथ के गढ़
गोरखपुर लोकसभा का उप चुनाव जीता था. निषादों को आरक्षण की मांग को लेकर 2015 से ही इस पार्टी के नेतृत्व में कई आंदोलन हुए हैं. इसके एजेंडे में 'वोट के बदले नोट लेने का मतदाता का अधिकार' भी शामिल है. आईए जानते हैं किस मकसद से निषाद पार्टी खड़ी हुई और इसका एजेंडा क्या है? (ये भी पढ़ें:
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संजय निषाद के दल का शॉर्ट नाम है निषाद पार्टी है. इसका पूरा नाम है 'निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल'. यह अंग्रेजी में बनता है NISHAD.यानी एक साथ दो निशाने साधे गए हैं. निषादों में 15-16 उपजातियां शामिल हैं. जिसमें केवट, मल्लाह, बिन्द, कश्यप, धीमर, मांझी, कहार, राजभर, भर, प्रजापति, कुम्हार, मछुआ, तुरैहा, गौड़, बाथम, मझवार, किसान, लोध, महार, खरवार, गोडीया, रैकवार, सोरहीया, खुलवट, चाई, कोली, भोई, कीर, तोमर, भील, जलक्षत्री, धुरीया शामिल हैं.
निषाद पार्टी (file photo)
इसकी स्थापना 2016 में की गई और 2017 में इसने यूपी के 72 विधानसभा क्षेत्रों में अपने प्रत्याशी उतार दिए. पहले ही चुनाव में पार्टी ने एक विधायक के साथ खाता खोल दिया. इस समय पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद गोरखपुर से सांसद हैं. उन्होंने समाजवादी पार्टी, बसपा और पीस पार्टी के सहयोग से यह चुनाव जीता था.
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गोरखपुर जिले के ग्राम जंगल बब्बन, तहसील कैम्पियरगंज में 7 जून 1965 को जन्मे डॉ. संजय कुमार के पिता विजय कुमार निषाद सुबेदार मेजर थे. संजय ने सन् 1988 में कानपुर विश्वविद्यालय से बीएमईएच की उपाधि प्राप्त कर चिकित्सा प्रैक्टिस शुरू की. लेकिन उनका मन सियासत में लगा. संजय अपने पिछड़े हुए समाज में यह बता रहे हैं राजनीति ही हर ताले की चाबी है.
निषाद पार्टी में महिलाएं भी कम नहीं (file photo)
आरएसएस और बामसेफ की तर्ज पर संगठन
निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल तो राजनीतिक संगठन हो गया. इसके साथ ही आरएसएस और बामसेफ की तरह पार्टी के लिए जमीनी स्तर पर काम करने वाला संगठन भी संजय निषाद ने खड़ा किया. इसका नाम है राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद (RNEP).
पार्टी की वेबसाइट पर संजय निषाद की ओर से लिखा गया है, 'भारतीय राजनीति में सपा, बसपा, भाजपा तथा कांग्रेस सहित सभी पार्टियां वंचित समाज के विकास की बातकर, समाज के नेताओं का चेहरा दिखाकर वोट लेती हैं. सरकार बनाती हैं और सरकार बनते ही सभी वंचित, अति पिछड़े एवं विशेषकर मछुआ समाज का हक हिस्सा अधिकार देने के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल देती हैं.'
ऐसा है पार्टी का विजन
-वोट के बदले नोट लेने का मतदाता का अधिकार (वोटरशिप): पार्टी का मानना है कि प्राकृतिक सम्पदाएं जैसे नदियों, पहाड़, पठार, रेगिस्तान, जंगल, कोयला, बालू, मोरंग, सोना-चांदी, लोहा, हीरा-मोती, अभ्रक, यूरेनियम आदि से प्राप्त राष्ट्रीय आय में ते प्रत्येक मतदाता की आर्थिक हिस्सेदारी होनी चाहिए.
-जब मात्र 2 ट्रान्जेक्शन 'कर' (टैक्स) लगा करके देश के विकास के लिए 18 लाख 20 हजार करोड़ रूपये जुटाए जा सकते हैं तो फिर 64 प्रकार के गैर जरूरी कर (टैक्स) लगाकर देश के हमारे लोगों की मेहनत की कमाई का लगभग 50 फीसदी हिस्सा लूटने का षडयंत्र क्यों ?
निषाद एकता परिषद जमीनी स्तर पर पार्टी को मजबूत कर रहा है
-खेती योग्य जमीन मुट्ठीभर उद्योगपतियों के झोली में डाल रही है. उन्हें आत्महत्या करने पर मजबूर किया जा रहा है देश द्रोही, किसान द्रोही नीति बन्द हो.
-रोजगार गारन्टी योजना एक धोखाधड़ी है. सबको बिना मांगे काम मिलना चाहिए.
-पूंजीपतियों ने चुनाव को नौटंकी और तमाशा बनाकर रखा है. भारत मे चुनाव नहीं, चुनाव के नाम पर नौटंकी होती है. चुनाव पारदर्शी होना चाहिए.
वो अखिलेश यादव का शासन था जब अखिलेश निषाद मारा गया...!
सात जून 2015 को समाजवादी पार्टी के शासन में आरक्षण की मांग को लेकर निषाद समाज ने गोरखपुर में बड़ा आंदोलन किया था. रेलवे ट्रैक जाम कर दिया था. हजारों की संख्या में आए निषाद समाज की महिलाएं व पुरुष अलग-अगल जत्थों में ट्रैक पर एकत्रित होने लगे थे. पुलिस जाम हटाने के लिए हल्का बल का प्रयास किया तो इतने में मामला बिगड़ गया और पथराव, आगजनी शुरू हो गई.
तत्कालीन एसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज समेत पुलिस कर्मी जख्मी हो गए थे. पुलिस फायरिंग में अखिलेश निषाद नामक आंदोलनकारी की मौत हो गई थी. वो उसी इटावा का रहने वाला था जहां के मूल निवासी तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव हैं. बाद में इसी निषाद पार्टी ने अपना हित साधने के लिए समाजवादी पार्टी से ही हाथ मिला लिया.
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Tags: BJP, Samajwadi party, Uttar pradesh news, Yogi adityanath
FIRST PUBLISHED : December 31, 2018, 12:32 IST