उत्तर प्रदेश की हाईप्रोफाइल सीटों में गोरखपुर लोकसभा सीट की गिनती होती है. यहां हुए उपचुनाव में सपा के प्रवीण निषाद ने बीजेपी के उपेंद्र शुक्ला को हराकर पहली बार जीत दर्ज की थी. योगी के गढ़ में हार से सबक लेते हुए बीजेपी ने पूर्व मंत्री जमुना निषाद के बेटे और लोहिया वाहिनी के राष्ट्रीय सचिव अमरेन्द्र निषाद को पार्टी की सदस्यता दिलाई. अमरेन्द्र निषाद के भाजपा में शामिल होने के बाद गोरखपुर का राजनीतिक समीकरण बदल गया है.
सूत्रों के मुताबिक बीजेपी में आने के बाद संभव है पार्टी उन्हें गोरखपुर सीट से उम्मीदवार बना सकती है. बता दें कि अमरेन्द्र निषाद के पिता और पूर्व मंत्री जमुना निषाद ने साल 1999 के लोकसभा चुनाव में सपा के टिकट पर तब इस सीट से सांसद रहे योगी आदित्यनाथ को कड़ी टक्कर दी थी. वे महज 7 हजार वोट से हार गए थे.
साल 2019 के चुनाव में योगी को अपनी परंपरागत सीट वापस लानी है. योगी को आशंका है कि निषाद के मुकाबले गैर-निषाद प्रत्याशी उतारने पर 3.5 लाख निषाद वोटर उनसे नाराज हो सकता है, इसलिए उन्होंने सपा के प्रवीण निषाद के मुकाबले किसी 'निषाद' को बीजेपी का प्रत्याशी बनाया जा सकता है.
वहीं अमरेन्द्र निषाद ने निषाद पार्टी पर आरोप लगाते हुए कहा कि निजी स्वार्थों के चलते पूर्वांचल में पार्टी ने निषादों को गुमराह करने का काम किया है. अमरेन्द्र कहते हैं कि वे निर्दलीय चुनाव नहीं लड़ेंगे और लेकिन जिन लोगों द्वारा उनकी उपेक्षा की जा रही है और उनके समाज के लोगों को बरगलाया जा रहा है, उन्हें जल्द ही जवाब देंगे.
समाजवादी पार्टी पर अनदेखी का आरोप लगाने वाले अमरेन्द्र निषाद ने कहा कि पढ़ाई बीच में छोड़कर समाज और अपने पिता के सपनों को साकार करने किए हम राजनीति में आए हैं. अमरेन्द्र ने कहा कि उनके दिवंगत पिता जमुना निषाद ने सपा और उनके समाज के लोगों के लिए बड़ा बलिदान दिया है. उनके योगदान को वे किसी कीमत पर बेकार नहीं जाने देंगे.
उन्होंने कहा सीएम योगी से आशीर्वाद मिलने के बाद जनता की सेवा करने के लिए निरंतर प्रयास करूंगा. अमरेन्द्र के पिता जमुना निषाद बीएसपी के टिकट पर दोबारा विधायक और फिर मंत्री बने. एक दुर्घटना में मौत के बाद उनकी पत्नी राजमती एसपी से विधायक चुनी गई थीं. 2017 में जमुना निषाद के बेटे अमरेंद्र पिपराइच से चुनाव लड़े थे, लेकिन जीत नहीं पाए.
निषाद वोटरों की अहम भूमिका
गोरखपुर के जातीय गणित को यदि देखा जाए तो यहां 19.5 लाख वोटरों में से 3.5 लाख वोटर निषाद समुदाय के हैं. इस संसदीय क्षेत्र में निषाद जाति के सबसे अधिक मतदाता हैं. वहीं यादव और दलित मतदाता दो-दो लाख हैं. ब्राह्मण वोटर करीब डेढ़ लाख हैं. यदि चुनाव में निषाद, यादव, मुसलमान और दलित एकजुट हो जाते हैं तो चुनाव परिणाम चौंका भी सकते हैं.