रिपोर्ट : अभिषेक कुमार सिंह
गोरखपुर: ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती…’ यह गाना तो आपने सुना होगा. लेकिन गोरखपुर की नालियों में बहते कीचड़ भी सोना उगलते हैं, यह सुनकर कोई भी हैरेत में पड़ जाएगा. वैसे, बात यह पूरी तरह सच है. जी हां, आज हम आपको बताएंगे कि गोरखपुर में एक ऐसी जगह है, जहां वास्तव में कचड़े में सोना बहता है. इतना ही नहीं, हर रोज नालियों में बहनेवाले कचड़े से सोना तलाशनेवालों की भीड़ यहां जमा होती है. प्रतिदिन यहां से मिले सोने को बेचकर 100 से अधिक परिवार अपनी आजीविका चला रहे हैं.
यह जगह गोरखपुर के घंटाघर स्थित सोनारपट्टी है. बता दें कि यहां पर कारीगरी के वक्त सोने को छोटा-मोटा कण अक्सर छिटककर गायब हो जाता है. साथ ही काम करने के दौरान औजार आदि में भी छोटे कण चिपक जाते हैं. बाद में औजार की धुलाई के दौरान सोना एसिड में मिल जाते हैं. कारीगर भी इन कणों को वापस खोजने पर कभी ध्यान नहीं देते और एसिड फेंक देते हैं. यह एसिड बहकर नाली में चला जाता है. यह इतना छोटा होता है कि इसे दोबारा खोजना मुश्किल ही नहीं, बल्कि सामान्य लोगों के लिए नामुमकिन होता है. ऐसे में नीची जाति के कई लोग रोज सुबह इन दुकानों के बाहर से कचड़ा इकट्ठा करते हैं. जिसे आम भाषा में निहारी कहा जाता है.
ये लोग इस कचड़े को एक तसले में रखकर नाली के ही गंदे पानी से इसे चालते हैं. वे इस कचड़े को घंटों चालते रहते हैं और इसमें से खराब कचड़े को ऊपर से निकालते हैं. काफी मेहनत के बाद आखिरी में बचा हुआ अवशेष इक्कठा कर इसे तेजाब और पारे से गला दिया जाता है. तब जाकर इस कचड़े से नाममात्र का सोना निकलता है. ये लोग फिर इस सोने को सुनार के पास बेच देते हैं और यह पैसे ही उनकी आमदनी का जरिया है.
News18 Local ने जब इस कचड़े से निकलने वाले सोने की पूरी पड़ताल की तो पता चला कि यह पेशा खासकर नागपुर और झांसी आदि जगहों से आए बंजारों का है. लेकिन एक से दो घंटे की मेहनत में दो-चार सौ रुपए की कमाई देखकर इन दिनों यहां की नीची जाति के लोग भी इस काम में उतर आए हैं. जब निहारी करने वाले इन लोगों से बातचीत की गई तो पता चला कि शहर के सैकड़ों लोग यह काम करते हैं. खास बात यह है कि इस काम में ज्यादातर महिलाएं ही शामिल हैं. इतना ही नहीं इनमें से कई महिलाएं तो इस काम में ही अपनी पूरी जिंदगी भी बिता चुकी हैं.
बीते करीब 45 साल से निहारी का काम करने वालों के मुताबिक, इस काम में ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जो शमशान घाट स्थित नदी में गोता लगाकर सोना निकालते हैं. ये लोग बताते हैं कि दाह संस्कार के दौरान ज्यादातर महिलाओं के शव से जेवरात नहीं निकाले जाते हैं. ऐसे में दाह संस्कार के बाद जब नदी में इनकी अस्थी विसर्जन होती है तो उसमें जेवरात आदि भी रहते हैं. अस्थियों की राख तो पानी में डालते ही बह जाती है. लेकिन सोने के जेवरात पानी में डूब जाते हैं. बाद में पानी में निहारी करने वाले लोग काफी देर-देर तक नदी में डुबकी लागकर सोना निकालते हैं.
40 साल से इस काम लगी रजिया बताती हैं, ‘मेरे पति दिव्यांग हैं. परिवार में और कोई कमानेवाला नहीं है. इसी काम के जरिए रोज दो-चार सौ रुपए की आमदनी हो जाती है. इसी से परिवार का खर्चा चलता है. जबकि, गोपाल बताते हैं कि वे यह काम 15 साल से कर रहे हैं. तीन से चार घंटे की मेहनत के बाद अच्छी कमाई हो जाती है. चूंकि गंदा काम है, हर कोई कर नहींसकता. इसलिए ये काम सभी लोग नहीं करते हैं.
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