यूपी में 'गिद्धों' के संरक्षण की तैयारी में योगी सरकार, बनाया ये प्लान
News18 Uttar Pradesh Updated: November 29, 2019, 4:20 PM IST

यूपी में 'गिद्धों' के संरक्षण की तैयारी में योगी सरकार (file photo)
दरअसल कुछ महीने पहले विलुप्त हो रहे गिद्धों का सर्वे करने के लिए बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के वल्चर कंजर्वेशन पंचकूला शाखा के पक्षी विशेषज्ञ महराजगंज के सोहगीबरवा सेंक्चुरी में आये थे.
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गोरखपुर. विलुप्ति के कगार पर पहुंचे गिद्धों (Vultures) के संरक्षण और उनकी संख्या बढ़ाने के लिए योगी सरकार (Yogi Government) गोरखपुर वन प्रभाग में एक "जटायु संरक्षण और प्रजनन केन्द्र" की स्थापना करने जा रही है. महराजगंज जिले के फरेंदा तहसील के मधवलिया रेंज में पांच हेक्टेयर में यह केन्द्र स्थापित किया जायेगा. यह प्रजनन केंद्र हरियाणा के पिंजौर में स्थापित देश के पहले जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र की तर्ज पर विकसित किया जाएगा. इसके लिए महराजगंज की तहसील फरेंदा के भारी-वैसी गांव का चयन किया गया है. इसकी स्थापना वन्यजीव अनुसंधान संगठन और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी साझा तौर पर करेंगे.
डीपीआर तैयार
बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) ने इस केंद्र की डीपीआर तैयार की है. कैंपा योजना के तहत धन की व्यवस्था के लिए डीपीआर भेज दी गई है. बता दें कि महाराजगंज वन प्रभाग के मधवलिया रेंज में अगस्त माह में 100 से अधिक गिद्ध देखे गए थे. प्रदेश सरकार की ओर से स्थापित मधवलिया गो-सदन के पास भी यह झुंड दिखा था. गो-सदन में निर्वासित पशु रखे जाते हैं, जो वृद्ध होने के कारण जल्दी ही मर जाते हैं. मृत पशुओं के मिलने के कारण यहां पर गिद्ध दिखे थे. इसलिए भारी-वैसी गांव का चयन किया गया.
गिद्धों को अपशकुन कतई न मानेंदरअसल कुछ महीने पहले विलुप्त हो रहे गिद्धों का सर्वे करने के लिए बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के वल्चर कंजर्वेशन पंचकूला शाखा के पक्षी विशेषज्ञ महराजगंज के सोहगीबरवा सेंक्चुरी में आये थे. कई रेंजों का भ्रमण करने के बाद उन्हें निचलौल रेंज के मधवलिया गो सदन के पास गिद्ध मिले. एक साथ इतने गिद्ध दिखने को टीम के सदस्यों ने पर्यावरण के लिए सुखद संकेत माना था. तब टीम ने आसपास के लोगों को जागरूक भी किया कि वे गिद्धों को अपशकुन कतई न मानें. ये नेचर क्लीनर हैं. कई देशों में इन्हें गॉड आफ मैसेंजर माना जाता है. इनके संरक्षण से पर्यावरण का संरक्षण होगा.
गिद्धों की संख्या में आई 99 प्रतिशत की कमी
पर्यावरण विद् कैशाल पान्डेय का कहना है कि 20 वर्षों में गिद्धों की संख्या में 99 प्रतिशत की कमी आई है. इसका मुख्य कारण पशुओं में डाइक्लोफिनेक दवा है. पशुओं के मरने के बाद भी इस दवा की मौजूदगी उसके शरीर में रहती है और गिद्ध जब उसे खाते हैं तो उनका जीवन संकट में पड़ जाता है. जीव वैज्ञानिकों के मुताबिक गिद्ध बीमारियों से संक्रमित मृत जानवरों को खाते हैं. जिससे मृत जानवरों से उत्पन्न होने वाले खतरनाक रोगों से लोगों को बचाते हैं. इसलिए जरूरी है कि मवेशियों के इलाज में डाइक्लोफेनिक दवाओं का कतई प्रयोग न किया जाए.यह दवा प्रतिबंधित है. इसी दवा के चलते तेजी से गिद्धों की संख्या घट गई है. अब इन दवाओं के रोक के बाद गिद्ध दिखाई देने लगे हैं, लिहाजा इन्हें बचाने की जरूरत है. साल 2013-14 की गणना के अनुसार 13 जिलों में करीब 900 गिद्ध पाए गए थे.
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डीपीआर तैयार
बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) ने इस केंद्र की डीपीआर तैयार की है. कैंपा योजना के तहत धन की व्यवस्था के लिए डीपीआर भेज दी गई है. बता दें कि महाराजगंज वन प्रभाग के मधवलिया रेंज में अगस्त माह में 100 से अधिक गिद्ध देखे गए थे. प्रदेश सरकार की ओर से स्थापित मधवलिया गो-सदन के पास भी यह झुंड दिखा था. गो-सदन में निर्वासित पशु रखे जाते हैं, जो वृद्ध होने के कारण जल्दी ही मर जाते हैं. मृत पशुओं के मिलने के कारण यहां पर गिद्ध दिखे थे. इसलिए भारी-वैसी गांव का चयन किया गया.
गिद्धों को अपशकुन कतई न मानेंदरअसल कुछ महीने पहले विलुप्त हो रहे गिद्धों का सर्वे करने के लिए बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के वल्चर कंजर्वेशन पंचकूला शाखा के पक्षी विशेषज्ञ महराजगंज के सोहगीबरवा सेंक्चुरी में आये थे. कई रेंजों का भ्रमण करने के बाद उन्हें निचलौल रेंज के मधवलिया गो सदन के पास गिद्ध मिले. एक साथ इतने गिद्ध दिखने को टीम के सदस्यों ने पर्यावरण के लिए सुखद संकेत माना था. तब टीम ने आसपास के लोगों को जागरूक भी किया कि वे गिद्धों को अपशकुन कतई न मानें. ये नेचर क्लीनर हैं. कई देशों में इन्हें गॉड आफ मैसेंजर माना जाता है. इनके संरक्षण से पर्यावरण का संरक्षण होगा.
गिद्धों की संख्या में आई 99 प्रतिशत की कमी
पर्यावरण विद् कैशाल पान्डेय का कहना है कि 20 वर्षों में गिद्धों की संख्या में 99 प्रतिशत की कमी आई है. इसका मुख्य कारण पशुओं में डाइक्लोफिनेक दवा है. पशुओं के मरने के बाद भी इस दवा की मौजूदगी उसके शरीर में रहती है और गिद्ध जब उसे खाते हैं तो उनका जीवन संकट में पड़ जाता है. जीव वैज्ञानिकों के मुताबिक गिद्ध बीमारियों से संक्रमित मृत जानवरों को खाते हैं. जिससे मृत जानवरों से उत्पन्न होने वाले खतरनाक रोगों से लोगों को बचाते हैं. इसलिए जरूरी है कि मवेशियों के इलाज में डाइक्लोफेनिक दवाओं का कतई प्रयोग न किया जाए.
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First published: November 29, 2019, 4:20 PM IST
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