फुटबॉल खेलने वाले खिलाड़ी और बीच में कोच.
रिपोर्ट: आदित्य कुमार
नोएडा. 4 साल में जब फुटबॉल का वर्ल्ड कप आता है, तो चारों तरफ इसका खुमार नजर आता है. ऑफिस के डेस्क और सोशल मीडिया पर सब जगह लोग फुटबॉल मैच की बात करते हैं. धरातल पर सच्चाई कुछ और ही है. नोएडा शहर में 300 बच्चे नोएडा अथॉरिटी द्वारा विकसित स्टेडियम में फुटबॉल सीखते हैं लेकिन वहां की स्थिति, किन परिस्थितियों में वहां बच्चे प्रैक्टिस करते हैं, चलिए हम आपको बताते हैं.
मूलभूत चीजों की कमी के बीच करते हैं प्रैक्टिस
वरिंदम मुखर्जी अभी आठवीं क्लास में पढ़ते हैं. वह तीन साल से नोएडा में फुटबॉल सीख रहे हैं. वह बताते हैं कि जब फीफा विश्वकप आता है, तभी लोग फुटबॉल की सुध लेते हैं, वैसे कोई भी नहीं पूछता. नोएडा सिटी में स्टेडियम के अलावा कोई भी ऐसी जगह नहीं है, जहां लोग फुटबॉल खेल सकें या प्रैक्टिस कर सकें. ऐसे में कैसे लोग नेशनल खेलें या इंटरनेशनल का सपना देखें. इन सबके बावजूद नोएडा से लोग अच्छे स्तर पर खेलने गए हैं.
ग्राउंड है उबड़ खाबड़, गिरने का रहता है डर
फुटबॉल प्लेयर अनुष्का दत्ता बताती हैं कि फुटबॉल खेलने के लिए हमारे घर में लोग खूब सपोर्ट करते हैं. मैं बचपन से ही फुटबॉल खेल रही हूं. नोएडा स्टेडियम ही एक जगह है, जहां थोड़ी व्यवस्था है खेलने की, नहीं तो नोएडा में कहीं और नहीं है कोई जगह. यहां पर भी ग्राउंड ठीक नहीं है. हमने कई बार शिकायत दी है कि ग्राउंड को समतल कराया जाए लेकिन कोई सुध नहीं लेता. आए दिन लोग दौड़ते वक्त गिर जाते हैं और गंभीर रूप से चोट लगती है. ऐसे में कैसे कोई सुनील क्षेत्री, लियोनेल मेसी या रोनाल्डो बनेगा? भारत से कब ऐसे प्लेयर्स निकलेंगे और फुटबॉल में देश का नाम रोशन करेंगे.
25 साल से फुटबॉल सिखा रहे हैं कोच अनादि बरुआ
फुटबॉल कोच अनादि बरुआ बताते हैं कि मैं पिछले 25 साल से फुटबॉल सीखा रहा हूं, लेकिन स्थिति कुछ खास नहीं बदली है. क्रिकेट को लेकर जो क्रेज भारत में है, वह फुटबॉल के लिए केवल फीफा के दौरान दिखता है. अभी तो फिर भी स्टेडियम में हालात ठीक हुए हैं लेकिन कुछ वर्षों पहले यहां नेट भी नहीं था.
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