शाश्वत सिंह
झांसी: बुंदेलखंड के झांसी में दुल्हन को गहने पहनाने से पहले गहनों को एक देवी को चढ़ाने की बहुत पुरानी प्रथा है. झांसी में स्थित बीजासेन देवी के मंदिर में दुल्हन को पहनाए जाने वाले गहने पहले चढ़ाए जाते हैं. यूं तो झांसी और बुंदेलखंड में बीजासेन देवी के कई मंदिर हैं, लेकिन सबसे पुराना मंदिर लक्ष्मी ताल के समीप स्थित है. एक सुंदर बगीचे में बना यह मंदिर सदियों पुराना है. आज भी यह झांसीवासियों के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है.
बीजासेन देवी मंदिर के मुख्य पुजारी प्रसून चतुर्वेदी ने बताया कि बीजासेन देवी गणेश जी की 16 माताओं में से एक हैं. गणेश जी के साथ ही बीजासेन देवी भी प्रथम पूज्यनीय हैं. दूल्हा और दुल्हन दोनों ही पक्ष के लोगों द्वारा बनवाए गए जेवर पहले बीजासेन देवी को चढ़ाए जाते हैं. मंदिर पर जेवर चढ़ाने के लिए दूल्हा और दुल्हन दोनों पक्षों के लोगों को मंदिर तक आना रहता है. लेकिन किसी कारण के चलते या फिर के घर से मंदिर दूर होने के नाते वह अपने घर में ही अपने सामर्थ्य के अनुसार सोने या चांदी की छोटी मूर्ति बनाकर उन्हें जेवर अर्पित कर सकता है.
लक्ष्मीबाई ने भी मंदिर में की थी पूजा
पंडित प्रसून चतुर्वेदी ने बताया कि सदियों पुराने इस मंदिर में वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई भी पूजा करने के लिए नियमित तौर से आती थीं. उन्होंने कहा कि बदलते समय में बिजासन देवी के कई छोटे मंदिर बन गए हैं. लेकिन सबसे पुराना मंदिर लक्ष्मी ताल के पास ही स्थित है. इस मंदिर में सुबह 8 बजे माता के श्रृंगार के साथ मंगल आरती होती है. शयन आरती शाम 7 बजे नियमित तौर पर होती है.
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