झांसी. विधानसभा चुनाव का संग्राम शुरू होने के साथ ही बुंदेलखंड राज्य निर्माण का मुद्दा गर्माने लगता है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी से लेकर मयावती तक ने बुंदेलखंड राज्य के नाम पर सियासत चमकाई है. यूपी विधानसभा चुनाव में फिर एक बार बुंदेलखंड राज्य की चर्चा है. बुंदेलखंड ऐसा क्षेत्र है जिसे उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों राज्यों में आधा-आधा बांटा गया है, लेकिन इसके पहले ऐसा नहीं था. यह राज्य आजादी की लड़ाई जीतने के साथ ही अलग अस्तित्व वाला राज्या रहा है. यहां अलग सीएम भी रहे हैं, लेकिन बाद में इसका विभाजन हो गया. तभी से भाषाई आधार पर बुंदेलखंड को पृथक राज्य बनाने को लेकर आंदोलन शुरू हो गए. चुनावों में ये मुद्दा गरम रहता है और उसके बाद इसकी धार धीमी हो जाती है.
बुंदेलखंड में 14 जिले आते हैं. इसके पहले इस का और भी व्यापक रूप रहा है जो भिंड से लेकर रीवा, सतना विदिशा समेत एमपी के कई जिलों तक फैला रहा. वर्तमान में बुंदेलखंड के इलाके में जो जिले माने जाते हैं उनमें यूपी के ललितपुर, झांसी, जालौन, महोबा, हमीरपुर, बांदा और चित्रकूट शामिल हैं. मध्य प्रदेश के हिस्से में टीकमगढ़, निवाड़ी, पन्ना, छतरपुर, सागर, दमोह व दतिया का नाम शामिल है. इसे वापस अलग राज्य को लेकर कई दशकों से आंदोलन चल रहे हैं. उमा भारती ने 2014 में झांसी से लोकसभा चुनाव के दौरान 3 साल में अलग बुंदेलखंड राज्य का वादा किया था, लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सका. बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा समेत कई और संगठन अब बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं.
1956 में यूपी और एमपी में बंटा बुंदेलखंड
बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा के अध्यक्ष भानु सहाय कहते हैं कि 1956 के पहले तक बुंदेलखंड अलग राज्य के अस्तित्व में रहा है. जब देश आजाद हुआ छोटे राज्यों को भारत में विलय करने का काम तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल की तरफ से किया गया. उस समय बुंदेलखंड की 35 स्थानीय रियासतों ने लिखित संधि की थी, जिसमें भाषा और बोली के आधार पर राज्य निर्माण का प्रस्ताव रखा गया. था.
1948 में अलग राज्य बना बुंदेलखंड नौगांव बनी राजधानी
12 मार्च 1948 को बुंदेलखंड राज्य इकाई का गठन किया गया. इसकी राजधानी नौगांव बनाई गई. बुंदेलखंड राज्य का पहला सीएम कामता प्रसाद सक्सेना को बनाया गया. वह चरखारी के रहने वाले थे.
1953 में बंट गया बुंदेलखंड
बुंदेलखंड राज्य को लेकर तत्कालीन केंद्र सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया. 1955 में राज्य पुनर्गठन आयोग ने जो शिफारिश दी उसके आधार पर 1956 में बुंदेलखंड को दो भागों में बांट दिया गया. इसका एक हिस्सा यूपी और दूसरा एमपी में समायोजित कर दिया गया. तभी से इसकी मांग शुरू हो गई.
1970 से शुरू हुई अलग राज्य की लड़ाई
1970 के दशक में झांसी में वैद्यनाथ आयुर्वेदे के मालिक पं. विश्वनाथ शर्मा ने बुंदेलखंड राज्य निर्माण की मांग उठाना शुरू की. उन्होंने बुंदेलखंड एकीकरण समिति का गठन किया. इसमें हजारों सदस्य जोड़े गए. 1989 में बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा का गठन शंकर लाल मेहरोत्रा ने किया और अलग राज्य की लड़ाई को उन्होंने आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाया. कई बार गिरफ़्तारी भी हुई.
इन्होंने की बुंदेलखंड की आवाज बुलंद
बुंदेलखंड अलग राज्य की मांग के लिए कई नेता और राजघराने भी आंदोलन में शिरकत करते रहे हैं. एमपी से तत्कालीन टीकमगढ़ सांसद लक्ष्मीनारायण नायक ने बुंदेलखंड की आवाज उठाई. उनके साथ उमा भारती ने अलग बुंदेलखंड राज्य की पैरवी की और वह जंतर मंतर पर कई बार आंदोलन में शिरकत करने भी पहुंची. इसके साथ ही पूर्व मंत्री बिट्ठल बिठठल भाई पटेल, पन्ना महाराज, ओरछा महाराज, पूर्व विधायक मुन्ना राजा बसारी, बेबीराजा, ब्रजेन्द्र सिंह राठौर, मदन मानव आंदोलन का हिस्सा रहे. यूपी के इलाके से जो नेआ बुंदेलखंड राज्य के लिए लड़ते रहे उनमें पूर्व सांसद स्व. विश्वनाथ शर्मा, गंगाचरण राजपूत, बादशाह सिंह, प्रदीप जैन आदित्य, राजा रंजीत सिंह जूदेव, हमीरपुर सांसद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल, तिंदवारी ब्रजेश प्रजापति, झांसी विधायक रवि शर्मा, पूर्व सांसद भैरौ प्रसाद मिश्रा, राजेन्द्र अग्निहोत्री, हरगोविंद कुशवाहा, रविंद्र शुक्ला, विनोद चतुर्वेदी, विवेक सिंह बांदा
समेत कई बड़े नेताओं ने बुंदेलखंड राज्य की मांग उठाई.
राजा बुंदेला ने भी उठाई आवाज
बुंदेलखंड राज्य की मांग चुनाव में ज्यादा जोर पकड़ती आई है. राजा बुंदेला ने भी इस मांग को उठाया. राजा बुंदेला कांग्रेस के टिकट पर 2002 में झांसी लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन उनकी जमानत जब्त हो गई. इसके बाद राजा बुंदेला ने राजनीतिक दल बुंदेलखंड कांग्रेस बनाकर 2012 में झांसी सदर सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें इस चुनाव में सिर्फ 1984 वोट ही हासिल हुए.
राहुल गांधी की पहल पर जारी हुआ था बुंदेलखंड पैकेज
मनमोहन सिंह की सरकार में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बुंदेलखंड में अपनी सक्रियता बढ़ाई तो यह एक बार फिर सुर्खियों में आ गया. राहुल गांधी 2007 और 2008 में दलितों के घर पर सो रहे थे तो मीडिया ने बुंदेलखंड की बदहाली को उभारा था. उसके बाद 7466 करोड़ का बुंदेलखंड पैकेज जारी किया गया. यह इलाका सियासी चर्चा में आ गया.
मायावती ने भी खेला बुंदेलखंड का दांव
राहुल गांधी की बुंदेलखंड में सक्रियता के चलते तात्कालीन यूपी की मायावती सरकार ने बुंदेलखंड को लेकर बड़ा दांव खेल दिया. उन्होंने यूपी को चार हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेज दिया जिसमें अलग बुंदेलखंड भी था. 2012 में चुनाव के पूर्व यूपी को चार भागों में बांटने के इस प्रस्ताव को केंद्र ने अपूर्ण बताकर अस्वीकार कर दिया. तभी से ये मांग लगातार सुलगती रही है.
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