मकर संक्रांति का त्योहार सूर्य की उपासना के लिए जाना जाता है.झांसी के लोग भी हर वर्ष मकर संक्रांति पर उन्नाव बालाजी सूर्य मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं.झांसी से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित उन्नाव बालाजी सूर्य मंदिर धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों ही महत्त्व रखता है.परंपरा के अनुसार लोग नदी में स्नान कर भगवान सूर्य को जल अर्पित करने मंदिर जाते हैं.हालांकि, यह क्रम यहां वर्ष भर प्रत्येक रविवार को जारी रहता है, लेकिन मकर संक्रांति पर आसपास के जिलों से भी लोग यहां पहुंचते हैं.खास बात यह है कि इस मंदिर में पानी के नही बल्कि देसी घी के एक दो नही बल्कि 9 कुएं मौजूद हैं.
असाध्य रोगों के ठीक होने की है मान्यता
इस मन्दिर की स्थापना सोलहवीं शताब्दी में हुई थी. शुरुआत में एक चबूतरे पर सूर्य यंत्र स्थापित था जिसे बाद में झांसी के राजा नारायण राव ने इसे मंदिर का रूप दिया.दतिया के राजा नरेश रावराजा ने सन् 1736 से 1762 के बीच मंदिर को भव्य रूप दिया.पुष्पावती नदी के घाट पर स्थित यह मंदिर असाध्य रोगों को ठीक करने के लिए जाना जाता है.यहां ऐसा माना जाता है की रविवार के दिन और मकर संक्रांति के दिन नदी में स्नान के बाद मंदिर में सूर्य यंत्र पर जल अर्पित करने से चर्म रोगों से छुटकारा मिलता है.
मंदिर में है देसी घी के 9 कुंए
मंदिर की विशेषता यह है कि यहां पानी के नहीं बल्कि घी के कुएं भरे हैं, वो भी एक दो नहीं बल्कि पूरे नौ कुएं.मंदिर में प्रतिदिन अखंड ज्योति के लिए आठ किलो घी का उपयोग किया जाता है, जबकि एक दिन में 17 किलो से अधिक का घी चढ़ावे में आता है.कहते हैं कि इस मंदिर में ये घी चढ़ाने की परंपरा करीब 350 वर्ष पहले शुरू हुई थी.यहां मकर संक्रांति, बंसत पंचमी, रंग पंचमी पर काफी मात्रा में शुद्ध घी चढ़ावे में आ जाता है.जिसको कुएं में रखा जाता है.
(रिपोर्ट – शाश्वत सिंह)
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