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15 अगस्त स्पेशलः जब आजादी की पहली क्रांति में अंग्रेजों को छोड़ना पड़ा था कानपुर

यह हत्याकांड इतना भयावह था कि लंदन की एक सड़क का नाम भी कानपोर स्ट्रीट रख दिया गया. यही नहीं, लंदन के थिएटरों में नाना स ...अधिक पढ़ें

    भारत 15 अगस्त, 2018 यानी बुधवार को अंग्रेजों से भारतीय स्वतंत्रता का 72वां वर्षगांठ मनाने जा रहा है, लेकिन अग्रेजों से आजादी की लड़ाई इससे काफी पहले वर्ष 1857 में शुरू हो गई थी. मेरठ जिले से शुरू हुई भारतीय आजादी की पहली क्रान्ति की चिंगारी ऐसी भड़की थी कि धीरे-धीरे पूरे देश में उसकी आग फैल गई. मेरठ से निकली आजादी की चिंगारी का ही कमाल था कि अंग्रेजों को कानपुर छोड़कर भागने के लिए मजबूर होना पड़ा था.

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    इतिहासकार बताते हैं कि कानपुर में नाना साहब से समझौते के बाद अंग्रेज इलाहाबाद के लिए रवाना होने वाले थे कि तभी एक ऐसी घटना घटित हुई कि देश में अंग्रेजों की हुकूमत की चूलें हिल गईं. बताया जाता है सत्ती चौरा घाट पर 27 जून 1857 को अंग्रेजों ने इलाहाबाद जाने के लिए 40 नावें मंगाई गई थीं और अंग्रेज वहां पहुंचे तो वंदेमातरम के उद्घोष शुरू हो गया. घबड़ाकर अंग्रेजों ने फायरिंग शुरू कर दी और भगदड़ के बीच आजादी के परवानों ने 450 से अधिक अंग्रेजों की कुचलकर हत्या कर दी.

    बताते हैं अंग्रेजों के खून से गंगा का पानी पूरी तरह से खून से लाल हो गया था. अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की यह लड़ाई में नाना साहब, अजीमुल्ला खां और तात्या टोपे जैसे महान क्रान्तिकारी की मौजूदगी में जीती गई थी. 450 अंग्रेजों की मौत के बाद एक बड़े बेड़े के साथ अंग्रेज कानपुर पहुंचे और उन्होंने बदले की कार्रवाई में शहर बड़े पैमाने पर निर्दोष का कत्ल करवाया.

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    क्रांतिकारी नाना साहब ने निर्दोषों पर अंग्रेजों के अत्याचार का बदला भी लिया, जिसमें खानम नामक एक महिला की मदद की. बंदीगृह में तैनात खानम नामक महिला ने बंदीगृह में मौजूद अंग्रेज सैनिकों की महिलाओं और बच्चों मारकर एक कूंए में डलवा दिया गया था. यह हत्याकांड पूरे विश्वभर में चर्चित हुआ था, जिसके बाद ब्रिटिश संसद में नाना को पकड़ने की मांग भी गूंजी.

    यह हत्याकांड इतना भयावह था कि लंदन की एक सड़क का नाम भी कानपोर स्ट्रीट रख दिया गया. यही नहीं, लंदन के थिएटरों में नाना साहब को गोली से उड़ाने और उन्हें फांसी देने वाले नाटकों का मंचन तक किया गया. ब्रिटिश सरकार पर जन दबाव इतना ज्यादा बढ़ा कि बार-बार नकली लोगों को नाना के रूप में बंदी बनाकर जनाक्रोश शांत करने की कोशिश की गई.

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    इतिहासकार बताते हैं कि बीबी घर नामक कुएं में मारकर फेंकी गई अंग्रेज सैनिकों की महिलाओं औऱ बच्चों की लाशें देखकर अंग्रेज भी दहल गए थे. गुस्से में अंग्रेजों ने बीबी घर को जमीदोंज किया और फिर क्रान्तिकारियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया.

    बताते हैं कि बीबी घर कुएं के पास में बने बरगद के पेड़ पर अंग्रेजों ने एक साथ 133 लोगों को फांसी दे दी थी. इसके अलावा शहर के आसपास के गांवों में भी अंग्रेजों ने खूब कत्लेआम किया. जानकारों के मुताबिक अंग्रेजों ने इस दौरान तकरीबन 7,000 लोगों को मौत के घाट उतारा था.

    (रिपोर्ट-श्याम तिवारी, कानपुर)

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    Tags: 1857 Indian Mutiny, Independence day of India, Kanpur news

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