Kanpur: शहरवासियों को आज मिलेगी मेट्रो की शुरुआत
कानपुर. कानपुर में मेट्रो रेल (Kanpur Metro) के शुभारंभ के साथ ही कानपुर (Kanpur) का कलेवर बदलने वाला है, लेकिन इस मौके पर कानपुर के पुराने तेवर का भी जिक्र होता रहता है. आइए हम आपको बताएं कानपुर से जुड़े हुए कुछ वो शब्द ,वो पंक्तियां जो हमेशा कानपुर और कनपुरियों को जिंदा रखता है. कानपुर में एक दूसरे को चिढ़ाने को कनपुरिया बोलचाल में चिकाई या चिकाईबाजी (Kanpur Famous Pranks) जाता है. इस चिकाईबाजी का भी इतिहास काफी पुराना है और कानपुर के रेल इतिहास से जुड़ा है.
बताया जाता है कि कानपुर में सबसे पहले रेलगाड़ी के नाम पर 1908 में ट्रॉम चली जो सरसईया घाट से बिठूर तक चली जो मूलगंज और नई सड़क से होकर जाती थी. उस वक्त की जो चिकाईबाजी में जो कहा जाता था वो जानिए. कानपुर कनकईया (पतंग), जिस पर बैठी गंगा मईया, उस पर घाट बना सरसईया, नीचे चले रेल का पहिया. इसमें कानपुर की पतंगबाजी का ज़िक्र है और सरसईया घाट से चलने वाली ट्रॉम का ज़िक्र है.
झाड़े रहो कलेक्टरगंज
बताया जाता है कि जब कलक्टरगंज में गल्ला मंडी खुली थी तब एक सफाई वाला वहां रोज़ झाड़ू लगाता था, जिसकी एक आंख नहीं थी. लिहाज़ा एक आंख खुली और एक आंख बंद रहती थी. उसे चिढ़ाने (चिकाई) के लिए कहा जाता था… हटिया खुली, बजाजा बंद (एक आंख खुली, एक आंख बंद)… झाड़े रहो (झाड़ू लगाने पर) कलक्टरगंज. झाड़े रहो कलेक्टरगंज का जिक्र तो एक बार तो खुद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने भाषण में किया था.
क्रिकेटर टोनी ग्रेग को ऐसे चिढ़ाया
कानपुर की एक और मशहूर चिकाईबाजी है लईया चुरमुर वाली. किस्सा ये है कि 1976-1977 में जब टोनी ग्रेग कानपुर के ग्रीनपार्क में खेलने आया तो उसकी चिकाई के लिए कहते थे…. लईया चुरमुर वाली, लईया बड़ी करारी. इससे जुड़ी कहानी में कहा जाता है कि सिंधियों में शादी के समय, नए दूल्हे को लोढ़ी के समय चिढ़ाने के लिए लईया चुरमुर वाली कहा जाता है.
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