पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह
लोकसभा चुनाव 2019 के रुझानों में दोबारा नरेंद्र मोदी की सरकार बनती दिख रही है. रुझान से बीजेपी उत्साहित है और अब फाइनल नतीजों का इंतजार कर रही है. रुझान में बीजेपी की अगुआई वाले एनडीए को 350 के आस-पास सीट मिलती दिख रही हैं. ऐसे में साफ है कि विपक्ष का कोई भी मुद्दा मोदी लहर और अमित शाह की रणनीति के आगे टिक नहीं पाया. 2014 की तरह इस बार भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव लड़ने वाली बीजेपी के जीत के ये हैं वो 10 फैसले जिन्होंने बदल दी चुनाव की तस्वीर...
ये हैं मोदी-शाह के वो 10 फैसले
- प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी अपने ऊपर होने वाले हमले को अपना हथियार बनाना बखूबी जानते हैं. पिछले चुनाव में चाय वाले को हथियार बनाया तो इस बार चौकीदार को मुद्दा बनाया.
- 2014 में सत्ता में आने के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी और उनके सेनापति अमित शाह ने कभी आराम नहीं किया. अमित शाह को इस बात अंदाजा था कि बीजेपी की 282 सीटों को बचाना मुश्किल है, लेकिन नए राज्यों को जोड़कर इसे बढ़ाया जा सकता है. इसलिए उन्होंने उन इलाकों का अपना कार्यक्षेत्र बनाया जहां बीजेपी 2014 में बहुत कमजोर थी.
- सबसे पहले अमित शाह ने पूर्वोत्तर भारत को अपना कार्यक्षेत्र बनाया. असम और त्रिपुरा में बीजेपी की सरकार बनी, उसके बाद पूर्व में पश्चिम बंगाल और ओडिशा को अपना कर्मक्षेत्र बनाया.
- लोकसभा चुनाव के ठीक पहले अमित शाह ने अपने विरोधियों को मना लिया. महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ लंबे समय की कड़वाहट भूलकर शिवसेना एक साथ चुनाव में खड़ी दिखी.
- बिहार में गठबंधन धर्म निभाने के लिए बीजेपी ने 2014 में जीती गई 22 सीटों की बजाय सिर्फ 17 सीटों पर चुनाव लड़ने पर सहमति दे दी. गठबंधन धर्म निभाने के लिए ही पार्टी ने गिरिराज सिंह जैसे दिग्गज नेता की सीट भी सहयोगी दल को दे दी, जिसका विरोध भी हुआ था.
- बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कड़े फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं. उत्तर प्रदेश में इस चुनाव में उन्होंने पार्टी के कई कद्दावर नेताओं समेत करीब एक तिहाई सांसदों का टिकट काट दिया. साथ ही रामशंकर कठेरिया और विरेंद्र सिंह मस्त जैसे दिग्गज नेताओं की सीट बदल दी. टिकट काटने का सबसे पहला प्रयोग अमित शाह ने दिल्ली नगर निगम के चुनाव में किया था जो पूरी तरह सफल रहा था.
- जातीय वोट गणित की लड़ाई कैसे लड़ी जाती है, ये बात अमित शाह से अच्छी तरह कौन जानता है. और इसका सबसे बढ़िया प्रयोग उन्होने उत्तर प्रदेश में सुहलेदव भारतीय समाज पार्टी और उसके नेता ओम प्रकाश राजभर के साथ किया. बीजेपी ने राजभर के मामले में अंतिम समय तक पत्ता नहीं खोला. यहां तक कि उसके लगातार विरोध के बाद भी राजभर के बेटे समेत पार्टी के कई नेताओं को राज्यमंत्री का दर्जा दिया. ताकि पार्टी में ओम प्रकाश राजभर अकेले पड़ जाएं और हुआ भी ऐसा ही. पार्टी ने उनको सीट देने से इनकार ऐसे समय में किया, जब सारे गठबंधन बन चुके थे. यानी ओम प्रकाश राजभर के पास बीजेपी के साथ बीजेपी की शर्तों पर रहने या अकेले चुनाव लड़ने का कोई रास्ता नहीं बचा था.
- विरोधी भी अमित शाह के चुनाव लड़ने की रणनीति के कायल हैं. चुनाव प्रचार के दौरान ये साफ दिखा उत्तर प्रदेश के पश्चिम इलाके में जहां बीजेपी गठबंधन के बाद ध्रुवीकरण से बचना चाहती थी. सांप्रदायिक भाषणों पर तब तक रोक लगाई जब तक बीएसपी और कांग्रेस मुस्लिम वोटों के लिए आमने-सामने नहीं आ गए.
- राजस्थान में गुर्जर आंदोलन के तेज होने तक इंतजार किया और जब कांग्रेस की राज्य सरकार इसे संभाल नहीं पाई तो बड़े गुर्जर नेता करोड़ी सिंह बैंसला और हनुमान बेनीवाल को अपने पाले में ले आई.
- मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह जब नर्मदा यात्रा को राज्य में कांग्रेस की वापसी का श्रेय दे रहे थे और सॉफ्ट हिंदुत्व के सहारे भोपाल से चुनाव जीतना चाहते थे तो बीजेपी ने साध्वी प्रज्ञा जैसे चेहरे पर दांव लगाकर चुनाव को नई धार दे दी.
ये भी पढ़ें-
Lok Sabha Election Result 2019: हरियाणा की सभी 10 सीट पर ऐसे सफाया कर रही है बीजेपी
लोकसभा चुनावों में बीजेपी की जीत से टूट जाएगी कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस की सरकार!
.
Tags: Amit shah, Bihar Lok Sabha Elections 2019, Lok Sabha Election 2019, Lok Sabha Election Result 2019, Lok sabha elections 2019, Pm narendra modi, Uttar Pradesh Lok Sabha Elections 2019
Best Colleges in India: आईआईटी, एनआईटी क्यों हैं स्टूडेंट्स की पहली पसंद ? जानिए यहां क्या है खास
चांद जैसी सुंदर दुल्हन बनीं सोनाली सहगल, सितारों से रौनक हुई महफिल, कार्तिक-सनी की सादगी देख कहेंगे अरे वाह!
प्रकृति की गोद में बसे पिथौरागढ़ के ये हैं 10 खूबसूरत टूरिस्ट प्लेस, गर्मी में हो जाएंगे 'कूल-कूल'