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इस चीज ने बदल दी मायावती की जिंदगी, बसपा सुप्रीमो की जगह आज यहां कर रही होतीं नौकरी

चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं मायावती आज 63वां जन्मदिन मनाएंगी.

चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं मायावती आज 63वां जन्मदिन मनाएंगी.

कांशीराम ने सीधे पूछा कि पढ़कर क्या बनना चाहती हो तो मायावती का जवाब था आईएएस बनकर अपने समाज की सेवा करना चाहती हूं.

    यूपी विधानसभा के इतिहास में सबसे ज्यादा चार बार मुख्यमंत्री और बहन जी के नाम से लोकप्रिय बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती एक सख्त शासक और आयरन लेडी के तौर पर जानी जाती रहीं हैं. इसी सख्ती की वजह से उनके कार्यकाल में जहां कानून का राज स्थापित करने के लिए उनकी तारीफ होती रही है तो वहीं कई राजनीतिक आलोचक उन्‍हें 'तानाशाह' भी बताते रहे हैं.

    बसपा सुप्रीमो के तमगे को मायावती ने बेहद संघर्ष और कठिन रास्‍ते पर चलकर हासिल किया था. बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के बाद भारतीय राजनीति में दलितों के सबसे मुखर प्रवक्‍ता 'मान्‍यवर' कांशीराम ने मायावती को अपना राजनीतिक वारिस घोषित कर उन्‍हें अंबेडकरवादी खेमे के सबसे प्रभावशाली नेताओं की कतार में खड़ा कर दिया था. इसके बाद मायावती का राजनीतिक ग्राफ बहुत तेजी आगे बढ़ा. आइए, जानें मायावती के बारे में कुछ खास बातें.

    मायावती के भाषण ने दलित नेताओं को सोचने पर किया मजबूर
    मायावती की कांशीराम से मुलाकात और उनके राजनीति में आने की भी रोचक कहानी है. वर्ष 1977 के सितंबर की बात है. जनता पार्टी ने दिल्ली के कांस्टिट्यूशन क्लब में 'जाति तोड़ो' नाम से एक तीन दिवसीय सम्मलेन आयोजित किया. इसमें मायावती भी शामिल हुईं. इस सम्मलेन का संचालन तत्‍कालीन केंद्रीय मंत्री राजनारायण खुद कर रहे थे. वह कार्यक्रम में बार-बार हरिजन शब्द का प्रयोग कर रहे थे. मायावती को राजनारायण के हरिजन शब्‍द के प्रयोग से आपत्ति थी. जब मायावती मंच पर अपनी बात रखने आईं तो सबसे पहले उन्होंने हरिजन शब्द पर आपत्ति जताई और कहा की एक तरफ तो आप जाति तोड़ने की बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ आप इस शब्द का प्रयोग कर रहे हैं. यह शब्द ही दलितों में हीनता का भाव जगाता है. उनके इस भाषण से राजनारायण समेत सम्मेलन में मौजूद सभी लोग खासे प्रभावित हुए.

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    सम्मेलन में मौजूद बामसेफ (बैकवर्ड एंड माइनॉरिटीज़ एमप्लाइज़ कम्यूनिटीज़ फेडरेशन) के कुछ नेताओं ने प्रभावित होकर यह बात कांशीराम को बताई. बामसेफ के निर्माण में कांशीराम की अहम भूमिका थी. इसके बाद कई कार्यक्रमों में कांशीराम ने खुद मायावती के विचार सुने और एक दिन एकाएक वह खुद मायावती के घर पहुंच गए.

    जब कांशीराम मायावती से मिलने घर जा पहुंचे
    मायावती उस समय टीचर की नौकरी के साथ एलएलबी भी कर रही थीं. कांशीराम ने सीधे पूछा कि पढ़कर क्या बनना चाहती हो तो मायावती का जवाब था आईएएस बनकर अपने समाज की सेवा करना चाहती हूं. कांशीराम ने कहा कि कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि देश और प्रदेश की सरकारें जो चाहेंगी वही करना होगा और हमारे समाज में कलेक्टर की कमी नहीं है. कमी है तो एक ऐसे नेता की जो उनसे काम करवा सके. कांशीराम की बातों से प्रभावित होकर उन्होंने कलेक्टर बनने का सपना छोड़ दिया और नेता बनने की ठान ली.

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    जिसने विरोध किया, वह बसपा में हाशिए पर चला गया
    बसपा में कांशीराम के रहते ही मायावती ने नम्बर दो की पोजिशन हासिल कर ली थी. पर यहां तक पहुंचना इतना आसान नहीं था. पार्टी के भीतर उनके समानांतर नेताओं ने उनका खूब विरोध किया, लेकिन वे पीछे छूट गए और मायावती आगे बढ़ती गईं. दीनानाथ भास्कर, आरके चौधरी, राज बहादुर, मसूद अहमद ऐसे ही शुरुआती नेता थे, जिन्हें मायावती से विरोध के बाद बाहर होना पड़ा. इनके अलावा बाबू सिंह कुशवाहा, दद्दू प्रसाद और अब स्वामी प्रसाद मौर्य सहित कई काडर बेस नेताओं ने बसपा छोड़ दी या निकाल दिए गए. यह सच है कि पार्टी के भीतर मायावती का विरोध करने वाले राजनीतिक तौर आगे नहीं बढ़ सके. इसी से मायावती का कद और बढ़ता गया.

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    Tags: Bhimrao Ambedkar, BSP, Kanshiram, Mayawati, Trending news, Uttar pradesh news

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