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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की हार के बाद मुलायम सिंह यादव ने तमाम खामियां तो गिनाईं लेकिन बेटे और राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव पर सीधे-सीधे कुछ नहीं कहा.
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इससे साफ हो गया कि समाजवादी पार्टी अब अखिलेश ही चलाएंगे. इधर अखिलेश ने भी धीरे-धीरे अपना कद मुलायम सिंह यादव के करीब लाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं.
विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता तय करना, संगठन में भारी बदलाव कर विरोधियों को किनारे करने के साथ ही अखिलेश ने अब राष्ट्रीय राजनीति में धमक दिखानी शुरू कर दी है. पिछले दिनों अखिलेश की दिल्ली यात्रा ने साफ कर दिया कि अखिलेश अब राष्ट्रीय राजनीति में मुलायम की जगह लेने की कोशिश में हैं.
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दिल्ली में उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, एनसीपी के शरद पावर और कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद सहित कई वरिष्ठ नेताओं से सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर मुलाकात की. इन मुलाकातों में अखिलेश की तरफ से ये साफ किया गया कि बीजेपी के खिलाफ किसी भी प्रकार की रणनीति हो या अन्य कोई मुद्दा उनकी रजामंदी के बाद ही सपा शामिल होगी.
इससे पहले चुनाव में हार के बाद अखिलेश अब सपा संगठन के अंदर भी अखिलेश लगातार अपनी ताकत बढ़ाने में लगे हुए हैं. पिछले दिनों हुई समाजवादी महिला सभा की बैठक में अखिलेश के नेतृत्व पर सहमति को लेकर प्रस्ताव पास हुआ. बुधवार को पार्टी के युवा संगठनों की बैठक हुई, जिसमें अखिलेश की उपस्थिति में युवजन सभा के प्रदेश अध्यक्ष बृजेश यादव ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कराया, जिसमें अखिलेश यादव के नेतृत्व के प्रति आस्था व्यक्त की गई.
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इसके अलावा पार्टी ने संगठन को बेहतर बनाने के लिए 15 अप्रैल से सदस्य भर्ती अभियान का ऐलान भी कर दिया है. दो महीने चलने वाले इस अभियान में प्रदेश के सभी जिलों में युवाओं की नई फौज खड़ी करने की तैयारी है.
यही नहीं अखिलेश संगठन में भी बड़े पैमाने पर फेरबदल कर रहे हैं. इनमें कई जिलों में जिला/महानगर कार्यकारिणी जिला/महानगर अध्यक्षों सहित भंग कर दी गई है और नए नेताओं को जिम्मेदारी दी जा रही है.
बात अगर मुलायम सिंह यादव की करें तो वैसे वह अभी भी पार्टी के संरक्षक हैं. लेकिन वह पार्टी के क्रियाकलापों से दूर ही दिखाई दे रहे हैं. पार्टी में कभी राष्ट्रीय मुद्दों पर स्टैंड लेना हो या केंद्र सरकार के खिलाफ राजनीतिक हमला या समर्थन इन सभी मामलों में मुलायम ही आगे रहते थे. लेकिन पार्टी सिंबल की लड़ाई हारने, उसके बाद चुनाव से भी करीब-करीब दूरी ही बनाए रखने के साथ ही मुलायम अब सक्रिय राजनीति से दूर ही दिख रहे हैं.
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वहीं मुलायम की जगह लेने के संबंध में अखिलेश के करीबी एक नेता कहते हैं कि ये सही है कि अखिलेश ही अब समाजवादी पार्टी का चेहरा हैं. लेकिन इसको मुलायम सिंह यादव की जगह लेने से नहीं जोड़कर देखा जाना चाहिए. जिस दिन अखिलेश सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे, उसी दिन ये तय हो गया था कि समाजवादी पार्टी अब अखिलेश की अगुवाई में ही चलेगी.
सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी के अनुसार अखिलेश यादव की छवि आज भी बेदाग है. उन्होंने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में विकास के जो कार्य किए उनकी प्रशंसा देश भर में हुई है. करोड़ों नौजवान अखिलेश यादव में अपना भविष्य देखते हैं. अखिलेश यादव का राजनीतिक व्यक्तित्व संघर्षों से तपकर निखरा है. वे डेढ़ दशक से राजनीति में सक्रिय हैं. सांसद और मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने प्रदेश की समस्याओं को गहराई से समझा है.
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