लखनऊ. यूपी में भाजपा ने दोबारा सरकार (UP Election Result 2022) बनाकर इतिहास रच दिया है. वह 37 साल बाद यूपी में लगातार दूसरी बार प्रचंड बहुमत की सरकार बनने जा रही है. सभी नेता और कार्यकर्ता खुशी से फूले नहीं समा रहे, लेकिन भाजपा (BJP) का थिंक टैंक कुछ गंभीर सवालों को लेकर जरूर जूझ रहा होगा. यूपी विधानसभा के नतीजों से जन्मे सवाल उसके माथे पर जरूर बल ला रहे होंगे.
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में प्रचंड जीत के बाद भाजपा के सामने आखिर फिर कौन से हैं वो सवाल जो पार्टी के रणनीतिकारों के लिए परेशानी का सबब बने होंगे. आइये जानते हैं…
1. पूर्वांचल में पार्टी का प्रदर्शन
चुनाव से पहले पार्टी के सभी बड़े नेताओं ने पूर्वांचल को मथकर रख दिया था. खुद पीएम नरेन्द्र मोदी ने न सिर्फ कई बड़ी योजनाओं की सौगात दी बल्कि धुंआधार चुनाव प्रचार भी किया. बावजूद इसके पूर्वांचल के कई जिलों में पार्टी की स्थिति पहले के मुकाबले कमजोर दिखाई पड़ी है. गाजीपुर, आजमगढ़ और अम्बेडकरनगर में तो भाजपा का खाता ही नहीं खुला. जौनपुर, बलिया और मऊ में उसकी स्थिति पहले से खराब दिखी है. 2017 में गाजीपुर में 3, आजमगढ़ में 1 और अम्बेडकरनगर में 2 सीटें भाजपा के पास थीं. इस बार एक भी नहीं मिली हैं. बलिया की 7 में से 5 सीटें उसके पास थीं. इस बार सिर्फ 2 सीटें मिली हैं. यानी 3 का नुकसान. इसी तरह मऊ की 4 सीटों में से 3 भाजपा जीती थी, लेकिन इस बार सिर्फ 1 सीट मिली है. यानी 2 का नुकसान. जौनपुर में उसके पास 4 सीटें थी. इस बार दो मिली हैं. सातवें चरण की 54 सीटों में से भाजपा को 26, तो सपा को 28 सीटें मिली हैं. ये क्या किसी खतरे की घंटी से कम है.
2. कर्मचारियों की तेजी से बदलता रूख
ओल्ड पेंशन स्कीम लागू किये जाने की मांग को लेकर सरकारी कर्मचारियों में भाजपा के खिलाफ खासा रोष दिखा है. इसकी गवाही पोस्टल बैलेट दे रहे हैं. अधिकतर सीटों पर पोस्टल बैलेट में समाजवादी पार्टी भाजपा से आगे रही है. नजीर के तौर पर लखनऊ कैंट में सपा को 683, तो भाजपा को 600, लखनऊ सेंट्रल सीट पर सपा को 370 तो भाजपा को 357, लखनऊ उत्तर में सपा को 679 तो भाजपा को 674 पोस्टल वोट मिले हैं. इसके अलावा अधिकारियों की सीटों पर भी पार्टी सपा से पीछे दिखी है. कन्नौज सीट पर भाजपा के IPS असीम अरूण को 321, तो सपा को 593, सरोजनी नगर में ED के राजेश्वर सिंह को 754 ,तो सपा को 942 वोट मिले हैं. जिन जिलों के ज्यादातर लोग सर्विस क्लास के हैं वहां तो और बड़ा अंतर दिखा है. गाजीपुर में भाजपा को 598, तो सपा को 1325, बलिया में सपा को 1278 जबकि भाजपा को 908 पोस्टल वोट ही मिले हैं. इससे जाहिर है कि विपक्षी दलों के ओल्ड पेंशन स्कीम लागू किये जाने का वायदा चुनाव में चला है. अब जबकि अगला चुनाव लोकसभा का है ऐसे में पार्टी हाईकमान इस बात पर गंभीर विचार कर रहा होगा कि इस क्लास को कैसे साथ लाया जाये.
3. सपा का बढ़ा वोट प्रतिशत
यूपी चुनाव में सपा भले ही सरकार बनाने से दूर रही हो, लेकिन उसके वोट शेयर में अब तक का सबसे बड़ा उछाल आया है. लगभग 10 फीसदी का उछाल भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकता है. वैसे तो अभी चुनावी अध्ययन काफी बाकी है, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि बसपा का बहुत बड़ा वोट शेयर सपा की ओर शिफ्ट हुआ है. बसपा के वोट शेयर में करीब 10 फीसदी की गिरावट है. भाजपा के वोट शेयर में थोड़ी ही (लगभग डेढ़ फीसदी) बढ़ोतरी रही है. ऐसे में अनुमान यही है कि बसपा से टूटे वोट भाजपा और सपा दोनों की ओर गये होंगे. भाजपा से थोड़ी नाराजगी के कारण जो वोट टूटे होंगे उसकी भरपाई बसपा से हुई होगी. तभी उसका वोट शेयर स्थिर रहा है, लेकिन सपा के वोट शेयर में बढ़ोतरी ये दिखाती है कि बसपा से टूटे वोट का बड़ा हिस्सा सपा को गया है. साथ ही ये भी कि सपा से कोई टूट नहीं हुई है. ये भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं हो सकता.
4. वोटर समूहों की गोलबन्दी
सियासी पार्टी अपनी जीत कायम रखने के लिए अपने विरोधी वोटों में बंटवारा रखने की कोशिशें करती रहती है, लेकिन यूपी चुनाव में भाजपा के विरोधी वोट मजबूती से साथ आये हैं. सपा के खेमे में यादव और मुसलमान तगड़े से गोलबन्द हुए. इन दोनों वोटर समूहों का कुल वोट शेयर 25 फीसदी तक पहुंचता है. जाहिर है इन दोनों के साथ यदि कोई तीसरा धड़ा आकर जुड़ जाये तो सपा की पौ बारह हो जायेगी. विरोधी वोटरों में गोलबन्दी को भाजपा खण्डित नहीं कर पायी. पार्टी के समाने चिंतन के लिए ये बड़ा मसला होगा.
5. अम्बेडकरवादियों का समाजवादी होते जाना
बसपा के वोट बैंक में अब तक की सबसे बड़ी टूट देखने को मिली है. ऐसे में भाजपा के सामने ये बड़ी चुनौती होगी कि अम्बेडकरवादियों को समाजवादी होने से रोके. अखिलेश यादव ने चुनाव से पहले ही बसपा के वोट बैंक को समेटने की कोशिशें शुरू कर दी थीं. तमाम दलित और पुराने बसपाई लीडरों को अखिलेश ने अपने साथ खड़ा किया है. इसका फायदा भी उन्हें मिला. बसपा से टूटकर जो वोट बैंक अलग हुआ उसने सपा की ओर भी रूख किया है. अब जबकि बसपा और टूटती ही जायेगी तो भाजपा के सामने ये संकट होगा कि उस वोट बैंक को सपा के पास जाने से रोके. 32 फीसदी वोट शेयर वाली सपा के साथ यदि पांच फीसदी और वोट जुड़ जाये तो वो अजेय हो जायेगी. फिलहाल तो जीत का जश्न चल रहा है और सरकार बनाने की कवायद लेकिन, भाजपा जैसी पार्टी इन सवालों से मुंह कभी भी नहीं मोड़ सकती.
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