UP Politics: यूपी में अपने कैडर को फिर से तैयार करने में जुटीं मायावती
दिल्ली/लखनऊ. पिछले चुनावों में मिलीं हार के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती संगठन को दुरुस्त करने में जुट गई है. वह अपनी खामियों से सबक लेते हुए मूल सिद्धांत पर लौटती दिख रही हैं. लिहाजा, घटते जनाधार और मूल वोटरों (दलित) में सेंध के चलते अब कैडर को16 साल बाद फिर से तैयार किया जा रहा है. इसके लिए प्रदेश अध्यक्ष समेत सभी मंडल कॉर्डिनेटर को बसपा सुप्रिमों ने खास निर्देश दिया है.
दरअलस विधानसभा चुनाव 2022 में मिली करारी शिकस्त के बाद बसपा सुप्रिमों मायावती ने चरणवार समीक्षा बैठकें कीं. इसमें हार के कारणों को तलाशा गया. जिसमें 2007 के बाद लगातार घट रहे वोट फीसद की खामियों पर मंथन किया गया. लिहाजा, जमीन पर पार्टी की नीतियों, अपने समाज के बीच मुस्तैद रहने वाला कैडर हाशिए पर मिला. वहीं भाजपा और सपा की दलित वोट बैंक में सेंध को लेकर किए जा रहे प्रयास ने भी बसपा प्रमुख की चिंताएं बढ़ा दीं. ऐसे में बसपा ने अपनी जमीन फिर से मजबूत करने के लिए ‘चलो गांव की ओर’ अभियान शुरू किया. इसमें बूथ कमेटी गठन के साथ-साथ कैडर को भी तैयार किया जा रहा है. यह कैडर बहुजन विचाराधारा को आत्मसात करने वाला होता है. दरअसल, यूपी में 2007 में मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले और कैडर के जरिये विधानसभा चुनाव में 30.43 फीसद वोट हासिल किए थे. वहीं अब 2022 विधानसभा चुनाव में बसपा सिर्फ 18.88 फीसद वोट पर ही सिमट कर रह गई.
2007 से बंद था कैडर बनाने का काम
पार्टी के मंडल कॉर्डिनेटर व एमएलसी भीमराव आम्बेडकर ने कहा कि बसपा का कैडर ही सबसे बड़ी ताकत है. वहीं समीक्षा में पाया गया कि वर्ष 2007 से कैडर बनाने का काम ही नहीं किया गया. प्रदेश के दलित समाज, अम्बेडकरवादी युवा अपने असली मिशन से दूर हो रहे हैं. लिहाजा, अब फिर से बैठकें कर संगठन का पुनर्गठन के साथ-साथ कैडर भी तैयार किया जा रहा है. यदि 100 लोगों का कैडर तैयार किया जा रहा है, तो उसमें 10 लोगों को संगठन में काम करने के लिए कमेटियों में भी जगह दी जा रही है. कैडर को यह भी बताया जा रहा है कि बाबा साहेब और कांशीराम के सपनों को पूरा करने के लिए बसपा क्यों जरूरी है. लिहाजा, समाज के विकास के लिए बहन जी ही विकल्प हैं.
.
Tags: BSP chief Mayawati, BSP UP