आपके लिए इसका मतलब: पीएम मोदी के करीबी IAS अफसर अरविंद शर्मा की आज होगी भाजपा में एंट्री, पढ़ें पूरी कहानी

आईएएस अफसर अरविंद शर्मा पिछले काफी समय से पीएम मोदी के साथ काम कर रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के करीबी आईएएस अफसर अरविंद शर्मा (Arvind Sharma) ने हाल ही में वीआरएस ली है और वह गुरुवार को भाजपा का दामन थामेंगे. हालांकि उन्हें योगी सरकार में अहम जिम्मेदारी मिलने की चर्चा भी जोर पकड़ रही है.
- News18 Uttar Pradesh
- Last Updated: January 14, 2021, 12:06 AM IST
लखनऊ. योगी सरकार के चार साल पूरे होने के साथ ही उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के करीबी अफसर रहे अरविंद शर्मा (Arvind Sharma) भाजपा का दामन थाम रहे हैं. सूर्य के उत्तरायण होने के साथ ही यूपी की राजनीति में उनकी एंट्री होने वाली है. मंगलवार को अचानक यूपी की राजनीति में अरविंद शर्मा की चर्चा होने लगी और बुधवार को यह खबर आ गई कि गुरुवार को प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह की मौजूदगी में वे बीजेपी की सदस्यता ग्रहण करेंगे. अरविंद शर्मा के बीजेपी में शामिल होने और योगी सरकार में अहम जिम्मेदारी को लेकर सियासी गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म है. आइए जानते हैं कि कौन हैं अरविंद शर्मा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी आईएएस अफसर अरविंद कुमार शर्मा ने हाल ही में वीआरएस लिया है. उनके अचानक वीआरएस लेने के बाद से ही उनके राजनीति में आने की चर्चाएं तेज हो गई थीं. कहा जा रहा है कि यूपी की राजनीति में उनकी एंट्री से यहां की पॉलिटिक्स बदल सकती है. चर्चा है कि अरविंद कुमार शर्मा को योगी सरकार एक अहम जिम्मेदारी दे सकती है. गुजरात कैडर के आईएएस अरविंद कुमार शर्मा के रिटायरमेंट में दो साल बाकी थे, उससे पहले ही उन्होंने वीआरएस ले लिया.
आईएएस असफर से भाजपा तक...
पॉलिटिकल साइंस में फर्स्ट क्लास से मास्टर डिग्री प्राप्त ब्यूरोक्रेट का जन्म उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में 11अप्रैल 1962 को हुआ था. वह भूमिहार ब्राह्मण समुदाय से आते हैं. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विद्यार्थी रहे अरविंद 1988 बैच के गुजरात कैडर के आईएएस रहे हैं. उन्होंने 2001 से लेकर 2013 तक गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी के साथ काम किया है. जब नरेंद्र मोदी पीएम बने तो वो अपने साथ अरविंद कुमार शर्मा को पीएमओ लेकर आ गए. 2014 में वह पीएमओ में संयुक्त सचिव के पद पर रहे. उसके बाद प्रमोशन पाकर सचिव बने थे. लॉकडाउन के बाद मुश्किल समय में पीएम मोदी ने अरविंद शर्मा पर एक बार फिर से विश्वास जताते हुए उन्हें सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रम (एमएसएमई) मंत्रालय में सचिव के पद पर भेजा.यह भी पढ़ें- आपके लिए इसका मतलब: शीत लहर के कारण यूपी में 50 फीसदी बढ़ी शराब की बिक्री, डॉक्टरों ने कहा- क्षणिक राहत, लंबा नुकसान
हालांकि कई राज्यों में अभी राज्यपाल के पद खाली हैं, इनमें कुछ केंद्रशासित प्रदेश शामिल हैं. चर्चा है कि उन्हें इन राज्यों में से कहीं का राज्यपाल भी बनाया जा सकता है, लेकिन सवाल यह है कि राज्यपाल पद के लिए बीजेपी की सदस्यता जरुरी नहीं थी. लखनऊ में उनकी ज्वाइनिंग भविष्य की राजनीति की ओर संकेत दे रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी आईएएस अफसर अरविंद कुमार शर्मा ने हाल ही में वीआरएस लिया है. उनके अचानक वीआरएस लेने के बाद से ही उनके राजनीति में आने की चर्चाएं तेज हो गई थीं. कहा जा रहा है कि यूपी की राजनीति में उनकी एंट्री से यहां की पॉलिटिक्स बदल सकती है. चर्चा है कि अरविंद कुमार शर्मा को योगी सरकार एक अहम जिम्मेदारी दे सकती है. गुजरात कैडर के आईएएस अरविंद कुमार शर्मा के रिटायरमेंट में दो साल बाकी थे, उससे पहले ही उन्होंने वीआरएस ले लिया.
आईएएस असफर से भाजपा तक...
पॉलिटिकल साइंस में फर्स्ट क्लास से मास्टर डिग्री प्राप्त ब्यूरोक्रेट का जन्म उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में 11अप्रैल 1962 को हुआ था. वह भूमिहार ब्राह्मण समुदाय से आते हैं. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विद्यार्थी रहे अरविंद 1988 बैच के गुजरात कैडर के आईएएस रहे हैं. उन्होंने 2001 से लेकर 2013 तक गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी के साथ काम किया है. जब नरेंद्र मोदी पीएम बने तो वो अपने साथ अरविंद कुमार शर्मा को पीएमओ लेकर आ गए. 2014 में वह पीएमओ में संयुक्त सचिव के पद पर रहे. उसके बाद प्रमोशन पाकर सचिव बने थे. लॉकडाउन के बाद मुश्किल समय में पीएम मोदी ने अरविंद शर्मा पर एक बार फिर से विश्वास जताते हुए उन्हें सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रम (एमएसएमई) मंत्रालय में सचिव के पद पर भेजा.यह भी पढ़ें- आपके लिए इसका मतलब: शीत लहर के कारण यूपी में 50 फीसदी बढ़ी शराब की बिक्री, डॉक्टरों ने कहा- क्षणिक राहत, लंबा नुकसान
हालांकि कई राज्यों में अभी राज्यपाल के पद खाली हैं, इनमें कुछ केंद्रशासित प्रदेश शामिल हैं. चर्चा है कि उन्हें इन राज्यों में से कहीं का राज्यपाल भी बनाया जा सकता है, लेकिन सवाल यह है कि राज्यपाल पद के लिए बीजेपी की सदस्यता जरुरी नहीं थी. लखनऊ में उनकी ज्वाइनिंग भविष्य की राजनीति की ओर संकेत दे रही है.