नदियों का जलस्तर बढ़ने से बाढ़ जैसे हालात हालांकि बारिश औसत से भी कम हुई
लखनऊ. प्रदेश में बाढ़ और बारिश (flood and rain) का अजीब रिश्ता है. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि भले ही सूबे के 19 जिले बाढ़ की मार झेल रहे हैं लेकिन प्रदेश में अभी तक इस मॉनसूनी सीजन में औसत से भी कम बारिश हुई है. मौसम विभाग बताता है कि प्रदेश में औसत से 7 फीसदी कम बारिश हुई है. फिर बाढ़ के हालात कैसे पैदा हुए ये सोचने वाली बात है.
औसत से कम बारिश वाले जिले भी बाढ़ की चपेट में
सिंचाई विभाग की रिपोर्ट्स कहती हैं कि सिर्फ तीन जिलों आजमगढ़, गोण्डा और मऊ में नदियों के तटबंध टूटे और कुछ गांवों में पानी भरा. बाकी सभी बाढ़ग्रस्त जिलों में ज्यादा बारिश की वजह से पानी भरा हुआ है. 19 जिले इस समय बाढ़ से प्रभावित हैं. यहां की लगभग 6 लाख आबादी पर इसका फर्क पड़ा है. सैकड़ों गांव टापू बने हुए हैं. ये हाल तब है जब 75 में से 52 जिलों में औसत से कम बारिश हुई है. और तो और जो 19 जिले बाढ़ की चपेट में हैं उनमें से भी 7 ऐसे हैं जहां औसत से कम बारिश हुई है. तो आखिर इसका कारण क्या है. ये जानने का प्रयास करेंगे. लेकिन इससे पहले आईये कुछ आंकड़ों पर गौर करते हैं. प्रदेश के 19 जिले अम्बेडकरनगर, आजमगढ़, गोरखपुर, श्रावस्ती, बलरामपुर, बाराबंकी, अयोध्या, बहराइच, देवरिया, गोण्डा, खीरी, कुशीनगर, महराजगंज, मऊ, पीलीभीत, संतकबीर नगर, सिद्धार्थनगर, सीतापुर और बस्ती बाढ़ से पीड़ित हैं.
औसत से कम बारिश वाले वो जिले जहां बाढ़ का प्रभाव
इन 19 जिलों में से 7 जिलों में तो औसत से कम बारिश हुई है. ये जिले हैं - कुशीनगर (-13 मिमी), सीतापुर (-25 मिमी), लखीमपुर खीरी (-1 मिमी), मऊ (-26 मिमी), पीलीभीत (-4 मिमी), अयोध्या (-6 मिमी) और आजमगढ़ (-7 मिमी). बावजूद इसके ये सातों जिले बाढ़ और जलभराव की मार झेल रहे हैं. जाहिर है ज्यादा बारिश की वजह से बाढ़ का रोना कम से कम इन जिलों के लिए तो नहीं रोया जा सकता है. कुछ जिले तो ऐसे हैं जहां सिर्फ आंकड़ों में ज्यादा बारिश दिख रही है लेकिन, मात्रा इतनी नहीं है कि ज्यादा फर्क पड़े. जैसे श्रावस्ती और महराजगंज में औसत से थोड़ी ही ज्यादा बारिश हुई है. हां अम्बेडकरनगर, गोरखपुर, बलरामपुर और बाराबंकी में वाकई औसत से बहुत ज्यादा पानी बरसा है. अब सवाल ये है कि जिन जिलों में कम बारिश हुई है वहां भी बाढ़ क्यों है ?
बाढ़ का अहम कारण नदियां!
लखनऊ मौसम विज्ञान केन्द्र से रिटायर मौसम विज्ञानी बीके मिश्रा ने बताया कि बाढ़ का अहम कारण नदियां हैं. नदियां नेपाल और उत्तराखण्ड से पानी लाती हैं. पूर्वांचल और तराई में बहने वाली नदियों का कैचमेण्ट एरिया बहुत बड़ा है. वैसे तो अब पूरब में भी पहले के मुकाबले कम बारिश हो रही है लेकिन नेपाल और उत्तराखण्ड से नदियों के जरिये आया पानी मैदानी इलाके में परेशानी का कारण बन जाता है. प्रदेश में बाढ़ के मामले को देख रहे इंजीनियर इन चीफ (डिजाइन एण्ड प्लानिंग) अशोक सिंह ने बताया कि नदियों का जलस्तर ऊंचा हो गया है. ऐसे में बारिश का पानी इलाके से नदियों के जरिये निकल नहीं पा रहा है. इसी वजह से बाढ़ जैसे हालात बने हुए हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि जो 19 जिले बाढ़ से प्रभावित हैं उनमें से 12 में औसत से ज्यादा बारिश हुई है. यहां बाढ़ के हालात पैदा हों जायें तो बात समझ में आती है. हालांकि ये ऐसे जिले हैं जहां हर साल ऐसा होता रहा है.
ये भी पढ़ें- झांसी के इस पुराने कुएं में अचानक नजर आने लगे हजारों सांप, ग्रामीणों में दहशत
प्लैंनिंग पर सवाल तो उठता ही है
तब सवाल लाजमी हो जाता है कि इससे निपटने के उपाय कैसे हो रहे हैं जब स्थिति जस की तस बनी हुई है. बाढ़ से पहले जो तैयारी होनी चाहिए थी शायद वो इस साल भी नहीं हो पायी. जिन जिलों में बाढ़ आयी है वे साल-दर- साल इसकी मार झेलने को मजबूर हैं लेकिन समय के साथ कभी भी ऐसी तैयारी नहीं हो सकी जिससे स्थितियों में कोई बदलाव आये. बता दें कि 11 अगस्त की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में ओवरऑल 7 मिलीमीटर कम बारिश हुई है. पूर्वांचल, तराई और मध्य यूपी में औसत से 7 मिमी ज्यादा बारिश हुई जबकि पश्चिमी यूपी में 31 मिमी कम बारिश हुई है. ये सारे हालात अगर गौर करें तो सही प्लैंनिंग और उसके अनुसार काम किए जाने के अभाव की वजह से ही नजर आते हैं.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
Tags: Flood, Flood in uttar pradesh, Meteorological Department, Rain, Weather department