देश कि राजनीति में परिवारवाद का आरोप अक्सर लगता रहता है. 2019 के लोकसभा चुनावों में करीब 13 नेताओं की तीसरी पीढ़ियां मैदान में है. लेकिन उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाके में 2019 के चुनाव को करीब से देखे तो परिवारवाद खत्म होता नजर आ रहा है. कभी पूर्वांचल की पहचान समझे जाने वाले दिग्गज नेताओं के परिवार के लोग इस चुनाव से बाहर दिख रहे हैं. यहां तक कि
90 के दशक तक में गोरखपुर से सटे कुशीनगर की पहचान समझे जाने वाले राजमंगल पाडे के परिवार से इस बार कोई चुनाव मैदान में नहीं है. राजमंगल पांडे के बेटे राजेश पांडे कुशीनगर से वर्तमान में सांसद हैं. देवरिया और गोरखपुर में गोरखनाथ मठ के विरोधी राजनीति के ध्रुव समझे जाने वाले सुरत नारायण मणि त्रिपाठी के परिवार से भी इसबार कोई चुनाव मैदान में नहीं है. हालंकि पूर्व सांसद लेफ्टिनेंट जनरल श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी के बेटे शंशाक मणि त्रिपाठी इस बार देवरिया से टिकट मांग रहे थे.
की पहचान जिस कल्पनाथ राय के नाम से होती थी, उनके परिवार का भी कोई नेता इस बार चुनाव मैदान में नहीं है. बलिया के पहचान समझे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के बेटे नीरज शेखर का टिकट भी ऐन वक्त पर
ने काट दिया. हालांकि कांग्रेस की राजनीति में पूर्वांचल की पहचान समझे जाने वाले दिग्गज नेता कमला पति त्रिपाठी के परिवार से ललितेश मणि त्रिपाठी इस बार मिर्जापुर से चुनाव मैदान में है, लेकिन मिर्जापुर के राजनीतिक हालात साफ इशारा कर रहे हैं कि यहां से परिवारवाद को समर्थन मिलने की उम्मीद बहुत कम है.
सलेमपुर से भी पूर्व सांसद हरिकेवल प्रसाद कुशवाहा के बेटे वर्तमान सांसद रविन्द्र कुशवाहा मैदान में हैं. लेकिन हरिकेवल कुशवाहा का राजनीतिक कद उतना बड़ा नहीं रहा कि सिर्फ उनके नाम पर राजनीति की जा सके. वरिष्ट पत्रकार अंबिकानंद सहाय का मानना है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हमेशा परिवारवाद पर हमालवर रहे हैं. ऐसे में जब वह वाराणसी से चुनाव लड़ रहे है तो बीजेपी में परिवार वाद को बढ़ावा मिलने का सवाल ही नहीं उठता. वहीं दूसरे राजनीतिक दल इस इलाके में परिवारवाद को बढ़ावा देकर बीजेपी को हमला करने का मौका नहीं देना चाहते.
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FIRST PUBLISHED : May 07, 2019, 18:31 IST