कभी घर के बड़े- बुजुर्ग चुनावी नतीजों पर दिग्गज पत्रकारों की बहस देखते थे, तो बच्चे ब्रेक के इंतजार में रहते थे कि सिनेमा, फिल्में और चित्रहार देख सकें.
एग्जिट पोल नरेंद्र मोदी सरकार को लौटा रहे हैं. कुछ लोग उस पर सवाल कर रहे हैं. कह रहे हैं 23 को देख लीजिएगा. लेकिन 23 को क्या देखेंगे. चित्रहार, सिनेमा या नेताओं की झांव-झांव, क्योंकि बुधवार को सुबह कहा जाने लगा कि लोक सभा चुनाव 2019 के नतीजे आने में समय लग सकते हैं. वो इसलिए कि पहले VVPAT पर्चों की गिनती होगी फिर EVM खुलेंगी.
लगा दिक्कत क्या है? पहले भी लगते थे. अस्सी के बाद के सालों की बात की जाय, जब घर-घर टीवी पहुंच गया था. तब तो मजा आ ही जाता था. घर के बड़े- बुजुर्ग नतीजों पर दिग्गज पत्रकारों की बहस देखते थे, तो बच्चे ब्रेक के इंतजार में रहते थे कि सिनेमा, फिल्में और चित्रहार देख सकें.
अगर ठीक से याद किया जाए तो 26 अगस्त 1984 को वाराणसी दूरदर्शन केंद्र का उद्घाटन उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था. हालांकि ये एक रिले सेंटर था. यानी लखनऊ और नेशनल नेटवर्क के प्रसारण को आस पास के इलाके में देखने लायक प्रसारण करता था. उसके बाद उत्तर प्रदेश समेत देश के तमाम शहरों में दूरदर्शन केंद्रों की शुरुआत हो गई.
उस दौर में बहुत से लोगों के यहां टेलीविजन खरीद लिया गया. 84 में ही आम चुनाव हुए. अभी ईवीएम नहीं आया था. लिहाजा बैलेट पेपर की गिनती होती थी. जाहिर है उसमें काफी वक्त लगता था. इस दरम्यान भारतीय चुनावों के पुरोधा के तौर पर डॉक्टर प्रणव रॉय और विनोद दुआ बतौर एंकर स्टूडियों में डट जाते.
आज की तरह झांव- झांव वाली बहस नहीं होती. डॉक्टर रॉय अंग्रेजी में तो दुआ तो हिंदी में अपनी बात कहते. स्टूडियो में मौजूद नेताओं से सवाल जवाब करते. उस समय सबको मालूम था कि छोटी जगहों में मोहल्ले के कुछ ही घरों में टीवी है. लिहाजा बहुत सारे लोग टीवी देख रहे हैं. कहीं चुनावी बहस से ऊब कर टीवी बंद न कर दें. या फिर ये भी हो सकता था कि 48 घंटे या 72 घंटे चलने वाली गिनती में आखिर क्या और कितनी बहस की जाएगी ?
इन सारी चीजों से बचने के लिए बहस घंटे दो घंटे चलने के बाद फिल्म चला दी जाती. अब उन टीवी लोगों का हो जाता जो फिल्में देखना चाहते. जहां तक याद आ रहा है घंटे भर बहस के बाद स्पेशल चित्रहार चला दिया जाता. ऊबाऊ चुनावी चरचा के बीच अचानक खत में फूल लेकर पर सुंदर नायिका के जाती थी. गाना चल पड़ता था फूल तुम्हे भेजा है खत में...
कई बार घर के बुजुर्ग बच्चों पर फिल्मी बुखार न चढ़े इसके डर से एहतियातन टीवी सेट गरम होने का बहाना देते और फिल्म या चित्रहार शुरू होते है टीवी बंद कर दिया कर दिया करते थे. फिर मतगणना अपडेट के समय टीवी खोल लिया जाता था. पहले बिजली भी कम ही आती थी. लिहाजा एक आदमी बल्ब की तरफ टकटकी लगाए या पानी की मोटर चालू करके बिजली आने की बाट जोहता रहता था. और आते ही सीधे टीवी सेट की तरफ दौड़ पड़ते थे. जब तक बिजली न हो तब तक रेडियो ही सहारा बचता.
ये दौर ब्लैक एंड ह्वाइट टीवी का था. बड़े टी वी सेट और ऊंचे ऊंचे एंटेना. ऊपर से बूस्टर लगा था फिर भी कभी कभी झिलमिल करता प्रसारण. लेकिन टीवी के आस पास ही रहना होता. गाना चल रहा है या फिल्म चल रही है तो वो खत्म होगा दूसरा हिस्सा खबर देने वाली बहस का शुरू होगा. जहां तक याद आता है उस चुनाव में खबरें भी बहस में ही दी जाती थी.
खबरों के बुलेटिन तो नियत थे और कम थे. फिर भी सब बाखर होते थे. पिछले चुनाव की बात की जाए तो दोपहर तक स्थिति साफ हो गई थी. ईवीएम को जोड़ कर बटन ही तो दबाना था. इस बार विपक्ष ने दबाव बनाया है. हर लोक सभा सीट की सारी विधान सभा सीटों के पांच पांच ईवीएम की पर्चियों यानी VVPAT का मिलान कराने की मांग की जा रही है.
विपक्ष ये भी मांग कर रहा है कि मिलान का ये काम पहले ही कर लिया जाय. अगर ईवीएम के वोटों की गिनती और VVPAT पर्चियों की गिनती में अंतर आ रहा हो तो सभी मशीनों के पर्चियों की गिनती कराई जाए. सूत्रों के हवाले से संवाददाता खबरें दे रहे हैं कि चुनाव आयोग ऐसा करने का मन भी बना रहा है. ताकी उसकी निष्पक्षता पर कोई शको सुबा न रहे.
अगर ये हुआ तो फिर वहीं पुराने दिन लौट आएंगे. बस गिनती और खबरों के बीच में गीत फिल्में नहीं होगी. होगी तो चिखते चिल्लाते एंकरों की झांव झांव. सत्ता और विपक्ष के प्रवक्ताओं के दावें, जिनके खरे उतरने में दो से तीन दिन न भी लगें लेकिन रात तो बीत ही जाएगी. यानी एग्जिट पोल और एक्जेक्ट पोल के नतीजों का पता करने में दो से तीन दिन लग सकते हैं.
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Tags: EVM, Lok Sabha Election Result 2019, Lucknow news, Uttar pradesh news, VVPAT
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