पर निशाना साधा है. साथ ही इशारों में योगी सरकार को भी घेरा है.
के सचिव पीके उपाध्याय ने प्रेस कांफ्रेंस कर बताया कि 8 जून 2016 को लोकायुक्त के टाईप 6 आवास को निरस्त किया गया था. इसके बाद लोकायुक्त को बिना किसी कारण के उनके स्तर से नीचे के टाईप 5 का आवास आवंटित किया था. हाईकोर्ट ने सरकार के फैसले पर दुख व्यक्त किया है. हाईकोर्ट ने साफ किया कि लोकायुक्त का पद राज्य सरकार के नियंत्रण में नहीं है.
उन्होंने कहा कि कोर्ट के मुताबिक प्रमुख सचिव राज्य संपत्ति और राज्य संपत्ति अधिकारी ने सब जानते हुए लोकायुक्त का आवास आवंटन निरस्त किया. प्रमुख सचिव और राज्य संपत्ति अधिकारी के खिलाफ हाईकोर्ट ने टिप्पणी की है. प्रमुख सचिव और राज्य संपत्ति अधिकारी को लोकायुक्त के स्तर की जानकारी न होना दुर्भाग्यपूर्ण है. महाधिवक्ता की राय को भी राज्य संपत्ति के प्रमुख सचिव ने दरकिनार किया. महाधिवक्ता की राय को बिना किसी कारण के नज़रंदाज़ किया गया.
उन्होंने कहा कि क्या लोकायुक्त द्वारा दिए संवेदनशील फैसलों को देखते हुए उनका आवास आवंटन निरस्त किया गया? लोकायुक्त प्रशासन में स्टाफ की कमी है. मात्र 3 जांच अधिकारी हैं.
6 अधिकारियों की मांग लंबे समय से की जा रही है. प्रतिनियुक्ति पर आए अधिकारियों को सुविधाएं नहीं मिल रही हैं. जांच अधिकारियों को वाहन और गार्ड तक नहीं मिलते हैं. लोकायुक्त को आवास जैसी छोटी वस्तु के लिए अपमानित किया गया.
उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने जो सवाल उठाए हैं, उसका जवाब सरकार दे. उन्होंने कहा कि आवास आवंटन निरस्त किया जाना पहेली है. लोकायुक्त और न्यायिक अधिकारियों पर ये दबाव बनाने की कोशिश हो सकती है. राज्य संपत्ति विभाग का एक मामला लोकायुक्त में पेंडिंग है. उन्होंने कहा कि हम मुख्य सचिव को फैसले की कॉपी भेजेंगे. इस सरकार के कई मंत्रियों और अधिकारियों की जांच लोकायुक्त के पास है.
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FIRST PUBLISHED : December 24, 2018, 14:29 IST