UP Panchayat Chunav: आरक्षण सूची ने बिगाड़े गांवों के सियासी समीकरण, सैकड़ों लोग हुए चुनाव से बाहर

अभी तक चुनावों में जो खर्च किये होंगे उसपर भी पानी फिर गया है.
आरक्षण (Reservation) की सूची जारी होने के साथ ही हजारों गावों में राजनीतिक समीकरण गड़बड़ा गया है. सबसे ज्यादा मुश्किल उन लोगों को हुई है जो चुनाव की तैयारी में जुट गये थे.
- News18 Uttar Pradesh
- Last Updated: March 3, 2021, 9:15 AM IST
लखनऊ. पंचायत चुनावों (Panchayat Elections) के लिए आरक्षण की सूची (Reservation list) ज्यादातर जिलों में जारी कर दी गयी है. जो जिले बच गये हैं उनमें सूची बुधवार को जारी कर दी जायेगी. जिला प्रशासन के द्वारा आरक्षण तय किये जाने से सैकड़ों लोग चुनावों से बाहर हो गए हैं. वे अब इस बार का पंचायत चुनाव नहीं लड़ पायेंगे. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि उनकी सीट जनरल से रिजर्व कोटे (Reserve quota) में चली गयी. इस वजह से ऐसे लोग इस चुनाव के लिए अपनी पात्रता खो बैठे हैं. ऐसे लोगों को कम से कम इस बार तो मन मसोसकर ही रहना पड़ेगा. अभी तक चुनावों में जो खर्च किये होंगे उस पर भी पानी फिर गया है.
आरक्षण की सूची जारी होने के साथ ही हजारों गावों में राजनीतिक समीकरण गड़बड़ा गया है. सबसे ज्यादा मुश्किल उन लोगों को हुई है जो चुनाव की तैयारी में जुट गये थे लेकिन, अब चुनाव से बाहर हो गये हैं. सैकड़ों की संख्या में सीटों की स्थिति बदल गयी है. 2015 के चुनाव में जो सीटें जनरल थीं उनमें से ज्यादातर की स्थिति बदल गयी है और सीटें इस बार रिजर्व हो गयी हैं. रोटेशन के हिसाब से वे या तो एससी में चली गयी हैं या फिर ओबीसी में. जो सीटें इन दो कैटेगरी से बच गयी हैं वे सामान्य महिला में चली गयी हैं. गाज़ीपुर जिले की सेंवराई और मेदनीपुर ग्राम पंचायतों में मातम पसरा है. ये दोनों ही सीट पिछले चुनाव में जनरल थी लेकिन, इस बार रिजर्व हो गयी है. ऐसे में यहां के मैक्सिमम कैण्डिडेट चुनाव से बाहर हो गये हैं.
फिर क्या होगा विकल्प
ऐसे सभी लोग जो सीट के रिजर्व हो जाने से चुनाव से बाहर हो गये हैं वे दूसरे विकल्प की तलाश में लग गये हैं. हमेशा से पंचायत के चुनाव में ऐसा होने पर अपने किसी खास आदमी को चुनाव लड़वाया जाता रहा है. इस बार भी बस यही विकल्प बचा है. ये ठिक वैसे ही है जैसे विधायक या सांसद जिला पंचायत के अध्यक्ष बनवाते रहे हैं. आरक्षण की सूची जारी होने के बाद ऐसे विकल्पों की तलाश तेज हो गयी है. ये नियम सभी को मालूम ही है कि रिजर्व कोटे से आने वाला कोई व्यक्ति किसी भी कैटेगरी की सीट पर चुनाव लड़ सकता है लेकिन, सामान्य वर्ग का कैण्डिडेट सिर्फ सामान्य सीट पर ही चुनाव लड़ सकता है. इसीलिए इसी वर्ग के लोगों के समीकरण डिस्टर्ब हुए हैं.
आरक्षण की सूची जारी होने के साथ ही हजारों गावों में राजनीतिक समीकरण गड़बड़ा गया है. सबसे ज्यादा मुश्किल उन लोगों को हुई है जो चुनाव की तैयारी में जुट गये थे लेकिन, अब चुनाव से बाहर हो गये हैं. सैकड़ों की संख्या में सीटों की स्थिति बदल गयी है. 2015 के चुनाव में जो सीटें जनरल थीं उनमें से ज्यादातर की स्थिति बदल गयी है और सीटें इस बार रिजर्व हो गयी हैं. रोटेशन के हिसाब से वे या तो एससी में चली गयी हैं या फिर ओबीसी में. जो सीटें इन दो कैटेगरी से बच गयी हैं वे सामान्य महिला में चली गयी हैं. गाज़ीपुर जिले की सेंवराई और मेदनीपुर ग्राम पंचायतों में मातम पसरा है. ये दोनों ही सीट पिछले चुनाव में जनरल थी लेकिन, इस बार रिजर्व हो गयी है. ऐसे में यहां के मैक्सिमम कैण्डिडेट चुनाव से बाहर हो गये हैं.
फिर क्या होगा विकल्प
ऐसे सभी लोग जो सीट के रिजर्व हो जाने से चुनाव से बाहर हो गये हैं वे दूसरे विकल्प की तलाश में लग गये हैं. हमेशा से पंचायत के चुनाव में ऐसा होने पर अपने किसी खास आदमी को चुनाव लड़वाया जाता रहा है. इस बार भी बस यही विकल्प बचा है. ये ठिक वैसे ही है जैसे विधायक या सांसद जिला पंचायत के अध्यक्ष बनवाते रहे हैं. आरक्षण की सूची जारी होने के बाद ऐसे विकल्पों की तलाश तेज हो गयी है. ये नियम सभी को मालूम ही है कि रिजर्व कोटे से आने वाला कोई व्यक्ति किसी भी कैटेगरी की सीट पर चुनाव लड़ सकता है लेकिन, सामान्य वर्ग का कैण्डिडेट सिर्फ सामान्य सीट पर ही चुनाव लड़ सकता है. इसीलिए इसी वर्ग के लोगों के समीकरण डिस्टर्ब हुए हैं.