यूपी चुनाव: गठबंधन की राजनीति में फंसी कांग्रेस से अपने ही हैं मायूस!

गठबंधन की सुगबुगाहट ने टिकट के दावेदारों को हिलाकर रख दिया है. ज्यादातर जिलों की स्थिति ये है कि कांग्रेस कार्यकर्ता खुद को हतोत्साहित महसूस कर रहे हैं.
गठबंधन की सुगबुगाहट ने टिकट के दावेदारों को हिलाकर रख दिया है. ज्यादातर जिलों की स्थिति ये है कि कांग्रेस कार्यकर्ता खुद को हतोत्साहित महसूस कर रहे हैं.
- Pradesh18
- Last Updated: January 12, 2017, 3:47 PM IST
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस गर्मियों में ही ताल ठोंककर चुनावी अखाड़े में कूद पड़ी थी लेकिन जैसे-जैसे सर्दी बढ़ती गई, उसका चुनावी अभियान सुस्त पड़ता गया. अब आलम ये है कि कांग्रेस पूरी तरह से गठबंधन की राजनीति पर ही आश्रित होती दिखाई दे रही है. दूसरी तरफ गठबंधन की सुगबुगाहट ने टिकट के दावेदारों को हिलाकर रख दिया है. ज्यादातर जिलों की स्थिति ये है कि कांग्रेस कार्यकर्ता खुद को हतोत्साहित महसूस कर रहे हैं.
पिछले दिनों पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने गठबंधन की अटकलों के बीच इशारा किया था कि अभी उनकी किसी से बात नहीं हुई है. वह सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. यही नहीं राजबब्बर ने कहा था कि हम सभी 403 सीटों पर प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया अपना रहे हैं. हम प्रत्याशियों के नाम चुनकर केन्द्रीय कमेटी को भेजेंगे. किसी सीट पर चार, कहीं तीन, कहीं पांच लोग टिकट के इच्छुक हैं. अच्छी बात यह है कि वे सभी मजबूत हैं. हम उनकी विशेषताएं सामने रखकर केन्द्रीय कमेटी को भेजेंगे.
लेकिन दूसरी तरफ पार्टी महासचिव और प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद समेत कई वरिष्ठ नेता एसपी से गठबंधन के पक्ष में दिख रहे हैं.
सूत्रों के अनुसार सपा से गठबंधन को लेकर कांग्रेस में भी दो गुट बन चुके हैं. एक गुट चाहता है कि मुलायम सिंह यादव गुट से ही कांग्रेस समझौता करे, क्योंकि जातियों की गणित के मामले में यह गुट ज्यादा मजबूत है.लेकिन दूसरा गुट इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता. उसका कहना है कि चूंकि मुलायम सिंह यादव की तरफ से अभी तक कांग्रेस के साथ गठबंधन की बात को दरकिनार ही किया है, यही नहीं मुलायम ने पिछले दिनों कार्यकर्ताओं के बीच जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की, वह भी इन नेताओं के गले नहीं उतर रही.
उनका साफ कहना है कि अखिलेश ही सपा का भविष्य हैं और उनकी छवि का लाभ कहीं न कहीं कांग्रेस उठा सकती है. रही बात मुस्लिम वोट बैंक की तो उसका रुझान भी अखिलेश गुट की तरफ ही दिख रहा है. इसके अलावा कांग्रेस से गठबंधन को लेकर अखिलेश यादव खुद कई बार सकारात्मक रुख दिखा चुके हैं. वह कई बार कह चुके हैं कि कांग्रेस के साथ गठबंधन होता है तो पार्टी 300 से ज्यादा सीटें जीत पाने में सफल रहेगी.
गठबंधन की इस पूरी कवायद के बीच पार्टी में एक धड़ा ऐसा भी है, जो इस कदम को दूरगामी परिणाम देने वाला नहीं मानता. उसका मानना है कि आज कांग्रेस की जो स्थिति है, इससे सिर्फ उपर ही उठा जा सकता है. हमें सभी सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ना चाहिए. हो सकता है कि परिणाम विपरीत जाए लेकिन भविष्य के लिए पार्टी के लिए ये कदम मजबूती का काम ही करेगा.
उधर सबसे ज्यादा असमंजस में वे नेता हैं, जो कई दिनों से क्षेत्र में काम कर रहे थे और टिकट के दावेदारों मे उनके नाम भी शामिल हैं. पश्चिम उत्तर प्रदेश के एक कांग्रेस नेता कहते हैं कि कांग्रेस के लिए शॉर्टकट का रास्ता छोड़ना अब जरूरी हो गया है. दरअसल आज जिस भी पार्टी से गठबंधन की बात होती है, उनके वोट बैंक पर नजर डालें तो सब कांग्रेस के ही वोट बैंक हुआ करते थे. बजाए उस वोट बैंक को तोड़ने के हम उन्हीं पार्टियों के साथ गठबंधन करते हैं, जो कि गलत है. इस गठबंधन का असर पार्टी के उस कैडर पर सबसे ज्यादा पड़ता है, जो क्षेत्र में दिन रात पार्टी का झंडा उठाए हुए है.
पिछले दिनों पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने गठबंधन की अटकलों के बीच इशारा किया था कि अभी उनकी किसी से बात नहीं हुई है. वह सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. यही नहीं राजबब्बर ने कहा था कि हम सभी 403 सीटों पर प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया अपना रहे हैं. हम प्रत्याशियों के नाम चुनकर केन्द्रीय कमेटी को भेजेंगे. किसी सीट पर चार, कहीं तीन, कहीं पांच लोग टिकट के इच्छुक हैं. अच्छी बात यह है कि वे सभी मजबूत हैं. हम उनकी विशेषताएं सामने रखकर केन्द्रीय कमेटी को भेजेंगे.
लेकिन दूसरी तरफ पार्टी महासचिव और प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद समेत कई वरिष्ठ नेता एसपी से गठबंधन के पक्ष में दिख रहे हैं.
सूत्रों के अनुसार सपा से गठबंधन को लेकर कांग्रेस में भी दो गुट बन चुके हैं. एक गुट चाहता है कि मुलायम सिंह यादव गुट से ही कांग्रेस समझौता करे, क्योंकि जातियों की गणित के मामले में यह गुट ज्यादा मजबूत है.लेकिन दूसरा गुट इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता. उसका कहना है कि चूंकि मुलायम सिंह यादव की तरफ से अभी तक कांग्रेस के साथ गठबंधन की बात को दरकिनार ही किया है, यही नहीं मुलायम ने पिछले दिनों कार्यकर्ताओं के बीच जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की, वह भी इन नेताओं के गले नहीं उतर रही.
उनका साफ कहना है कि अखिलेश ही सपा का भविष्य हैं और उनकी छवि का लाभ कहीं न कहीं कांग्रेस उठा सकती है. रही बात मुस्लिम वोट बैंक की तो उसका रुझान भी अखिलेश गुट की तरफ ही दिख रहा है. इसके अलावा कांग्रेस से गठबंधन को लेकर अखिलेश यादव खुद कई बार सकारात्मक रुख दिखा चुके हैं. वह कई बार कह चुके हैं कि कांग्रेस के साथ गठबंधन होता है तो पार्टी 300 से ज्यादा सीटें जीत पाने में सफल रहेगी.
गठबंधन की इस पूरी कवायद के बीच पार्टी में एक धड़ा ऐसा भी है, जो इस कदम को दूरगामी परिणाम देने वाला नहीं मानता. उसका मानना है कि आज कांग्रेस की जो स्थिति है, इससे सिर्फ उपर ही उठा जा सकता है. हमें सभी सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ना चाहिए. हो सकता है कि परिणाम विपरीत जाए लेकिन भविष्य के लिए पार्टी के लिए ये कदम मजबूती का काम ही करेगा.
उधर सबसे ज्यादा असमंजस में वे नेता हैं, जो कई दिनों से क्षेत्र में काम कर रहे थे और टिकट के दावेदारों मे उनके नाम भी शामिल हैं. पश्चिम उत्तर प्रदेश के एक कांग्रेस नेता कहते हैं कि कांग्रेस के लिए शॉर्टकट का रास्ता छोड़ना अब जरूरी हो गया है. दरअसल आज जिस भी पार्टी से गठबंधन की बात होती है, उनके वोट बैंक पर नजर डालें तो सब कांग्रेस के ही वोट बैंक हुआ करते थे. बजाए उस वोट बैंक को तोड़ने के हम उन्हीं पार्टियों के साथ गठबंधन करते हैं, जो कि गलत है. इस गठबंधन का असर पार्टी के उस कैडर पर सबसे ज्यादा पड़ता है, जो क्षेत्र में दिन रात पार्टी का झंडा उठाए हुए है.