भारतीय जनता पार्टी. (फाइल फोटो )
ममता त्रिपाठी
लखनऊ. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा (BJP)) ने मिशन-2024 की शुरुआत कर दी है. राज्यसभा के चुनाव हों या विधान परिषद चुनाव, प्रत्याशियों का चयन भविष्य की राजनीति के हिसाब से किया गया है. पार्टी ने संगठन में काम करने वाले कार्यकर्ताओं को उनकी निष्ठा के चलते तरजीह दी है, साथ ही 2024 के लोकसभा चुनाव को भी ध्यान में रखकर सोशल इंजीनियरिंग की है. साथ ही महिला वोटर और महिला कार्यकर्ता दोनों पर ही पार्टी का फोकस सबसे ज्यादा है. वहीं दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने जातीय समीकरण को साधने की कोशिश तो की है मगर खेमेबंदी के चलते गठबंधन में दरार पड़ती दिख रही है, प्रत्याशियों के चयन में आजम खान की नाराजगी का डर और प्रोफेसर रामगोपाल का दबदबा सबसे ज्यादा दिख रहा है.
पार्टी संगठन में काम करने वाले नेताओं को भूलती नहीं
भाजपा ने विधान सभा चुनाव में बेहतरीन काम करने वाले नेताओं को जब मंत्री बनाया तभी ये तय हो गया था कि पार्टी का अपने कार्यकर्ताओं को ये साफ संदेश है कि पार्टी संगठन में और जमीनी स्तर पर काम करने वाले नेताओं को भूलती नहीं है, कड़ी मेहनत के बाद ही सरकार में बैठने का सुख मिलता है. जसवंत सैनी और नरेंद्र कश्यप दोनों नेताओं ने चुनाव के दौरान पिछड़े वर्ग को पार्टी से जोड़ने का काम बहुत अच्छे से किया जिसके बदले पार्टी ने उन्हें मंत्री बनाया.
हर जाति वर्ग के प्रत्याशी को भेजा विधानपरिषद
भाजपा ने समाज के हर जाति वर्ग को अपनी सूची में जगह दी है, 4 ओबीसी, 1 ब्राहमण, 1 दलित, 1 मुस्लिम, 1 क्षत्रिय को विधान परिषद भेजा है. साथ ही विधान सभा चुनावों में भी हर वर्ग के लोगों को टिकट दिया था जिससे लोगों में भाजपा के प्रति विश्वास पैदा हो. वहीं समाजवादी पार्टी ने 2 ओबीसी और दो मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं जिसके बाद से सपा में अंदरखाने बवाल मचा हुआ है.
बनवारी लाल को विधान परिषद भेजकर दिया संदेश
पार्टी ने कन्नौज से आने वाले बनवारी लाल दोहरे को भी उच्चसदन भेजा है. बनवारी लाल भाजपा के पुराने नेता रहे हैं और 1991,1993, 1996 में कन्नौज से विधायक रहे हैं. मगर इस बार पार्टी ने पूर्व आईपीएस असीम अरुण को इस सीट से लड़ाया और ये दांव सपा पर भारी पड़ गया. लेकिन पार्टी ने पुराने नेता बनवारी लाल को विधान परिषद भेजकर अपने कार्यकर्ताओं और दोहरे समाज दोनों को ये संदेश दे दिया कि पार्टी सबका साथ में विश्वास रखती है. कुछ ऐसा ही हाल केशव मौर्य के साथ भी रहा है.
महेश शर्मा के जरिए ब्राह्मण समाज को साधने की भी कोशिश
उत्तर प्रदेश के हर चुनाव में ब्राह्मण समाज खुद को उपेक्षित किए जाने की बातें उठाता रहा है. सपा ने भगवान परशुराम के बहाने चुनाव में इसे एक मुद्दा बनाने की कोशिश भी की मगर सफल नहीं हो पायी.आपको बता दें कि योगी सरकार में 7 ब्राह्मण मंत्री हैं. भाजपा ने लखनऊ महानगर अध्यक्ष महेश शर्मा के जरिए ब्राह्मण समाज को साधने की भी कोशिश की. हालांकि शर्मा भी विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे थे. पूरे लखनऊ में कैंट क्षेत्र से चुनाव लड़ने की चर्चा भी थी. मगर अनुशासित कार्यकर्ता की तरह उन्होंने संगठन में रहकर लगातार पार्टी के लिए काम किया और पार्टी उन्हें विधान परिषद भेज रही है.
लोकसभा में 75 सीटों को जीतने का लक्ष्य
बाकी सारे दल जहां अंदरूनी कलह का निपटारा कर रहे हैं, वहीं भाजपा आने वाले चुनाव की रणनीति पर काम कर रही है. अभी विधानसभा चुनाव बीते महज तीन महीने हुए हैं मगर पार्टी ने संगठन और सरकार के स्तर पर मिशन-24 पर काम करना शुरू भी कर दिया है. इस बार भाजपा ने प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 75 सीटों को जीतने का लक्ष्य रखा है. विधान परिषद भेजे जाने वाले प्रत्याशी भी उसी मिशन का एक हिस्सा हैं.
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