UP Panchayat Chunav: दलीय राजनीति से दूर पंचायत चुनाव, फिर भी जीत का दावा कैसे ठोकती हैं पार्टियां

आम आदमी पार्टी इस बार इन चुनावों में नयी है. पार्टी के प्रवक्ता वैभव माहेश्वरी ने कहा कि उनके समर्थित कैण्डिडेट दोनों सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. (सांकेतिक फोटो)
UP Panchayat Elections 2021: गांव की सरकार चुनने के लिए होने वाले चुनाव यानी पंचायत इलेक्शन से राजनीतिक पार्टियों को दूर रखने के पीछे संवैधानिक सोच. जानें लोकतंत्र की इस अनूठी व्यवस्था के बारे में...
- News18 Uttar Pradesh
- Last Updated: March 3, 2021, 11:05 AM IST
लखनऊ. राजनीतिक दलों को आखिर पंचायत चुनाव (UP Panchayat Election) लड़ने की मनाही क्यों है ? पंचायत चुनाव आखिर पार्टी सिंबल (Party symbol) के आधार पर क्यों नहीं होते. फिर कैसे राजनीतिक पार्टियां पंचायत के चुनावों में अपनी- अपनी जीत का दावा करती हैं ? ये सवाल तो लाख टके के हैं लेकिन, इसके पीछे एक बड़ी मंशा है जिसकी वजह से ये व्यवस्था की गयी है.
प्रसिद्ध संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि कारण तो बहुत हैं. राजनीतिक पार्टियां जिन चुनावों में उतरती हैं उसकी गंदगी को गांवों से दूर रखने का एक बड़ा उद्देश्य इसके पीछे काम करता है. विधानसभा से लेकर एमपी तक के इलेक्शन में जिस साम, दाम, दण्ड, भेद का इस्तेमाल होता है, उससे बचाव के लिए राजनीतिक पार्टियों को इन चुनावों से दूर ऱखा गया है.
इसके अलावा एक और बड़ा फैक्टर है. पंचायत चुनावों में गांव की सरकार बनती है. यदि इसमें भी राजनीतिक दल घुस जाएंगे तो फिर टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव के मुद्दे पूरे सूबे में एक जैसे हो जाएंगे. फिर से वही केन्द्रीकृत व्यवस्था काम करने लगेगी. जैसा लखनऊ और दिल्ली से कहा जाएगा, वैसा ही होने लगेगा. ऐसे में गांव की सरकार के चुनाव में विकेन्द्रीकरण का बरकरार रहना जरूरी है, जिससे उसकी शुचिता बनी रही. कम से कम जाति और धर्म के आधार पर तो पंचायत के इलेक्शन नहीं ही होते हैं.
प्रसिद्ध संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि कारण तो बहुत हैं. राजनीतिक पार्टियां जिन चुनावों में उतरती हैं उसकी गंदगी को गांवों से दूर रखने का एक बड़ा उद्देश्य इसके पीछे काम करता है. विधानसभा से लेकर एमपी तक के इलेक्शन में जिस साम, दाम, दण्ड, भेद का इस्तेमाल होता है, उससे बचाव के लिए राजनीतिक पार्टियों को इन चुनावों से दूर ऱखा गया है.
इसके अलावा एक और बड़ा फैक्टर है. पंचायत चुनावों में गांव की सरकार बनती है. यदि इसमें भी राजनीतिक दल घुस जाएंगे तो फिर टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव के मुद्दे पूरे सूबे में एक जैसे हो जाएंगे. फिर से वही केन्द्रीकृत व्यवस्था काम करने लगेगी. जैसा लखनऊ और दिल्ली से कहा जाएगा, वैसा ही होने लगेगा. ऐसे में गांव की सरकार के चुनाव में विकेन्द्रीकरण का बरकरार रहना जरूरी है, जिससे उसकी शुचिता बनी रही. कम से कम जाति और धर्म के आधार पर तो पंचायत के इलेक्शन नहीं ही होते हैं.
पंचायत चुनावों में ऐसे होता है खेल
पंचायत चुनावों में राजनीतिक दलों का खेल समझिये. उन्हें 6 में से 2 ही सीटों में दिलचस्पी होती है. ये दोनों सीटें बहुत अहम होती हैं. पहली जिला पंचायत सदस्य और दूसरी जिला पंचायत अध्यक्ष. एक जिले में जिला पंचायत अध्यक्ष विधायक और सांसद से भी बड़ा माना जाता है, क्योंकि एक जिले में पंचायत अध्यक्ष एकलौता होता है, जबकि उसी जिले में एक से ज्यादा विधायक और सांसद होते हैं. ऐसे में जिला पंचायत अध्यक्ष पर राजनीतिक दल दांव लगाते हैं. जिला पंचायत सदस्य पर इसलिए दांव लगाते हैं, क्योंकि सदस्य पद पर जीतने वाला है अध्यक्ष का चुनाव लड़ सकता है.