मकर संक्रांति पर ब्रज में खेला जाता है खद्दा लौठी, ये है परंपरा

मकर संक्रांति पर ब्रज के गांवों में खेला जाता है पारंपरिक खेल.
Makar Sankranti 2021: बरसाना, पिसावा, चिकसौली सहित ब्रज के गई गांव हैं जहां आज भी खद्दा लौठी खेलने की इस परंपरा को निभाया जा रहा है. मकर संक्रांति के दिन गांव के युवक इकठ्ठे होकर खद्दा लौठी खेल खेलने जाते हैं और गांव के अन्य लोग यह खेल देखते हैं. मान्यता है कि इस खेल को खेलने का भी एक उद्धेश्य है.
- News18Hindi
- Last Updated: January 14, 2021, 9:32 AM IST
नई दिल्ली. फाल्गुन में ब्रज के बरसाना की लठामार होली, जन्माष्टमी पर कृष्ण जन्मोत्सव, राधाष्टमी पर आनंदोत्सव, अधिकमास और कार्तिक महीने में वृंदावन, गोवर्धन की परिक्रमा आदि ऐसे उत्सव और पर्व हैं जिन्हें मनाने के लिए देशभर से लोग ब्रज क्षेत्र में पहुंचते हैं. मंदिरों में दर्शन करते हैं लेकिन ब्रज में कुछ ऐसी परंपराएं भी हैं जिन्हें सिर्फ ब्रज के लोग ही जानते हैं उनका पालन करते हैं.
मकर संक्रांति (Makar Sankranti) हिन्दुओं का बड़ा पर्व है जो देशभर में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है. 14 जनवरी का दिन जप, तप, दान-पुण्य के लिए सबसे उत्तम कहा जाता है. यही वजह है कि देशभर में इस त्यौहार के दिन लोग गंगा-यमुना आदि नदियों में स्नान कर तिल-गुड़-मूंगफली,कपड़ों का दान करते हैं. लेकिन ब्रज में इसे बड़े ही आनंद से मनाया जाता है. इस दिन ब्रज के गांवों में खद्दा लौठी खेल खेलने की पुरानी परंपरा है.
बरसाना (Barsana), पिसावा, चिकसौली सहित ब्रज (Brij) के गई गांव हैं जहां आज भी इस परंपरा को निभाया जा रहा है. मकर संक्रांति के दिन गांव के युवक इकठ्ठे होकर खद्दा लौठी खेल खेलने जाते हैं और गांव के अन्य लोग यह खेल देखते हैं. मान्यता है कि इस खेल को खेलने का भी एक उद्धेश्य है.
ब्रज की परंपराओं के जानकार योगेंद्र सिंह छोंकर बताते हैं कि यह हॉकी से ही मिलता जुलता खेल है. इसके लिए गांव के युवा कपड़े की गेंद खुद ही बनाते हैं. यह गेंद हॉकी या क्रिकेट की गेंद से कुछ बड़ी होती है. फिर सभी अपने-अपने डंडों से गेंद को अपने पाले में करने की कोशिश करते हुए यह खेल खेलते हैं.छोंकर कहते हैं कि इस खेल के लिए बड़ी भूमि चाहिए होती है तो आमतौर पर गांवों में वन विभाग की आरक्षित भूमि पर ही ये खेल खेला जाता है. चूंकि मकर संक्रांति के दिन से सूर्य का ताप बढ़ने लगता है. प्रकाश बढ़ता है और सर्दी व अंधकार कम होना शुरू हो जाते हैं. ऐसे में यह गर्म मौसम के आगमन की खुशी में खेला जाता है. इस दिन के बाद से सभी बड़े-बुजुर्ग बच्चों को भी खेलने की अनुमति दे देते हैं.
सिंह बताते हैं कि बरसाना में गहवरवन की परिक्रमा (Parikrama) लगाई जाती है. ऐसे में चिकसौली गांव की भूमि में यह खेल खेला जाता रहा है. इसके अलावा पिसावा गांव में अश्वत्थामा की झाड़ी है, वहां भी परिक्रमा लगती है, वहां की रक्षित भूमि में भी यह खेला जाता है.
वे कहते हैं कि कुछ साल पहले तक वे खुद भी यह खेल खेलने के लिए गांवों में जाते थे. हालांकि अब ब्रज के कई क्षेत्रों से यह लुप्त होता जा रहा है. फिर भी कुछ गांव हैं जो इस परंपरा को अभी भी निभा रहे हैं.
मकर संक्रांति (Makar Sankranti) हिन्दुओं का बड़ा पर्व है जो देशभर में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है. 14 जनवरी का दिन जप, तप, दान-पुण्य के लिए सबसे उत्तम कहा जाता है. यही वजह है कि देशभर में इस त्यौहार के दिन लोग गंगा-यमुना आदि नदियों में स्नान कर तिल-गुड़-मूंगफली,कपड़ों का दान करते हैं. लेकिन ब्रज में इसे बड़े ही आनंद से मनाया जाता है. इस दिन ब्रज के गांवों में खद्दा लौठी खेल खेलने की पुरानी परंपरा है.
बरसाना (Barsana), पिसावा, चिकसौली सहित ब्रज (Brij) के गई गांव हैं जहां आज भी इस परंपरा को निभाया जा रहा है. मकर संक्रांति के दिन गांव के युवक इकठ्ठे होकर खद्दा लौठी खेल खेलने जाते हैं और गांव के अन्य लोग यह खेल देखते हैं. मान्यता है कि इस खेल को खेलने का भी एक उद्धेश्य है.
ब्रज की परंपराओं के जानकार योगेंद्र सिंह छोंकर बताते हैं कि यह हॉकी से ही मिलता जुलता खेल है. इसके लिए गांव के युवा कपड़े की गेंद खुद ही बनाते हैं. यह गेंद हॉकी या क्रिकेट की गेंद से कुछ बड़ी होती है. फिर सभी अपने-अपने डंडों से गेंद को अपने पाले में करने की कोशिश करते हुए यह खेल खेलते हैं.छोंकर कहते हैं कि इस खेल के लिए बड़ी भूमि चाहिए होती है तो आमतौर पर गांवों में वन विभाग की आरक्षित भूमि पर ही ये खेल खेला जाता है. चूंकि मकर संक्रांति के दिन से सूर्य का ताप बढ़ने लगता है. प्रकाश बढ़ता है और सर्दी व अंधकार कम होना शुरू हो जाते हैं. ऐसे में यह गर्म मौसम के आगमन की खुशी में खेला जाता है. इस दिन के बाद से सभी बड़े-बुजुर्ग बच्चों को भी खेलने की अनुमति दे देते हैं.
सिंह बताते हैं कि बरसाना में गहवरवन की परिक्रमा (Parikrama) लगाई जाती है. ऐसे में चिकसौली गांव की भूमि में यह खेल खेला जाता रहा है. इसके अलावा पिसावा गांव में अश्वत्थामा की झाड़ी है, वहां भी परिक्रमा लगती है, वहां की रक्षित भूमि में भी यह खेला जाता है.
वे कहते हैं कि कुछ साल पहले तक वे खुद भी यह खेल खेलने के लिए गांवों में जाते थे. हालांकि अब ब्रज के कई क्षेत्रों से यह लुप्त होता जा रहा है. फिर भी कुछ गांव हैं जो इस परंपरा को अभी भी निभा रहे हैं.
ब्रज में खिचड़ी भोग भी है एक परंपरा
सिंह कहते हैं कि मकर संक्रांति पर पूरे देश में खिचड़ी बनाने की मान्यता है लेकिन ब्रज में खिचड़ी भोग की अलग परंपरा है. यहां संक्रांति से 15 दिन पहले ही मंदिरों में खिचड़ी का भोग ठाकुर जी को लगना शुरू हो जाता है और यह उत्सव 15 दिन बाद तक चलता है.