हस्तिनापुर के पांडव टीले पर वर्ष 1952 के बाद एक बार फिर शुरू हुआ उत्खनन का कार्य फिलहाल बंद कर दिया गया है.
मेरठ. उत्तर प्रदेश के मेरठ में स्थित हस्तिनापुर के पांडव टीले पर वर्ष 1952 के बाद एक बार फिर शुरू हुआ उत्खनन का कार्य फिलहाल बंद कर दिया गया है. अधीक्षण पुरात्तवविद डॉक्टर डीबी गणनायक ने बताया कि फिलहाल दो महीने बाद खुदाई के कार्य को बंद किया जा रहा है, लेकिन बहुत जल्द उत्खनन के क्षेत्र को पर्यटकों के लिए डेवलेप किया जाएगा. उन्होंने बताया कि फिलहाल यहां अब साइंटिफिक डेटिंग और साफ सफाई का ही कार्य चल रहा है. उन्होंने बताया कि अब तक की खुदाई में जो मिला है उसे संरक्षित किया जाएगा और जल्द ही उत्खनन वाली साइट को आम लोगों को देखने के लिए खोला जाएगा. उन्होंने बताया कि उत्खनन क्षेत्र के चारों ओर ग्रिल लगाई जाएगी. जैसे ही ग्रिल लगाने का कार्य पूर्ण होगा, उत्खनन वाले स्थल को आम लोगों के लिए खोल दिया जाएगा.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. डीबी गड़नायक के निर्देशन में पांडव टीला पर दो स्थानों पर उत्खनन शुरू हुआ था. इस दौरान काफी प्राचीन अवशेष प्राप्त हुए हैं. 10 मीटर की गहराई तक किए गए उत्खनन में धूसर चित्रित मृदभांड से लेकर मध्यकाल की संस्कृति का जमाव पाया गया है. छह स्तर में मिट्टी के गोलाकार आकृति से लेकर पक्के निर्माण भी प्राप्त हुए हैं. मिट्टी के घर लगभग साढ़े तीन हजार साल पुराने प्रतीत होते हैं, जबकि पक्के निर्माण लगभग ढाई हजार वर्ष से मध्यवर्ती काल तक के होने का अनुमान लगाया जा रहा है. उत्खनन में ब्लॉक से अलंकृत स्तंभ, पिलर में लगने वाला सजावटी हिस्सा मिला है. इसके अलावा एक कुंड में भारी मात्रा में हड्डियां प्राप्त हुई हैं.
डॉ. गणनायक का कहना है कि यह स्थान पौराणिक संस्कृति का केंद्र रहा होगा. यहां मंदिर होने से भी इन्कार नहीं किया जा सकता. आसपास की गतिविधियां देखने से लगता है कि यहां पर धार्मिक अनुष्ठान होते रहे होंगे. डॉ. गणनायक का कहना है फिलहाल मुख्य साइट पर अब तक हुई खोदाई का अध्ययन किया जाएगा.
मेरठ से चालीस किलोमीटर दूर हस्तिनापुर के पांडव टीले पर चल रही खुदाई में पुरातत्व विभाग की टीम को बीते दिनों पुराने मंदिर के स्तंभ का एक अवशेष मिला है. पुरातत्व विभाग की टीम ने जांच के लिए इसे जांच के लिए सुरक्षित रख लिया है. साथ ही अन्य अवशेषों की जांच में जुट गई है. करीब तीन फीट वाले मंदिर के स्तंभ का अवशेष मिलने से आसपास बड़े और प्राचीन मंदिर के होने की संभावना जताई जा रही है.
खुदाई से निकला यह स्तंभ 10वीं से 11वीं शताब्दी के बीच का माना जा रहा है. खुदाई में निकले इस अलंकृत मंदिर के पिलर के अवशेष को मिलते ही पुरातत्व विभाग की टीम है और अन्य अवशेषों को भी तलाश रही है विशेषज्ञों का मानना है कि यहां पर प्राचीन समय में मंदिर होने की भी संभावना है. ऐसी हर संभावना को देखते हुए पुरातत्व विभाग की टीम अन्य प्राचीन तथ्यों को खोजने के लिए भरसक प्रयास कर रही है. अभी तक पांडव टीले पर अलग-अलग ट्रेंच खुदाई के लिए लगाए गए हैं. इससे पहले पांडव टीले की खुदाई में मृदभांड, प्राचीन समय के हड्डियों के अवशेष, कांच और शंख की चूड़ियां, सहित प्राचीन चित्रित मृदभांड प्राप्त हुए हैं.
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