लोकगायिका हेमा नेगी कासरी ने युवाओं को संस्कृति संग आगे बढ़ने की दी सलाह, अपनी सफलता का श्रेय परिवार को दिया
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Agency:Local18
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लोकगायिका हेमा नेगी कासरी ने युवाओं को अपनी संस्कृति को प्राथमिकता देने की सलाह दी. उन्होंने बताया कि परिवार के समर्थन से उन्होंने 50 से अधिक एल्बम बनाए.
Uttarakhand Folk Singer: मेरठ गढ़वाल सभा के कार्यक्रम में उत्तराखंड की मशहूर लोकगायिका हेमा नेगी कासरी ने लोकल-18 से खास बातचीत में कहा कि जो भी नौजवान ज़िंदगी में कुछ करना चाहते हैं उन्हें किसी और को फॉलो नहीं करना चाहिए. अपने रास्ते पर चलते रहें तो कामयाबी ज़रूर मिलेगी और आप दूसरे नौजवानों के लिए भी प्रेरणा बनेंगे.
अपनी संस्कृति के साथ आगे बढ़े युवा
हेमा नेगी कासरी ने बताया कि वो अपने कल्चर और लोकगीतों को बहुत मानती हैं और उन्हें आगे बढ़ा रही हैं. उनका कहना है कि उत्तराखंड की संस्कृति पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना रही है. वो जहां भी जाती हैं, वहां उत्तराखंड के लोकगीत सुनाती हैं, जिन पर लोग खूब नाचते हैं. हेमा जी का मानना है कि बॉलीवुड में भले ही कई तरह के गाने बनते हों, लेकिन अपने कल्चर पर आधारित लोकगीतों का अपना अलग ही भाव होता है जो हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है.
हेमा नेगी कासरी ने बताया कि वो अपने कल्चर और लोकगीतों को बहुत मानती हैं और उन्हें आगे बढ़ा रही हैं. उनका कहना है कि उत्तराखंड की संस्कृति पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना रही है. वो जहां भी जाती हैं, वहां उत्तराखंड के लोकगीत सुनाती हैं, जिन पर लोग खूब नाचते हैं. हेमा जी का मानना है कि बॉलीवुड में भले ही कई तरह के गाने बनते हों, लेकिन अपने कल्चर पर आधारित लोकगीतों का अपना अलग ही भाव होता है जो हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है.
परिवार के साथ से मिलता है मुकाम
लोकगायिका हेमा नेगी कारसी बताती हैं कि उन्हें बचपन से ही गाने का बहुत शौक था. उनके परिवार ने इस शौक में उनका पूरा साथ दिया. 2005 में उनकी पहली एल्बम ‘क्या बुन तब’ आई. शादी के बाद उनके पति ने भी उनके गीत सुनकर उन्हें आगे बढ़ने में बहुत मदद की. 2011-12 में उनकी एल्बम ‘माई मठियाणा देवी’ आई, जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया. 2013 में ‘गिर गेंदवा’ गाने ने हेमा को लोकगीतों में खूब पहचान दिलाई. अब तक वह 50 से ज़्यादा एल्बम में गीत गा चुकी हैं. न्यूजीलैंड, इंग्लैंड जैसे देशों में भी उनके पहाड़ी गीतों को बहुत पसंद किया जाता है.
लोकगायिका हेमा नेगी कारसी बताती हैं कि उन्हें बचपन से ही गाने का बहुत शौक था. उनके परिवार ने इस शौक में उनका पूरा साथ दिया. 2005 में उनकी पहली एल्बम ‘क्या बुन तब’ आई. शादी के बाद उनके पति ने भी उनके गीत सुनकर उन्हें आगे बढ़ने में बहुत मदद की. 2011-12 में उनकी एल्बम ‘माई मठियाणा देवी’ आई, जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया. 2013 में ‘गिर गेंदवा’ गाने ने हेमा को लोकगीतों में खूब पहचान दिलाई. अब तक वह 50 से ज़्यादा एल्बम में गीत गा चुकी हैं. न्यूजीलैंड, इंग्लैंड जैसे देशों में भी उनके पहाड़ी गीतों को बहुत पसंद किया जाता है.
अपनी संस्कृति को आगे बढाएं युवा
हेमा नेगी कारसी जी कहती हैं कि पहले हमारे पहाड़ी युवा उत्तराखंड से बाहर जाने से कतराते थे. लेकिन आजकल वो अपनी संस्कृति को अपनाकर देश के कोने-कोने में लोगों से जुड़ रहे हैं. उन्होंने युवाओं से अपील की है कि वो अपने हुनर को पहचानें और उसे देश-विदेश तक पहुंचाएं. साथ ही उन्होंने परिवारों से भी कहा है कि वो अपने बच्चों का पूरा साथ दें.
हेमा नेगी कारसी जी कहती हैं कि पहले हमारे पहाड़ी युवा उत्तराखंड से बाहर जाने से कतराते थे. लेकिन आजकल वो अपनी संस्कृति को अपनाकर देश के कोने-कोने में लोगों से जुड़ रहे हैं. उन्होंने युवाओं से अपील की है कि वो अपने हुनर को पहचानें और उसे देश-विदेश तक पहुंचाएं. साथ ही उन्होंने परिवारों से भी कहा है कि वो अपने बच्चों का पूरा साथ दें.
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