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गंगापुत्र भीष्म जब भी होते थे परेशान, मेरठ के इस जगह करते थे मां का ध्यान; आज भी गवाही देते हैं निशान

हस्तिनापुर में विभिन्न पौराणिक ऐतिहासिक तथ्य देखने को मिलेंगे, कुछ इसी तरह का ऐतिहासिक उल्लेख है द्रौपदेश्वर मंदिर का भ ...अधिक पढ़ें

रिपोर्ट- विशाल भटनागर
मेरठ.
मेरठ से लगभग 45 किलोमीटर दूर हस्तिनापुर अपने आप में विभिन्न पौराणिक और ऐतिहासिक रहस्यों को समेटे हुए है. जिनकी खोज के लिए पुरातत्व विभाग और इतिहासकार लगे हुए हैं. कुछ इसी तरह का वर्णन मध्य गंग नहर किनारे स्थित द्रोपदेश्वर मंदिर का भी देखने को मिलता है. जिसके बारे में कहा जाता है. उससे चंद दूरी पर ही गंगा पुत्र भीष्म पितामह मां गंगा का ध्यान किया करते थे.

जब भी बच्चा परेशान हो उसके माता-पिता ही उसकी समस्या का निवारण करते हैं. कुछ इसी तरह का उल्लेख 5000 वर्ष पुरानी परंपरा में भी देखने को मिलता है. जब भीष्म पितामह किसी भी बात से परेशान होते थे. तो मंदिर के निकट ही मां गंगा का ध्यान करते थे. बेटे की पुकार सुनकर मां गंगा दिव्य रूप में उपस्थित होकर उनकी पीड़ा को समझते हुए उसका निवारण करते थीं. दरअसल जहां आज यह स्थल बना हुआ है, कभी उधर से ही गंगा होते हुए निकलते थी.

मंदिर का भी है अपने आप इतिहास
द्रोपदेश्वर मंदिर में जो शिवलिंग है, वह स्वय शंभू है. हस्तिनापुर के विभिन्न पहलुओं के जानकार बताते हैं कि वर्ष 7200 का यह मंदिर है. तब से लेकर अब तक श्रद्धालुओं का विशेष आस्था है. बीच जंगल में मंदिर होने के बावजूद भी प्रत्येक शनिवार को यहां बड़े स्तर पर भंडारे आयोजित किए जाते हैं. द्रोपदी की भी यहां पर मूर्ति बनी हुई है. इस मंदिर की प्राचीनता को आप देखकर ही अंदाजा लगा सकते हैं.

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बूढ़ी गंगा की मिली अविरल धारा
हस्तिनापुर के विशेष जानकार असिस्टेंट प्रोफेसर प्रियंक भारती बताते हैं कि हस्तिनापुर में ऐसे विभिन्न ऐतिहासिक मंदिर हैं, जो जंगलों में बने हुए हैं. इसी तरीके भीष्म पितामह मां गंगा का यही पर ध्यान करते थे और अपने पुत्र की आवाज सुनकर मां गंगा दिव्य रूप में प्रकट होती थीं. उन्होंने बताया कि इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है. जो अब बूढ़ी गंगा की अविरल धारा मिली है. वह इस मंदिर से मात्र 100 मीटर दूर है.

Tags: Hindu Temple, Mahabharat

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