रिपोर्ट- मंगला तिवारी
मिर्जापुरः हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है. नवरात्रि के दौरान मां भगवती के नौ रूपों की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है. नवरात्र के दौरान लाखों की संख्या में भक्त दर्शन के लिए देश भर में स्थित शक्तिपीठों पर जाना चाहते हैं. ऐसे में भारत के प्रमुख 51 शक्तिपीठों में से एक विंध्याचल स्थित मां विंध्यवासिनी के दर्शन के लिए आते हैं. यह धाम प्रयागराज और काशी के मध्य विन्ध्य पर्वत श्रृंखला मिर्जापुर जिले में स्थित है. पौराणिक मान्यता है कि यहां से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता है.
विंध्य क्षेत्र का उल्लेख पुराणों में सिद्ध तपोभूमि के रूप में आता है. मान्यताओं के अनुसार यह विश्व का एकमात्र स्थान है, जहां पर तीनों देवियां एक साथ अपने भक्तों के मनोकामनाओं को पूरा करती हैं. यहां विराजमान तीनों देवी (महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती) ईशान कोण पर हैं. यहां महालक्ष्मी के रूप में विंध्यवासिनी, महाकाली के रूप में काली खोह और महासरस्वती के रूप में मां अष्टभुजा विराजमान हैं.
यही वजह है कि इसे त्रिकोण यंत्र (महाशक्तियों का त्रिकोण) भी कहा जाता है. भक्त नंगे पांव मां विंध्यवासिनी, मां महाकाली व मां अष्टभुजी के दर्शन करने के लिए त्रिकोण यात्रा करते हैं.
त्रिकोण यात्रा करने से नष्ट हो जाते हैं जन्म-जन्मांतर के पाप
अध्यात्मिक धर्मगुरु त्रियोगी नारायण उर्फ मिठ्ठू मिश्र ने बताया कि मां विंध्यवासिनी के धाम में त्रिकोण अपने आप में विशेष महत्व रखता है. इस धाम में आने व त्रिकोण परिक्रमा करने के लिए देवता भी लालायित रहते हैं. विंध्याचल में दो त्रिकोण है, एक सूक्ष्म और दूसरा वृहद त्रिकोण.
यह धाम इसीलिए भी विशेष है क्योंकि यहां इच्छा, क्रिया और ज्ञान का त्रिकोण है. उन्होंने बताया कि मां विंध्यवासिनी के दर्शनोपरांत त्रिकोण यात्रा करने से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं, व्यक्ति उत्कर्ष की तरफ जाता है. उन्होंने बताया कि विंध्याचल ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं.
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