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UP: मिर्जापुर के इस मेले में महिलाएं लगाकर आती है काजल, जानिए नाम के पीछे का रहस्य 

Mirzapur News: . बस यही कारण है कि इसे "कजरहवा का मेला" नाम से भी जाना जाता है.

Mirzapur News: . बस यही कारण है कि इसे "कजरहवा का मेला" नाम से भी जाना जाता है.

Mirzapur News: मेले में आने वाला प्रत्येक व्यक्ति बिना गुड़ की जलेबी खाए वापस नहीं जाता है. आशीष जायसवाल बताते हैं कि म ...अधिक पढ़ें

रिपोर्ट – मंगला तिवारी

मिर्जापुर: भारत देश विभिन्न परंपराओं, मान्यताओं एवं संस्कृतियों से भरा हुआ राष्ट्र है. यहां लोक परंपराओं के साथ ही साथ इतिहास से जुड़े हुए पुरुषों, महापुरुषों के लोक परंपराओं का भी लोग आज भी श्रद्धा पूर्वक निर्वहन करते आ रहे हैं. उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद के दक्षिणांचल में स्थित राजगढ़ विकासखंड के राजगढ़ गांव का “धनुष यज्ञ” मेला लोगों के लिए आस्था एवं अटूट विश्वास से जुड़ा हुआ मेला है. प्रतिवर्ष अगहन माह की पंचमी के दिन लगने वाले चार दिवसीय मेले का लोगों को बेसब्री से इंतजार भी होता है.

इस वर्ष भी यह मेला 28 नवंबर 2022 सोमवार यानी अगहन माह की पंचमी के दिन आपने पुरातन परंपराओं के अनुसार प्रारंभ हुआ जो 5 दिनों तक अनवरत चलेगा. वैसे तो यह मेला हर वर्ष 4 दिन तक ही लगता रहा है. लेकिन इस वर्ष यह मेला 5 दिन तक चलेगा. मिर्जापुर-सोनभद्र मार्ग पर स्थित राजगढ़ गांव में लगने वाला यह मेला मुख्य मार्ग से सटा हुआ बकहर नदी के किनारे लगता है. जिस स्थान पर यह मेला लगता है वहां पर शिव पार्वती सहित बजरंगबली का प्राचीन मंदिर है. जो आसपास के गांव के लिए श्रद्धा का केंद्र है. यहीं पर प्रतिवर्ष “धनुष यज्ञ” का मेला लगता है. इसे लोग “कजरहवा का मेला” नाम से भी जानते हैं. इस नाम के पीछे छुपे हुए रहस्य है कि इस मेले में अधिकांश आने वाली महिलाएं आंखों में काजल लगा कर आती हैं. बस यही कारण है कि इसे “कजरहवा का मेला” नाम से भी जाना जाता है.

ऐसे होता है मेला का शुभारंभ
प्रथम दिन राम, सीता एवं लक्ष्मण की पूजा से इस मेले का शुभारंभ होता है. जहां मिर्जापुर जनपद सहित सोनभद्र से भी बड़ी संख्या में दुकानदार अपनी दुकाने लेकर इस मेले में भाग लेते हैं. स्थानीय ग्रामीणों की मानें तो जब देश आजाद हुआ है. तभी से यह मेला चला आ रहा है. मेले में दंगल का भी आयोजन होता है. जिसे देखने के लिए जिले के अहरौरा, चुनार, पड़री, सोनभद्र, घोरावल, शाहगंज, मधुपुर, सुकृत इत्यादि से बड़ी संख्या में दंगल प्रेमी आते है.

गुड़- जलेबी है प्रसिद्ध
मेले के आयोजक एवं राजगढ़ के ग्राम प्रधान आशीष जायसवाल बताते हैं कि इस मेले में गुड़ की जलेबी सबसे प्रसिद्ध है. जिसे “गुड़हवा जलेबी” के नाम से भी जाना जाता है. लोग बताते हैं कि मेले में इस कदर भीड़ उमड़ती है और इस जलेबी की ऐसी डिमांड होती है कि दुकानदार चाहे जितना भी जलेबी तैयार कर ले. वह अपने साथ बची जलेबी लेकर नहीं जाता है. यह यहां की परंपरा और सबसे खास बात है.

बिना जलेबी खाए नहीं जाते लोग
मेले में आने वाला प्रत्येक व्यक्ति बिना गुड़ की जलेबी खाए वापस नहीं जाता है. आशीष जायसवाल बताते हैं कि मेले को सकुशल संपन्न कराने के लिए स्थानीय पुलिस प्रशासन से लगाए उनके द्वारा हर संभव सहयोग किया जाता है. सीमित संसाधनों के बाद भी मेले को समुचित ढंग से सब कुशल पूर्वक संचालित करने के लिए निरंतर बेहतर प्रयास किया जाता है.

पानी की समस्या
दूसरी ओर मेले में आने वाले ग्रामीणों की शिकायत रही है कि मेला क्षेत्र में एकमात्र हैं. डपंप होने से पेयजल की समस्या उत्पन्न होती है. पानी के लिए लोगों को दूर से पानी लाना पड़ता है. पुराना कुआं सूख गया है. जिसके अभाव में पेयजल की समस्या उत्पन्न होती है. धनुष यज्ञ मेला का क्षतिग्रस्त हो चुका मंच जिसे मिट्टी और गोबर के जरिए पोत लिप कर तैयार किया जाता है. जिसकी मरम्मत ना कराए जाने से भी लोगों में रोष देखा जा रहा है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मेला लोक परंपराओं को सहेजे जाने के साथ ही साथ लोगों के आस्था से भी जुड़ा हुआ है. ऐसे में कई कमियां हैं जो मेले के स्वरूप को बिगाड़ने के साथ-साथ लोगों को भी आहत करती हैं.

Tags: Hindu Temple, History of India, Mirzapur news, UP news, Uttar pradesh news

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