रिपोर्ट – मंगला तिवारी
मिर्जापुर जनपद में धान की कटाई हो रही है. खरीफ फसल कटने के बाद किसान कभी-कभी धान के डंठल को जला देते हैं. जिससे सूक्ष्म जीवाणु नष्ट हो जाते है. वहीं, इससे मिट्टी की जैविक गुणवत्ता प्रभावित होती है. साथ ही पर्यावरण भी दूषित होता है. अब खेत में पराली जलाने पर भारी जुर्माना चुकाने के साथ ही कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी.
धान की कटाई अक्टूबर-नवंबर के महीने में की जाती है. इस समय वायु गुणवत्ता सूचकांक खराब होता है. इसका सबसे प्रमुख कारण फसल अवशेषों और कचरे को जलाने को माना जाता है. ऐसे में जिला प्रशासन खेतों में पराली जलाने की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए हर संभव प्रयास करता है. राज्य सरकार के निर्देश के अनुसार, उत्तर प्रदेश में खेतों में कृषि अवशेषों या कचरे को जलाते हुए पकड़े जाने पर दो एकड़ से कम के खेतों के लिए 2,500 रुपये, दो-पांच एकड़ के लिए 5,000 रुपये और पांच एकड़ से ऊपर के खेतों के लिए 15,000 रुपये का जुर्माना है.
पिछले वर्ष हुई थी कार्रवाई
मिर्जापुर में गत वर्ष 2021-2022 में फसल अवशेष जलाने की कुल 18 घटनाएं घटित हुई थी. जिससे कुल 32500 रुपए जुर्माना वसूला गया था. जिले में पराली जलाने की घटनाएं विकास खण्ड राजगढ़, पटेहरा, जमालपुर, पहाड़ी, हलिया, लालगंज और मझवां में घटित हुई थी.
पराली जलाने से नुकसान
पराली जलाने से मीथेन और कार्बन मोनो ऑक्साइड जैसे गैस निलकते हैं. जो हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी नुकसानदायक है. पराली जलाने से भूमि की उपजाऊ क्षमता घटने के साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाता है. रिपोर्ट के मुताबिक एक टन पराली जलाने से 5.5 किग्रा नाइट्रोजन, 2.3 किग्रा फास्फोरस, 25 किग्रा पोटेशियम और 1.2 किग्रा सल्फर जैसे मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं. किसान पराली न जलाएं, इसके लिए कई सरकार भी लगातार जागरुकता अभियान चला रही है. ऐसे कृषि यंत्र जिनसे पराली को आसानी से निस्तारित किया जा सकता है उनपर 50 से 80 फीसद तक अनुदान भी दे रही है.
मशीनों की खरीद के लिए सब्सिडी
उप कृषि निदेशक डॉ. अशोक कुमार उपाध्याय ने बताया कि मिर्जापुर में पराली जलाने की घटनाएं बहुत कम सामने आती हैं. लेकिन कुछ किसान जाने-अनजाने में धान की पराली जलाते रहते हैं. जिससे न केवल प्रदूषण बढ़ता है. बल्कि जमीन की उपजाऊ शक्ति भी समाप्त होती है. ऐसे में किसान भाइयों को जागरूक किया जा रहा है कि पराली न जलाएं.
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