रिपोर्ट -अनमोल कुमार
मुजफ्फरनगर. यूपी के जनपद मुजफ्फरनगर ही नहीं बल्कि पूरे देश में बड़े-बड़े अनोखे मंदिर हैं, जो काफी मशहूर भी हैं. यही नहीं, इन मंदिरों में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए जाते हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के दर्शन कराएंगे जो मंदिर महाभारत कालीन है. यह मंदिर लगभग 5500 वर्ष पुराना है. मुजफ्फरनगर के शुकतीर्थ नगरी में माता पार्वती का मंदिर है, जो जमीन से 10 फीट नीचे बना हुआ है .
आश्रम के संस्थापक डॉ. अयोध्या प्रसाद मिश्र ने बताया कि यह मंदिर महाभारत कालीन मंदिर है. यह मंदिर पांडव कालीन मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर में उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली आदि राज्यों से भी श्रद्धालु माता पार्वती मंदिर में दर्शन करने आते हैं. यह सब पूजा अर्चना कर अपने मन की मुरादें मां पार्वती से मांगते हैं.
सबसे पहले इस स्थान पर पहुंचे थे पांडव
अयोध्या प्रसाद मिश्र ने बताया कि सबसे पहले पांडव हस्तिनापुर से चलकर इसी स्थान पर पहुंचे थे. इस स्थान पर पहुंचकर युधिष्ठिर ने माता पार्वती की पूजा की थी. युधिष्ठिर ने पूजा अर्चना कर अक्षय पात्र भी यहीं से प्राप्त किया था.
जमीन से निकाला था पार्वती मंदिर
बताया जाता है कि करीब 5500 वर्ष पहले महाभारत कालीन के समय से यह पार्वती मंदिर बना हुआ है, लेकिन यह मंदिर गंगा के प्रवाह के कारण धरती में समा गया था. सन 1995 में साधु संतों को इस मंदिर की चोटी दिखाई दी थी जिसके पश्चात इस मंदिर को धरती से निकाला गया था.आज भी यह मंदिर धरती से 10 फीट नीचे बना हुआ है.
माता पार्वती मंदिर की प्राचीनता का पांडव कालीन उल्लेख
बताया जाता है कि पांडव कालीन माता पार्वती मंदिर का उल्लेख महाभारत तथा अन्य ग्रंथों में इस प्रकार है कि उस समय यह क्षेत्र काम्यक बन के नाम से जाना जाता था. जब पांडव जुए में सब कुछ हार गए और उनको वनवास हो गया तभी पांडव यहां आए थे. उस समय माता पार्वती ने उन्हें दर्शन देकर समझाया और आश्वासन दिया कि वनवास के बाद तुम्हारा राज्य उन्हें वापस मिल जाएगा, तब युधिष्ठिर ने कहा कि मुझे राज्य की चिंता नहीं है बल्कि अपने परिवार वह अतिथि ऋषि-मुनियों के सत्कार तथा उनके भोजन की व्यवस्था की चिंता है . इस पर माता पार्वती ने बताया कि गंगा में खड़े होकर सूर्य देव की आराधना करो अवश्य ही तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी. युधिष्ठिर ने पूरी रात गंगा में खड़े होकर सूर्य देव की आराधना की. प्रातः काल के समय सूर्यदेव ने प्रसन्न होकर युधिष्ठिर को अक्षय पात्र दे दिया और अक्षय पात्र की यह विशेषता थी कि भोजन करने वाले की जो इच्छा होती थी, वही भोजन इस अक्षय पात्र से मिल जाता था. यही नहीं, जब तक बनाने वाला न खा ले तब तक भोजन समाप्त नहीं होता था.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
Tags: Mahabharata, Muzaffarnagar news, UP news