शालू सैनी अब तक करीब 500 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं.
अनमोल कुमार
मुजफ्फरनगर. आज हम आपको यूपी के मुजफ्फरनगर की एक ऐसी महिला से रूबरू करा रहे हैं, जो खुद की परेशानियों को भूलकर दूसरे लोगों के लिए काम कर रही है. महिला का नाम शालू सैनी है, जो कि सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में बेसहारों का सहारा बन रही हैं. दरअसल वह पश्चिमी यूपी के जनपद मुजफ्फरनगर में लावारिस शवों की वारिस बनकर अंतिम संस्कार करती हैं. वह कोरोना काल से अब तक लगभग 500 शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी है.
37 वर्षीय शालू सैनी मुजफ्फरनगर शहर किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. चाहे वो कोई थाना हो या प्रशासनिक अधिकारी उनको सब पहचानते हैं. इसके अलावा वह साक्षी वेलफेयर ट्रस्ट की राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं.
दूसरों को अपना नाम देकर करती हैं अंतिम संस्कार
शालू सैनी दूसरों को अपना नाम देकर अंतिम संस्कार करती हैं. हालांकि हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, श्मशान घाट पर महिलाओं का प्रवेश पूर्णत: प्रतिबंधित माना जाता है. बावजूद इसके प्राचीन मान्यताओं का खंडन करते हुए उन्होंने कोरोना महामारी के समय से इस अनूठे सामाजिक कार्य की शुरुआत संकल्प के साथ की थी. इसके अलावा शालू अंतिम संस्कार के साथ-साथ लावारिस मृतकों की अस्थियां भी गंगा में विसर्जित करती हैं.
कोरोना काल में मौत से दूर भाग रहे थे लोग
News18 लोकल से बातचीत करते हुए शालू सैनी ने बताया कि यह कार्य हमने कोरोना काल में शुरू किया था. जिस समय लोगों की कोरोना से मृत्यु हो रही थी, तो लोग अपनों से दूर भाग रहे थे. उस समय हमने अपने मोबाइल पर एक वीडियो देखी थी, जिसमें श्मशान के बाहर कलश लटके हुए थे और उसमें अस्थियां थी. अस्थियां के पास कोई जाना नहीं चाहता था. लोगों में डर था कि उन्हें कुछ हो न जाए. उसी दौरान हमने इन लावारिस शवों का वारिस बनने की ठानी थी. करोना काल में लगभग 200 शवों का अंतिम संस्कार किया था. जब उनके परिवार वाले भी शवों को हाथ नहीं लगा रहे थे. यही नहीं, कहने के बावजूद भी परिवार वालों ने मुखाग्नि तक नहीं दी.
जब पुरुष श्मशान जा सकता है तो महिलाएं क्यों नहीं?
जब उनसे पूछा गया कि हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार महिलाओं का प्रवेश श्मशान घाट में प्रतिबंध है, तो उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि यह सब पुरुष प्रधानों की देन है. हिंदू धर्म के किसी भी इतिहास में यह लिखा नहीं देखा की महिलाओं का श्मशान घाट में जाना प्रतिबंधित है. शालू सैनी का कहना है कि पुरुष को भी तो महिला ने ही जन्म दिया है. जब पुरुष को जन्म देने वाली एक महिला है तो वह श्मशान जा सकता है तो महिला क्यों नहीं जा सकती. मुझे अब 3 साल पूरे होने को है और मैं लगातार श्मशान घाट जाती हूं और कभी-कभी तो ऐसा होता है कि तीन से चार अंतिम संस्कार मैं एक ही दिन में करती हूं. उन शवों के अंतिम संस्कार का खर्चा भी हमारी संस्था साक्षी वेलफेयर ट्रस्ट उठाती है.
लावारिश शव मिलने पर कर सकते हैं संपर्क
शालू सैनी ने जन मानस और प्रशासन से से अपील करते हुए कहा कि यदि कहीं भी लावारिस शव मिले या कोई परिवार किसी भी धर्म हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, समुदाय में दाह संस्कार करने में असमर्थ हो तो उसके लिए हमसे संपर्क कर सकता है. इसके लिए उन्होंने मोबाइल नंबर 8273189764 भी जारी कर रखा है.
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Tags: Cremation of unclaimed dead bodies, Funeral, Muzaffarnagar news
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