नोएडा:-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने सड़क किनारे किसी लड़की को पत्थर तोड़ते देखा तो उन्होंने कालजयी कविता ‘वह तोड़ती पत्थर’ लिख डाली.लेकिन महानगरों की सड़कों पर जब लाल बत्ती पर आपकी गाड़ी रुकती है तो भिखारियों का झुंड आपकी तरफ आता होगा.कई बार आप उन्हें कुछ दे देते होंगे तो कई बार डांट कर भगा भी देते होंगे.लेकिन यह वर्ग हमेशा समाज में उपेक्षित ही रहा है.हमने नोएडा के भिखारियों की पीड़ा को जानने की कोशिश की.
शर्म आती है लेकिन क्या करें मांगना पड़ता है
मूलतः बिहार का रहने वाला सोनू नोएडा में पिछले तीन साल से सड़क किनारे रहता है, गांव में उसके पास जमीन या कोई भी साधन नहीं है जिस से वो सम्मान के साथ अपनी जिंदगी गुजर बसर कर सके.वो अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ सड़क किनारे ही रहने को मजबूर हैं.वो बताते हैं कि दिन में भीख मांगता हूं, इसके साथ-साथ कोई मजदूरी मिल जाती है तो काम भी कर लेता हूं.बीवी,बच्चे और मैं खुद भीख मांगने के लिए लाल बत्ती पर चले जाते हैं.जिससे रोज के लगभग 300 रुपए मिल जाते हैं. इसके अलावा कभी-कभी काम मिल जाता है तो लगता है कि मैं इंसान भी हूं क्योंकि जब भी भीख मांगने के लिए हाथ बढ़ाता हूंतो रोज जलील होना पड़ता है.
नहीं है आधार कार्ड और राशन कार्ड
सोनू 35 साल के हैं वो कहते हैं कि मेरे पास न तो राशन कार्ड है और न ही आधार कार्ड जिस कारण मुझे कोई सरकारी लाभ भी नहीं मिल पाता है.
(रिपोर्ट:- आदित्य कुमार)
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