प्रभु दयाल विद्यार्थी, पूर्वांचल के एक मात्र सेनानी थे, जो गांधी के करीबी रहे. इसलिए उन्हें पूर्वांचल का गांधी भी कहा जाता है.
सिद्धार्थनगर: छोटी सी ही उम्र में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रभुदयाल विद्यार्थी प्यार और नफरत के बीच के फर्क को समझने लगे थे. अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान ने उन्हें 10 साल की उम्र में ही ऐसा झकझोर कर रख दिया था कि वह फिरंगियों से दो-दो हाथ करने घर से निकल पड़े थे. वह घर छोड़ने के बाद गांव तभी लौटे थे, जब देश आजाद हो गया था. वह पूर्वांचल के एक मात्र सेनानी थे, जो गांधी के करीबी रहे. इसलिए उन्हें पूर्वांचल का गांधी भी कहा जाता है.
सिद्धार्थनगर जिले के जोगिया ब्लॉक के जोगिया गांव में सात सितंबर 1925 में जन्मे प्रभुदयाल विद्यार्थी का बचपन मुफलिसी से भरा था लेकिन उनके अंदर देश भक्ति का जज्बा कूट-कूट कर भरा था. देश को आजाद कराने वह घर से बगैर बताए निकल पड़े थे, तब उनकी उम्र महज 10 साल की थी. उस्का बाजार में 1934 में आए ठक्कर बापा, जो महात्मा गांधी की स्वतंत्र भारत की खोज का प्रचार-प्रसार करते थे, उनका भाषण सुनने वह पहुंचे थे.
ठक्कर बापा की नजर विद्यार्थी जी पर पड़ी तो वह उनके करीब आ गए और आने का कारण पूछा तो कहा कि उन्हें भी देश के लिए लड़ना है. ठक्कर बापा ने समझाया लेकिन विद्यार्थी जी अड़ गए कि उन्हें अंग्रेजों से लड़ना है. वह घर वापस नहीं जाएंगे. ठक्कर बापा छोटे से बालक के अंदर अंग्रेजों के प्रति धधक रही ज्वाला को देखते हुए साथ ले जाने को मजबूर हो गए. गांधी जी से मिले तो वह वहां पर भी अंग्रेजों से लड़ने की जिद पर अड़े रहे. गांधी जी ने बालक प्रभुदयाल की भावनाओं और जज्बे को भांपते हुए उन्हें अपने साथ लेकर साबरमती आश्रम चले गए. गांधी जी की पत्नी कस्तूरबा ने परिचय पूछा तो कहा कि यह तुम्हारा छठा बेटा है. अब हम लोगों के साथ यहीं रहेगा.
अंग्रेजों ने तीन बार किया गिरफ्तार
स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी प्रभुदयाल विद्यार्थी जंग-ए-आजादी के दौरान तीन बार जेल गए थे. पहली बार 1934 में 10 साल की उम्र में गिरफ्तार किए गए थे. कम उम्र होने की वजह से उन्हें रिहा कर दिया गया था. दूसरी बार 1938 व 1942 में गिरफ्तार किए गए थे.
अंग्रजों ने रखा था पांच हजार का इनाम
स्वतंत्रता आंदोलन में प्रभुदयाल किस कदर अंग्रेजों की आंख की किरकिरी बने थे, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन पर पांच हजार का इनाम रखा गया था. वह पहले सेनानी थे, जिनपर अंग्रेजों ने इनाम रखा था. उन पर भूमि संगठन का समर्थन व मदद करने का आरोप था. गांधी जी की सलाह पर उन्होंने समर्पण किया था, जिन्हें अंग्रेजों ने सेवाग्राम वर्धा से गिरफ्तार किया था.
गिरफ्तारी के दौरान दी गई थी थर्ड डिग्री की यातना
प्रभुदयाल विद्यार्थी को गिरफ्तार करने के बाद अंग्रेजों ने उन्हें थर्ड डिग्री की यातना दी थी. उन्हें आइसोलेशन सेल में रखा गया था. प्रभुदयाल पर हुए थर्ड डिग्री के इस्तेमाल का मामला गांधी जी ने ब्रिटिश हुकूमत के सामने उठाया था. हालांकि, अंग्रेजों ने इनकार कर दिया था.
उप्र विधानसभा के सबसे युवा विधायक थे विद्यार्थी
देश आजाद हुआ तो प्रभुदयाल विद्यार्थी अपने गांव लौट आए थे. महान सेनानियों में एक होने की वजह से भारत का हर बड़ा सेनानी उन्हें जानता था. 1951-52 में प्रभुदयाल विद्यार्थी को पंडित जवाहर लाल नेहरू ने बुलावा भेजा. आमंत्रण पर उनसे मिलने वह दिल्ली गए. विद्यार्थी जी से विधानसभा चुनाव लड़ने को कहा. वह 1952 में रुधौली विधानसभा से पहला सामान्य चुनाव लड़े और जीत गए. उस समय उनकी उम्र महज 27 साल थी. वह विधानसभा के सबसे युवा विधायक थे. इसके बाद वह 1957, 1967, 1969, 1974 में शोहरतगढ़ विधानसभा से विधायक चुने गए थे.
जिस तारीख को हुआ जन्म, उसी को हुआ निधन
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रभुदयाल विद्यार्थी का जन्म 7 सितंबर 1925 को जोगिया ब्लॉक के जोगिया गांव निवासी टिकुर के घर हुआ था. उनका निधन हृदय गति रुकने की वजह से 7 सितंबर 1977 को हो गया था.
पति को याद कर पत्नी की आखों में भर आते हैं आंसू
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की शादी कमला साहनी से हुई थी. वह आजकल जोगिया में ही रह रही हैं. वह लंबे समय से बीमार चल रही हैं. पति को याद कर उनकी आंखों में आंसू डबडबा आते हैं. वह कहती हैं कि बीमारी में विद्यार्थी जी की याद बहुत आ रही है. कमला साहनी खुद भी तीन पर लगातार शोहरतगढ़ विस से विधायक रह चुकी हैं. उनकी एक बेटी आईपीएस व दामाद आईएएस हैं. एक बेटी जोगिया की ब्लॉक प्रमुख रह चुकी है.
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