लखनऊ. उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Election 2022) में भारतीय जनता पार्टी (UP BJP) अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) को मात देने के लिए एक बार फिर वर्ष 2017 में अपनाई गई रणनीति पर ही अमल करती दिख रही है. बीजेपी एक ओर जहां पिछली बार की ही तरह यादव कुनबे की कलह और सपा सरकार में ‘गुंडाराज’ का मुद्दा उछाल रही थी. वहीं कैराना दौरे पर गए अमित शाह ने पलायन का मु्द्दा उठाकर इस थ्योरी को पक्का कर दिया.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि ‘कैराना में पलायन’ का मुद्दा लोगों के दिलोंदिमाग में अब भी जिंदा है. वह कहते हैं, ‘बीजेपी सरकार बनने से पहले और बाद में भी कैराना से हिंदू परिवारों का पलायन हमेशा चिंता का विषय रहा है. हमारी प्राथमिकता इन लोगों की घर वापसी में मदद करना थी.’
अखिलेश के खिलाफ बीजेपी का बड़ा हथियार बना था कैराना का मुद्दा
दरअसल कैराना से बीजेपी के पूर्व सांसद हुकुम सिंह ने सबसे पहले यहां से पलायन का मुद्दा उठाया था. उन्होंने जून, 2016 में 346 लोगों की एक लिस्ट जारी की थी, जिन्हें ‘एक विशेष समुदाय के आपराधिक तत्वों द्वारा धमकी और जबरन वसूली’ के कारण मुस्लिम बहुल शहर कैराना से पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा.’ हालांकि हुकुम सिंह ने बाद में अपने बयान को यह कहते हुए वापस ले लिया था कि कैराना से पलायन की वजह खास तौर से ‘कानून-व्यवस्था का मुद्दा’ था और कई परिवारों ने कारोबारी वजहों से पलायन किया. हालांकि इससे यूपी में हिन्दुओं के कथित पलायन का एक नैरेटिव सेट हो चुका था और इसने कुछ ही महीनों बाद हुए विधानसभा चुनावों में अखिलेश यादव सरकार के खिलाफ बीजेपी के एक बड़े हथियार की तरह काम किया.
वहीं जनवरी, 2022 में केंद्र सरकार के सबसे ताकतवर मंत्री अमित शाह एक बार फिर कैराना पहुंचे थे. उन्होंने यहां घर-घर जाकर बीजेपी के लिए प्रचार किया और एक बार यहां से हिन्दुओं के पलायन का मुद्दा उठाते हुए समाजवादी पार्टी को घेरते दिखे.
‘दिखाने को काम नहीं तो सांप्रदायिक रंग दे रही बीजेपी’
वहीं सपा-आरएलडी गठबंधन ने पश्चिमी यूपी में होने पहले चरण के मतदान के लिए जब उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की थी, तब भी बीजेपी ने कैराना से सपा उम्मीदवार नाहिद हसन को लेकर अखिलेश यादव पर जमकर प्रहार किए. उन्होंने सपा सुप्रीमो पर ‘कैराना से हिन्दुओं के पलायन के जिम्मेदार’ को टिकट देने का आरोप लगाया.
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हालांकि समाजवादी पार्टी इसे यूपी चुनाव को सांप्रदायिक रंग देने की बीजेपी की चाल करार दे रही है. अखबार के मुताबिक, सपा प्रवक्ता अब्दुल हफीज कहते हैं, ‘उनके पास दिखाने के लिए कुछ नहीं है. यही कारण है कि वे फिर से कैराना उठा रहे हैं.’ इसके साथ ही वह जोर देकर कहते हैं कि यादव परिवार में ‘तथाकथित दरार’ को उछालने का प्रयास भी भाजपा की उसी स्क्रिप्ट का हिस्सा है. उन्होंने सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव और उनके दो के प्रमोद गुप्ता और हरिओम यादव के बीजेपी में जाने का परोक्ष रूप से जिक्र करते हुए कहा, ‘जो नेता सपा छोड़ रहे हैं उनके पास अपना कोई जनाधार नहीं है और उनके दलबदल से सपा की चुनावी संभावनाओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा.’
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‘नई नहीं, वह सपा है’
हालांकि बीजेपी भी सपा नेताओं पर यह कहकर हमला तेज कर रही है कि ‘ये नई नहीं … ये वही सपा है’. साल 2017 के चुनाव में भी भाजपा ने सपा शासन के दौरान खराब कानून-व्यवस्था का मुद्दा उठाते हुए उस पर अपराधियों और माफियाओं को आश्रय देने का आरोप लगाया था. वहीं इस बार भी सीएम योगी आदित्यनाथ ने यूपी चुनाव के पहले दो चरणों में आपराधिक इतिहास वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के लिए सपा नेतृत्व की आलोचना की थी. अब देखना यह होगा कि बीजेपी वर्ष 2017 के औजारों से सपा की साइकिल को कितना पंचर कर पाएगी.
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