ममता त्रिपाठी
लखनऊ. शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav), अपने भतीजे और समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) सुप्रीमो अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के लिए हर दिन नई मुसीबत खड़ी करते जा रहे हैं. सूबे की राजनीति में नया गुल खिलाते हुए शिवपाल सिंह यादव मुस्लिम नेता आजम खान के साथ नए सियासी समीकरण गढने का प्रयास करते दिख रहे हैं. शुक्रवार को सीतापुर जेल में आजम खान और शिवपाल यादव के बीच डेढ़ घंटे से भी ज्यादा देर तक मुलाकात चली जिससे साफ हो गया है कि सपा के ये दोनों दिग्गज एक साथ किसी मोर्चे पर दिख सकते हैं. क्या इन दोनों की जोड़ी यूपी की सियासत पर कोई असर डालेगी.
राजनीति के जानकारों का मानना है कि शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी से अलग होकर अपनी पार्टी बनाकर कोई खास असर नहीं डाल पाए यूपी की सियासत पर मगर आजम और शिवपाल अगर एक साथ आ जाएं तो ये दोनों एक-एक ग्यारह हो सकते हैं. इन दोनों के साथ आने पर सपा के बेस वोटबैंक में सेंधमारी हो सकती है. शिवपाल यादव की यादव वोट बैंक खासतौर पर सपा के पुराने कार्यकर्ताओं में अच्छी पैठ है. दूसरी तरफ आजम खान भी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के सबसे बड़े कद्दावर नेता के तौर पर जाने जाते हैं. ऐसे हालात में आजम-शिवपाल की जोड़ी समाजवादी पार्टी के मुस्लिम-यादव वोटबैंक को काफी नुकसान पहुंचा सकती है.
इन दोनों के साथ आने से अखिलेश यादव को जितना नुकसान उठाना पड़ेगा, भाजपा को सूबे में उतना ही ज्यादा सियासी फायदा होगा. पिछले एक महीने से सियासी गलियारों में चर्चा है कि शिवपाल भाजपा में शामिल हो रहे हैं मगर ऐसा होता दिख नहीं रहा है. भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि शिवपाल पार्टी से बाहर रहकर पार्टी को ज्यादा फायदा दे सकते हैं. इसलिए फिलहाल भाजपा शिवपाल को बाहर से ताकत दे रही है ताकि वो सपा को कमजोर कर सकें. अगर शिवपाल आजम खान को अपनी तरफ करने में कामयाब हो जाते हैं तो इसका सीधा फायदा भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनावों में मिलेगा.
हालांकि सपा सुप्रीमों अखिलेश सार्वजनिक मंच से ये बोल चुके हैं कि जो भाजपा के साथ है वो सपा में नहीं रह सकता मगर वो भी चाचा शिवपाल को पार्टी से निकालने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं. दूसरी तरफ शिवपाल यादव के लिए सबसे मुफीद है कि सपा उनको पार्टी से निष्कासित कर दे ताकि उनकी विधानसभा की सदस्यता भी बनी रहे. सपा का कोई भी नेता चाचा-भतीजा विवाद पर बोलना नहीं चाहता मगर दबी जबान में सभी लोग ये जरूर कह रहे हैं कि शिवपाल चाचा को भाजपा रिमोट की तरह इस्तेमाल कर रही है. आजम खान भी दबाव की राजनीति कर रहे हैं ताकि वो बाहर निकल सकें. भाजपा से नजदीकी दिखाने के बाद ही उन्हे एक मामले को छोड़कर सभी मामलों में जमानत मिल चुकी है.
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