वाराणसी में अवैध बूचड़खाने से निकल रहा खून वरुणा नदी से होते हुए गंगा में मिल रहा है. ये सुनकर आपकी आस्था को धक्का लगा होगा, लेकिन ये सच है. एनजीटी की ताजा रिपोर्ट में ये बात सामने आई है. तमाम सारी खामियों का संज्ञान लेते हुए एनजीटी ने नगर निगम वाराणसी पर 27 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है.
दरअसल, राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी एनजीटी के ईस्टर्न यूपी रिवर एंड रिजर्वायर मानीटरिंग कमेटी के एक पैनल ने वरुणा और अस्सी नदी के पानी की जनवरी में जांच की थी. पैनल ने रिपोर्ट में लिखा है कि वाराणसी के अर्दली बाजार क्षेत्र के प्रमुख नाले से बूचड़खाने में वध के बाद अनुपचारित घरेलू मल सीधे वरुणा में डाल दिया जाता है. बता दें कि जनवरी में ये टीम आई थी. अर्दली बाजार इलाके से निकलने वाले इस नाले में खून देखा गया था. ये देख टीम में हड़कंप मच गया था. टीम यहां तीन दिन के इंस्पेक्शन के लिए आई थी. टीम उस वक्त हैरान रह गई थी, जब सुबह 7 बजे के आसपास नाले का पानी गहरे लाल रंग का दिखने लगा. थोड़ी ही देर में नाले में आंतें भी दिखने लगीं थी. तब टीम केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और वाराणसी नगर पालिका के साथ मिलकर उस जगह पहुंची, जो कुछ ही किलोमीटर दूर था.
घर के अंदर ही काटे जा रहे छोटे जानवर
टीम को पता लगा कि इलाके में एक सरकारी बूचड़खाना था जिसे बंद किया जा चुका था. उस समय ऐसी आशंका जताई गई थी कि बूचड़खाना बंद होने से छोटे जानवरों को घरों के अंदर ही मारा जा रहा है. इस घटना के वीडियो फुटेज बनाते हुए साइट से सैंपल भी लिए गए थी. टीम ने अब वैज्ञानिकों से राय लेकर ये रिपोर्ट सौंपी है.

नाले में तब्दील हो चुकी है अस्सी नदी
नगर निगम पर 27 लाख का जुर्माना
एनजीटी के पैनल के अध्यक्ष रिटायर्ड न्यायमूर्ति डीपी सिंह ने एनजीटी को सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 का अनुपालन नहीं करने के मामले में नगर निगम पर 27 लाख का जुर्माना लगाने की भी सिफारिश की है. विभिन्न वैज्ञानिकों की रिपोर्ट पुष्टि कर रही है कि वरुणा के पानी की गुणवत्ता व नदी का बहाव उचित न होने के कारण आक्सीजन का स्तर आवश्यक सीमा से नीचे है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने रामेश्वर घाट से आदिकेश्वर घाट तक प्रदूषित प्रदूषण की पहचान की है. जांच के दौरान देखा गया कि नालियों के मिश्रण से पहले कचहरी के शास्त्रीघाट के अपस्ट्रीम तक आक्सीजन को 2.5 मिलीग्राम प्रति एमएल पाया गया.
वैज्ञानिकों बताया गंभीर चूक
भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी काशी को वाराणसी नाम प्रदान करने वाली नदी वरुणा का उद्गम तीन जनपदों के सरहद से हुआ है. जौनपुर, इलाहाबाद, प्रतापगढ़ की सीमा पर स्थित इनऊछ ताल के मैलहन झील से वरुणा नदी का उद्गम हुआ है. सैकड़ों गांवों को जीवन प्रदान करने वाली वरुणा नदी का अस्तित्व उपेक्षा के चलते खतरे में है. जौनपुर जनपद के पश्चिमी सिरे पर बसे नगर मुंगराबादशाहपुर से बारह किमी. दूर प्रतापगढ़ व इलाहाबाद की सरहद पर स्थित इनऊछ ताल की झील से निकलकर वरुणा नदी 202 किमी. सफर तय कर वाराणसी के अस्सी घाट पर अस्सी नदी में समा जाती है. यही नहीं, राजघाट से आधा किमी दूर गाजीपुर दिशा में इसका मिलन मां गंगा से होता है. नदी वैज्ञानिक डा बीडी त्रिपाठी इसे बेहद गंभीर चूक मानते हैं. उनका मानना है कि जब वरुणा में खून गिर रहा है तो उसका गंगा पर भी असर होगा.
धर्मगुरु भी आहत
मान्यता है कि वरुणा नदी गंगा से भी प्राचीन है. मैलहन झील के दक्षिण पूर्व में भगवान इंद्र, वरुण, यम त्रिदेवों ने त्रिदेवेश्वर शिवलिंग स्थापित कर यज्ञ किया. देवता व ऋषियों के प्रसाद ग्रहण के उपरांत हस्त प्रक्षालन से मैलहन झील भर गई. त्रिदेव ने भर चुकी मैलहन झील से नदी खुदवा कर अस्सी नदी में मिलवा दिया. इसका विस्तार से वर्णन पुराण में भी प्राप्त होता है. ऐसे में धर्माचार्य भी इस लापरवाही को लेकर बेहद आहत हैं.
(रिपोर्ट: उपेंद्र द्विवेदी)
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Tags: Ganga river, National Green Tribunal, Up news in hindi, Varanasi news
FIRST PUBLISHED : July 12, 2019, 11:51 IST