रिपोर्ट: अभिषेक जायसवाल
वाराणसीः शक्ति की आराधना के पर्व नवरात्रि की शुरुआत हो गई है. बुधवार को पहले दिन मां शैलपुत्री देवी के दर्शन का विधान है. काशी में मां शैलपुत्री देवी का प्राचीन मंदिर है. मान्यता है देवी के दर्शन से भक्तों की हर मुराद पूरी होती है. यही वजह है कि नवरात्रि में यहां भक्तों का खूब तांता लगा होता है.काशी के इस ऐतिहासिक मंदिर से जुड़ी कहानी भी दिलचस्प है.
धार्मिक कथाओं के मुताबिक, मां शैलपुत्री शैलराज हिमालय की पुत्री और माता पार्वती की स्वरूप हैं. ऐसा कहा जाता है कि एक बार माता भगवान भोले से नाराज होकर काशी चली आई थीं. उसके बाद भगवान भोलेनाथ उन्हें ढूंढते हुए काशी आए. लेकिन, देवी को ये नगरी इतनी पसंद आई कि उन्होंने वरुणा तट के किनारे ही अपना निवास बना लिया और यही विराजमान हो गईं.
सदियों पुराना है इतिहास
मंदिर के महंत गजेंद्र गोस्वामी ने बताया कि देवी का ये पीठ सदियों पुराना है और पूरे यूपी में माता शैलपुत्री देवी का एकमात्र मंदिर काशी के अलईपुर में स्थित है. स्कन्द पुराण के काशी खंड में देवी के इस प्राचीन मंदिर का जिक्र भी है. ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त श्रद्धाभाव से यहां दर्शन को आता है, देवी उनकी सभी मुरादें पूरी करती हैं.
नवरात्रि में होती है भक्तों की भीड़
वाराणसी के इस मंदिर में नवरात्रि के दिनों में भक्तों की भीड़ होती है. इसके अलावा शनिवार और मंगलवार को भी यहां भक्तों का रेला लगा होता है. माता शैलपुत्री को गुड़हल और सफेद पुष्प की माला बेहद प्रिय है. यही वजह है कि भक्त अपनी मनचाही मुरादों को पूरा करने के लिए नारियल और गुड़हल कि माला लेकर यहां दर्शन को आतें हैं. मान्यता ये भी है कि देवी के दर्शन से कुंवारी कन्याओं के विवाह की बाधा भी दूर होती है.
दिन में तीन बार होती है आरती
हर रोज भोर में 3 बजे देवी की आरती के बाद मंदिर का कपाट भक्तों के लिए खोला जाता है. इसके अलावा दोपहर में भोग आरती और रात 10 बजे देवी की शयन आरती होती है. इसके बाद मंदिर का कपाट बंद हो जाता है.
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