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परिजनों ने मरा मान कर दिया था अंतिम संस्कार, वह 30 साल बाद लौटा घर; पढ़िए बुजुर्ग की दर्दनाक दास्तां

रामकिशुन का बेजान शरीर और उस पर मौजूद निशान उसकी दर्दभरी कहानी बयां कर रहे हैं.

रामकिशुन का बेजान शरीर और उस पर मौजूद निशान उसकी दर्दभरी कहानी बयां कर रहे हैं.

Chandauli News: रामकिशुन के बेजान शरीर और उस पर मौजूद मजदूरी के निशान उनकी दर्दभरी कहानी बयां करने के लिए काफी हैं. जिस ...अधिक पढ़ें

हाइलाइट्स

ओबरा में कैंटीन चला रहे बुजुर्ग की दर्दनाक कहानी.
30 साल तक बंधक बना कर बुजुर्ग से जानवरो जैसा कराया गया काम.
पहले मुंबई बाद में वाराणसी के बाबतपुर में रखा गया, लकवा मार गया तो घर छोड़ गए लोग.

चंदौली: यूं तो आपने 90 के दशक की कई फिल्मों में खोया पाया और पुर्नजन्म की कहानियां देखीं और सुनी होंगी. लेकिन आज आपको एक ऐसी ही कहानी से रूबरू कराएंगे जो फिल्मी नहीं बल्कि वास्तविक है. जिसे देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे. दर्द और तकलीफ से भरी यह कहानी उस बुजुर्ग की है, जिन्हें 30 साल तक बंधुआ बनाकर काम कराया गया और जब उनका शरीर काम करने से जवाब दे गया उन्हें उनके घर छोड़ दिया गया. अब परिजनों को उनके लौटने की तो खुशी है, लेकिन हालत देखकर दुखी भी हैं. खास बात यह है कि इस वृद्ध को मृत मानकर परिजनों ने अंतिम संस्कार कर दिया था. अब बुजुर्ग का परिवार न्याय मांग रहा है.

रामकिशुन के बेजान शरीर और उस पर मौजूद मजदूरी के निशान उनकी दर्दभरी कहानी बयां करने के लिए काफी हैं. जिसे इस बुजुर्ग ने लगभग 30 साल तक झेला है. परिजनों ने तो 16 साल पहले उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया. 30 साल बाद जिंदा लौटे रामकिशुन मुगलसराय इलाके के लेडुआपुर गांव के रहने वाले हैं. शुरुआत में सोनभद्र जिले के ओबरा पावर हाउस की कैंटीन में नौकरी कर रहे थे. वहीं से अचानक गायब हो गए थे. पिछले सोमवार को अपने घर वापस लौट आए. हालांकि उनके शरीर के एक तरफ के अंग काम नहीं कर रहे थे.

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अपने परिवार के साथ बुजुर्ग. परिजन अब न्याय की गुहार लगा रहे हैं.

मैहर देवी दर्शन के बाद कुछ लोग बरगला कर ले गए मुंबई
परिजनों के अनुसार लगभग 30 साल पहले ओबरा में काम करने के दौरान वह मैहर देवी दर्शन करने गए. दर्शन के बाद वहां पर कुछ लोग बरगला कर इनको मुंबई ले गए. जहां एक मिठाई के कारखाने में इनको रखा गया और 15 साल तक बंधक बनाकर मजदूरी कराई गई. इस दौरान किसी तरह से रामकिशुन वहां से निकलने में कामयाब रहे और वाराणसी के कैंट स्टेशन पहुंचे. यहां से फिर इनको एक बार दोबारा वे लोग जबरन बाबतपुर एयरपोर्ट के पास एक ढाबे में ले गए और तब से वहीं बंधक बनाकर मजदूरी कराते रहे.

इस दौरान रामकिशुन को कई प्रकार की दवा देने की भी बात सामने आई है. देर रात तक इनसे काम कराया जाता था और फिर इनको दवा देकर सुला दिया जाता था. लेकिन इसी दौरान अभी कुछ दिनों पहले ही इनको बाएं तरफ लकवा मार गया. जिससे इनके एक पैर और एक हाथ ने काम करना बंद कर दिया. जिसके बाद इनको कुछ लोग एक गाड़ी पर बैठा कर उनके घर छोड़ गए.

बेटियों की चिंता में कमाने निकले थे, 30 साल बाद लौट पाए
रामकिशुन जब घर से निकले थे तो उस वक्त उनकी चार अविवाहित बेटियां थीं. जिनकी शादी की चिंता में वे कमाने निकले थे. रामकिशुन को 30 साल तक जिस नारकीय जिंदगी को जीना पड़ा है आज वह उसको अपने मुंह से बयां भी नहीं कर पा रहे हैं. जैसे-जैसे रामकिशुन को चीजें याद आ रही हैं. वह अपने परिवार को बता रहे हैं. 30 साल बाद अब जब रामकिशुन घर आए हैं तो उनकी सभी बेटियों की शादी उनके रिश्तेदारों ने मिलकर कर दी. घर से खाली हाथ निकले रामकिशुन के हाथ आज भी खाली हैं. लेकिन उनके हाथ की रेखाएं उन पर हुए जुल्म और ज्यादती की कहानी बयां कर रही हैं.

इन बीते सालों में परिवार के लोग 16 साल पहले जिंदा रामकिशुन का अंतिम संस्कार भी कर चुके है. परिवार के लोग रामकिशुन को जिंदा देखकर खुश तो हैं, लेकिन इस दौरान उन्होंने जो झेला है. परिजन उसके लिए न्याय की गुहार लगा रहे हैं. उनकी इस हालत के लिए जिम्मेदार पर कार्रवाई की मांग रहे हैं.

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