बनारसी पान अपने स्वाद के लिए विश्व में प्रसिद्ध है.
वाराणसी. कंकर- कंकर में शंकर की आस्था रखने वाले बनारसियों में हर-हर महादेव के साथ देशभक्ति भी कूट-कूट कर भरी हुई है. मुंह में पान घुलाकर बनारसी बड़े-बड़ों को चुनौती दे डालते हैं. इसलिए जंग-ए-आजादी (Freedom Fight) में न केवल बनारसी बल्कि बनारसी पान (Banarasi Pan) ने भी देशभक्ति की तान छेड़ दी थी. नतीजा एक वक्त ऐसा आया जब अंग्रेजों ने बनारसी पान पर रोक लगी दी थी.
महानायक अमिताभ बच्चन ने बनारसी पान चबाते हुए खइके पान बनारस वाला ऐसा गाया कि आज भी यह गीत लोगों की जुबान पर है. बनारसी पान के बीड़े ने आजादी के आंदोलन में फिरंगियों की चूलें हिला दी थीं. जी हां, एक समय ऐसा भी आया, जब इस पान पर रोक लगा दी गई थी.
वाराणसी की वो 130 साल पुरानी पान दुकान
कैसे बनारसी पान ने फिरंगियों की रातों की नींद उड़ा दी थी, इसे समझने के लिए आपको आना होगा वाराणसी के सबसे पुराने और व्यस्तम इलाके में. बाबा विश्वनाथ दरबार से सटे इस इलाके में चौक थाने से सटे 130 साल पुरानी पान की दुकान है. दुकान का नाम है नेताजी की पान की दुकान. इसी दुकान से एक वक्त आजादी की चिंगारी को अखबार के जरिए क्रांतिकारियों और लोगों तक पहुंचाने के लिए पान का इस्तेमाल हुआ था. उस वक्त दुकान पर रामेश्वर प्रसाद चौरसिया बैठते थे. आज दुकान पर रामेश्वर प्रसाद चौरसिया के नाती पवन चौरसिया बैठते हैं.
अंग्रेजों ने बनारसी पान पर लगा दी थी रोक
आत्मविश्वास और गौरव से भरकर पवन बताते हैं कि आज पूरी दुनिया में भले ही बनारसी पान प्रसिद्ध हो, लेकिन एक समय ऐसा भी आया था जब अंग्रेजों ने इस पर रोक लगा दी थी. पवन ने बताया कि उस वक्त उनके दादा रामेश्वर प्रसाद चौरसिया दुकान पर बैठते थे.
पवन के मुताबिक दादा जी बताते थे कि आजादी की लड़ाई के दौरान क्रांतिकारियों की हलचल काफी बढ़ चुकी थी. जिसके कारण क्रांतिकारियों का संदेश जन-जन तक पहुंचाने में बहुत दिक्कत हो रही थी. लगातार फिरंगी हुकूमत के अफसर चेकिंग करते थे. उसी समय चौक थाने के बगल में घोड़ों के लिए पानी-पीने के लिए नांद बनी थी. और नांद के बगल में थी उनकी पान की दुकान. अंग्रेजों को क्रांति बर्दाश्त नहीं हो रही थी. उस समय रणभेरी नामक अखबार क्रांतिकारियों की विचारधारा का सबसे बड़ा समर्थक बन गया था. इसी दौरान अंग्रेजों ने पान खाने से लेकर पान की बिक्री पर रोक लगा दी. फिरंगियों को शक हो गया था कि स्वतंत्रता आंदोलन में इस अखबार की भी कोई भूमिका है.
पान के दोने में घर-घर पहुंचते थे अखबार
पवन के मुताबिक, जब अंग्रेजों ने पान खाने पर रोक लगाई तो उस वक्त उनके पूर्वजों ने इसका तोड़ निकाल लिया था. वे दोने में पान रख कर उसे रणभेरी अखबार के नीचे छिपा देते थे. इस तरह से घर-घर में पान की सप्लाई करते थे. इस तरीके के कारण अंग्रेज उन्हें पकड़ नहीं पाते थे और अखबार के जरिए कांतिक्रारियों का संदेश जन जन तक पहुंच जाता था. इसलिए उस वक्त बनारसी पान ने डाकिये का रोल अदा किया.
केसरबाई के घर जुटते थे क्रांतिकारी
यही नहीं, चौक थाने से सटे दालमंडी इलाके में उनदिनों एक नर्तकी हुआ करती थीं. जिनका नाम था- केसर बाई. केसर बाई के यहां भी आजादी के मतवाले फिरंगियों के खिलाफ जुटकर योजना बनाते थे. फिरंगियों को जब इसकी खबर लगी तो उन्होंने केसर बाई के यहां छापा मार दिया. केसरबाई से जब पूछा गया कि उनके यहां क्रांतिकारी आकर जुटते हैं तो केसरबाई ने कहा कि वो पान की दीवानी है और यहां सब पान खाने आते हैं.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
Tags: Freedom fighters, Independence day, Independence day of India, Uttar pradesh news