एक पुरानी फिल्म के गीत के बोल हैं- जिसका कोई नहीं, उसका तो खुदा है यारों. कहते हैं कि भगवान भी किसी न किसी इंसान के रूप में मदद के लिए मौजूद रहता है. वाराणसी (Varanasi) में कोरोना काल (COVID-19) में कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है. इस काल में अगर किसी को कोरोना संक्रमण हो जाए तो नाते-रिश्तेदार भी पास आने से घबरा रहे हैं. उसी कोरोना काल में काशी (Kashi) का एक युवा अमन कबीर (Aman Kabir) रोज सड़कों से लेकर अस्पताल तक, घाट से श्मशान तक लोगों की मदद करते आपको दिख जाएगा. बड़ी बात ये है कि अमन ऐसे शवों का दाह संस्कार कर रहे हैं, जिनकी मौत कोरोना की वजह से हुई है.
कोरोना की दूसरी लहर में पूरे देश की तरह वाराणसी में भी हालात खराब हैं. हरिश्चंद्र घाट पर लंबी वेटिंग है तो मणिकर्णिका घाट के हालात भी ठीक नहीं. हरिश्चंद्र घाट पर कोरोना संक्रमितों के शवों का दाह संस्कार होता है. कई बार इस घाट पर डोम परिवार के सदस्यों से मृतकों के परिजन ये कहते हुए दिखाई दिए कि पैसे जितने चाहे ले लो लेकिन दाह संस्कार कर देना. उनकी यहां रुकने की हिम्मत नहीं है.
यही नहीं, एक पिता के देहांत के बाद तीन बीमार बेटियों की मदद के लिए जब कोई नहीं आया तो अमन पहुंचे और दाह संस्कार में मदद की. यही नहीं, लावारिस लाश कहीं भी मिले, 24 वर्षीय अमन पहुंचते हैं. किसी असहाय, मजलूम के इलाज से लेकर जानवरों के भी हमदर्द अमन ही हैं.
यही नहीं, अमन ने एक बाइक एम्बुलेंस भी बना रखी है, जिस पर उसने संपर्क का एक नंबर भी लिख रखा है. इस नंबर पर फोन कर मदद मांगने वालो की वह मदद भी करता है. उसके अनुसार इस कोरोना काल में उसने अभी तक लगभग 400 लोगों की मदद की है. अमन कहता है, जब तक मेरी जिंदगी है, तब तक मैं मदद करता रहूंगा.
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FIRST PUBLISHED : April 30, 2021, 07:13 IST