हाल ही में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के संस्थापक और महान स्वतंत्रता सेनानी महामना पंडित मदन मोहन मालवीय को मरणोपरांत भारत सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित किया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने महामना के सबसे बड़े बेटे रमाकांत मालवीय की बड़ी पुत्री हेम शर्मा को पुरस्कार सौंपा। उम्र ज्यादा होने के कारण हेम शर्मा सम्मान लेने के लिए खड़ी नहीं हो सकीं, इसलिए उनकी तरफ से मदन मोहन मालवीय की पौत्र-बहू सरस्वती मालवीय ने सम्मान ग्रहण किया।
92 वर्ष की सरस्वती मालवीय की शादी मदन मोदन के पोते श्रीधर से वर्ष 1940 में हुई थी। उन्होंने कहा कि भले ही वो अपने बेटे की शादी में नहीं गए थे, लेकिन वे सरस्वती और श्रीधर की शादी में दिल्ली आए थे और दोनों को आशीर्वाद भी दिया।
सरस्वती ने बताया कि जब वो 17 शाल की थी, तभी उनकी शादी हो गई थी। उन्होंने कहा कि मदन मोहन को वे लोग बाबूजी कह कर बुलाती थीं। भले ही, उनका घर इलाहाबाद में था, लेकिन वो अपने बड़े बेटे के साथ बनारस में रहते थे और हम लोग इलाहाबाद में।
अपनी यादों को ताजा करते हुए सरस्वती ने बताया कि बाबूजी महिला सशक्तिकरण पर बहुत गंभीर थे, इसलिए वे हमेशा अपनी सभी पुत्र वधु से उनकी पढ़ाई के बारे में बात किया करते थे। उन्होंने बताया कि जब मेरी बेटी हुई तब बाबूजी इलाहाबाद में ही थे। उन्होंने कहा कि 'सरस्वती की गोद में वीणा आ गई है'। तभी मेरी बेटी का वीणा रखा गया।
उन्होंने बताया कि उस समय बेटी होना लोगों के लिए शाप था, लेकिन बाबूजी के शब्दों में रस था। वे बहुत ही साधारण इंसान थे। उन्हें साधारण भोजन ही पसंद था, जैसे- दाल और रोटी, लेकिन उन्हें दूध बहुत ही ज्यादा पसंद था।
सरस्वती ने कहा कि मदन मोहन मालवीय का निधन वर्ष 1946 में बनारस में हुआ था। उनका कहना था की मेरी मौत बनारस में ना हो, क्योंकि लोग कहते हैं कि अगर बनारस में जिसकी मौत होती है वो फिर पैदा नहीं होता। वे कहते थे कि मैं चाहता हूं कि मेरा दूसरा जन्म हो, मुझे गरीब लोगों के लिए फिर से सेवा करने का मौका मिल सके।
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FIRST PUBLISHED : April 04, 2015, 14:48 IST