अभिषेक जायसवाल
वाराणसी: उस्ताद बिस्मिल्लाह खान (Ustad Bismillah Khan) जिनके शहनाई के धुन का हर कोई कायल था. देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इसके शहनाई की गूंज हर किसी को दीवाना बना देती थी. शहनाई के सम्राट भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को ये तमगा बनारस (Banaras) के कारण ही मिला. बिस्मिल्लाह खान हर दिन काशी में गंगा स्नान के बाद गंगा तट पर स्थित बालाजी मंदिर में बैठ घण्टों रियाज किया करते थे.
21 मार्च 1916 को बिहार के डुमरांव जिले में जन्मे उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का नाम कमरुद्दीन खान था. लेकिन उनके दादा ने उन्हें बिस्मिल्लाह का नाम दिया था. जन्म के बाद वो काशी आ गए और फिर काशी में भी उन्होंने शहनाई की साधना कर उस्ताद का तमगा हासिल किया.
16 साल की साधना
बिस्मिल्लाह खान के पोते आफाक हैदर ने बताया कि उनके दादा हर दिन सुबह गंगा स्नान के बाद मंगला गौरी की पूजा और फिर बालाजी मंदिर में बैठकर शहनाई की साधना करते थे. करीब 16 साल तक वो इस जगह पर रियाज किया और शहनाई की धुन को फर्श से अर्श तक पहुंचाकर पूरे दुनिया में काशी और भारत का मान बढ़ाया.
मामू के साथ जाते थे विश्वनाथ मंदिर
बचपन में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान अपने मामू अली बक्श के साथ काशी विश्वनाथ मंदिर में जाया करते थे. उनके चाचा मन्दिर में शहनाई की धुन बजाते थे और वो उन्हें देखा करतें थे. करीब 6 साल की उम्र में पहली बार उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने शहनाई को बजाना शुरू किया था और फिर सालों रियाज कर वो इसके सम्राट बन गए. आज भी उनके परिवार में उनके पोते ने इस विधा से जुड़े है.
लोगों ने यूं किया याद
आज उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की 107वीं जयंती है और उनके जयंती पर लोग उन्हें याद कर रहें है. वाराणसी के सिगरा स्थित फातमान पर बने उनके कब्र पर लोगों ने फातिया पढ़ उन्हें याद किया. इस दौरान उनके परिवार वालो के अलावा समाज के अलग अलग वर्ग से जुड़े लोग वहां उन्हें पहुंच श्रद्धा सुमन अर्पित किया.
मिले हैं ये नामचीन अवार्ड
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को साल 2001 में भारत रत्न से नवाजा गया. इसके अलावा उन्हें पद्मश्री, पद्म विभूषण,पद्म भूषण, संगीत नाटक अकेडमी फेलोशिप के अलावा कई पुरस्कार मिले.
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