उत्तराखंड आपदा पर पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश का ट्वीट, बीती बातें याद करने के सिवा...

रविवार को चमोली क्षेत्र में अलकनंदा नदी की एक धारा ने तबाही मचाते हुए ऋषिगंगा और तपोवन-विष्णुगाड हाइड्रो प्रोजेक्ट्स को पूरी तरह बहा दिया. फाइल फोटो
Jairam Ramesh on Uttarakhand Disaster: रिपोर्ट में ग्लेशियर टूटने की संभावित जगह के बारे में कहा गया है कि 7120 मीटर ऊंची त्रिशूल चोटी से थोड़ा नीचे 5600 मीटर की ऊंचाई पर ग्लेशियर टूटा हो सकता है.
- News18Hindi
- Last Updated: February 12, 2021, 12:55 AM IST
नई दिल्ली. उत्तराखंड में ग्लेशियर टूटने से मची तबाही (Uttarakhand Glacier Disaster) पर पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने ट्वीट कर अपना पक्ष रखा है. उन्होंने माइक्रो ब्लॉगिंग साइट पर एक रिपोर्ट शेयर करते हुए लिखा, "पर्यावरण मंत्री के तौर पर अलकनंदा, भागीरथी और उत्तराखंड की अन्य नदियों पर बनने वाले हाइड्रो-इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स को इकोलॉजिकल कारणों से रोकने पर मेरी काफी आलोचना हुई. लेकिन, हम उस समय इन प्रोजेक्ट्स के इकोलॉजिकल प्रभाव का आकलन नहीं कर पा रहे थे. अब मैं कुछ नहीं कर सकता, बीती बातों को याद करने के सिवा." जयराम रमेश द्वारा शेयर की रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्लेशियर टूटने से उत्तराखंड में कितनी तबाही हुई और उस क्षेत्र में कितने प्रोजेक्ट को प्रोजेक्ट्स को नुकसान हुआ है. दरअसल रविवार को चमोली क्षेत्र में अलकनंदा नदी की एक धारा ने तबाही मचाते हुए ऋषिगंगा और तपोवन-विष्णुगाड हाइड्रो प्रोजेक्ट्स को पूरी तरह बहा दिया. इसके साथ ही जोशीमठ, रैणी और रिंगी गांव में भी काफी तबाही हुई है.
रिपोर्ट में ग्लेशियर टूटने की संभावित जगह के बारे में कहा गया है कि 7120 मीटर ऊंची त्रिशूल चोटी से थोड़ा नीचे 5600 मीटर की ऊंचाई पर ग्लेशियर टूटा हो सकता है. इस घटनाक्रम में ग्लेशियर का एक बड़ा हिस्सा टूटकर पानी और पत्थर के रूप में नीचे गिरा होगा और बाद में यह हिम तूफान बाढ़ में बदल गया होगा. बाढ़ में बर्बाद प्रोजेक्ट की बात करें तो ऋषिगंगा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट 13.2 मेगावाट का था और रैणी गांव के पास बन रहा था. वहीं 520 मेगावाट का एनटीपीसी तपोवन-विष्णुगाड प्रोजेक्ट धौलीगंगा पर बन रहा था और यह पूरी तरह तबाह हो गया है.
बाढ़ के चलते जोशीमठ, तपोवन गांव, रिंगी गांव, रैणी गांव भी प्रभावित हुए हैं. इन गांवों में हुई तबाही की बात करें तो जोशीमठ में आर्मी का कंट्रोल रूम प्रभावित हुआ है. तपोवन गांव से दो लोग लापता हैं, रिंगी गांव से भी दो लोग लापता हैं और रैणी गांव से 5 लोगों के लापता होने की खबरें हैं. इस गांव में आर्मी के दो कॉलम की तैनाती की गई है. बता दें कि धौलीगंगा नदी उत्तराखंड के सबसे बड़े ग्लेशियल लेक वसुंधरा ताल से निकलती है और आगे चलकर गंगा नदी में मिल जाती है.
बता दें कि उत्तराखंड आपदा में लोगों की मदद के लिए राहत और बचाव कार्य जोरों से चल रहा है. अभी तक 30 से ज्यादा शव बरामद किए गए हैं, जबकि 200 से ज्यादा लोग लापता हैं.
रिपोर्ट में ग्लेशियर टूटने की संभावित जगह के बारे में कहा गया है कि 7120 मीटर ऊंची त्रिशूल चोटी से थोड़ा नीचे 5600 मीटर की ऊंचाई पर ग्लेशियर टूटा हो सकता है. इस घटनाक्रम में ग्लेशियर का एक बड़ा हिस्सा टूटकर पानी और पत्थर के रूप में नीचे गिरा होगा और बाद में यह हिम तूफान बाढ़ में बदल गया होगा. बाढ़ में बर्बाद प्रोजेक्ट की बात करें तो ऋषिगंगा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट 13.2 मेगावाट का था और रैणी गांव के पास बन रहा था. वहीं 520 मेगावाट का एनटीपीसी तपोवन-विष्णुगाड प्रोजेक्ट धौलीगंगा पर बन रहा था और यह पूरी तरह तबाह हो गया है.
बाढ़ के चलते जोशीमठ, तपोवन गांव, रिंगी गांव, रैणी गांव भी प्रभावित हुए हैं. इन गांवों में हुई तबाही की बात करें तो जोशीमठ में आर्मी का कंट्रोल रूम प्रभावित हुआ है. तपोवन गांव से दो लोग लापता हैं, रिंगी गांव से भी दो लोग लापता हैं और रैणी गांव से 5 लोगों के लापता होने की खबरें हैं. इस गांव में आर्मी के दो कॉलम की तैनाती की गई है. बता दें कि धौलीगंगा नदी उत्तराखंड के सबसे बड़े ग्लेशियल लेक वसुंधरा ताल से निकलती है और आगे चलकर गंगा नदी में मिल जाती है.
बता दें कि उत्तराखंड आपदा में लोगों की मदद के लिए राहत और बचाव कार्य जोरों से चल रहा है. अभी तक 30 से ज्यादा शव बरामद किए गए हैं, जबकि 200 से ज्यादा लोग लापता हैं.