पंचेश्वर बांधः पर्यावरणीय रिपोर्ट में क्या छुपा रही है सरकार?

अल्मोड़ा में जनसुनवाई के दौरान प्रशासन को लोगों के तीखे विरोध का सामना करना पड़ा.
- News18India
- Last Updated: August 18, 2017, 12:44 PM IST
दुनिया के सबसे बड़े दूसरे पंचेश्वर बांध निर्माण से प्रभावित होने वाले उत्तराखण्ड की तीन ज़िलों मे जनसुनवाई का तीसरा और अंतिम चरण गुरुवार को पूरा हो गया. तीनों स्थानों पर अधिकारियों को कम-ज़्यादा विरोध झेलना पड़ा. और अब सवाल उठ रहे हैं कि सरकार इस मामले में क्या छुपाना चाहती है?
एशिया का सबसे बड़ा बांध पंचेश्वर में बनने जा रहा हैं जिसके डूब क्षेत्र में उत्तराखंड के तीन ज़िले चंपावत, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा के इलाक़े आएंगे. इसे लेकर पहले चंपावत, फिर पिथौरागढ़ और गुरुवार को अल्मोड़ा में जनसुनवाई हुई. लेकिन किसी भी जगह प्रशासन और परियोजना से जुड़े लोगों ने पर्यावरणीय रिपोर्ट सावर्जनिक नहीं की?
अब पर्यावरण विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं कि पर्यावरणीय जन सुनवाई हो रही हैं तो उनमें विस्थापन पर ही ज़ोर क्यों दिया जा रहा है?
पर्यावरण विशेषज्ञ विमल भाई पूछते हैं कि जब पर्यावरणीय जन सुनवाई थी, तो पर्यावरण की रिपोर्ट सार्वजनिक क्यों नहीं की गयी? क्या पर्यावरण मंत्रालय ने ऐसा कोई रिपोर्ट दी है, जिससे जन आंदोलन हो सकता है?परियोजना अधिकारी पर्यावरण रिपोर्ट को उचित पटल पर रखने का दावा कर रहे हैं. लोग पूछ रहे हैं कि जब उचित पटल पर ही रिपोर्ट रखनी थी तो जन सुनवाई क्यों की गई?
पूर्व स्पीकर और जागेश्वर विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल भी अल्मोड़ा की जनसुनवाई में शामिल हुए. जनसुनवाई पूरी होने के बाद उन्होंने भी इस पर स्वाल उठाये और बड़े बांधों का विरोध करते हुए पर्यावरणीय रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की.
पंचेश्वर बांध की जनसुनवाई में प्रभावितों की बात न सुने जाने को लेकर दायर एक याचिका पर नैनीताल हाई कोर्ट ने राज्य और केन्द्र को भी नोटिस दिया है. अब पर्यावरणीय रिपोर्ट सामने न रखे जाने का सवाल उठने पर एक विवाद और शुरू हो गया है.
एशिया का सबसे बड़ा बांध पंचेश्वर में बनने जा रहा हैं जिसके डूब क्षेत्र में उत्तराखंड के तीन ज़िले चंपावत, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा के इलाक़े आएंगे. इसे लेकर पहले चंपावत, फिर पिथौरागढ़ और गुरुवार को अल्मोड़ा में जनसुनवाई हुई. लेकिन किसी भी जगह प्रशासन और परियोजना से जुड़े लोगों ने पर्यावरणीय रिपोर्ट सावर्जनिक नहीं की?
अब पर्यावरण विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं कि पर्यावरणीय जन सुनवाई हो रही हैं तो उनमें विस्थापन पर ही ज़ोर क्यों दिया जा रहा है?
पर्यावरण विशेषज्ञ विमल भाई पूछते हैं कि जब पर्यावरणीय जन सुनवाई थी, तो पर्यावरण की रिपोर्ट सार्वजनिक क्यों नहीं की गयी? क्या पर्यावरण मंत्रालय ने ऐसा कोई रिपोर्ट दी है, जिससे जन आंदोलन हो सकता है?परियोजना अधिकारी पर्यावरण रिपोर्ट को उचित पटल पर रखने का दावा कर रहे हैं. लोग पूछ रहे हैं कि जब उचित पटल पर ही रिपोर्ट रखनी थी तो जन सुनवाई क्यों की गई?
पूर्व स्पीकर और जागेश्वर विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल भी अल्मोड़ा की जनसुनवाई में शामिल हुए. जनसुनवाई पूरी होने के बाद उन्होंने भी इस पर स्वाल उठाये और बड़े बांधों का विरोध करते हुए पर्यावरणीय रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की.
पंचेश्वर बांध की जनसुनवाई में प्रभावितों की बात न सुने जाने को लेकर दायर एक याचिका पर नैनीताल हाई कोर्ट ने राज्य और केन्द्र को भी नोटिस दिया है. अब पर्यावरणीय रिपोर्ट सामने न रखे जाने का सवाल उठने पर एक विवाद और शुरू हो गया है.