हिना आज़मी
देहरादून. कई फिल्मों की कहानी बयां करने वाले सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल अब खुद खामोश होकर फनाह होने लगे हैं. सिनेमा का इतिहास आजादी से पहले का है एक जमाना था, जब राजधानी देहरादून में फिल्मों का इतना क्रेज था कि बच्चे, युवा और बुजुर्ग हर उम्र के लोग अपने दोस्तों-परिवार के साथ सिनेमा हॉल जाया करते थे लेकिन बदलते वक्त और तकनीकी क्रांति का पहिया कुछ ऐसा घूमा की लोगों ने धीरे-धीरे सिनेमाघरों से मुंह मोड़ लिया. देहरादून में मनोरंजन का एकमात्र साधन बने सिनेमा हॉल कभी फिल्मों की कहानी दिखाया करते थे जो आज खुद खंडहर में तब्दील होकर कहानी बनकर रह गए हैं.
देहरादून में कभी 13 सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल हुआ करते थे, जिनमें से सिर्फ 4 ही हॉल बचे हैं. बढ़ते मॉल कल्चर के चलते मल्टीप्लैक्स के जादू ने सिनेमाघरों के आकर्षण को खत्म कर दिया. नतीजन, सिनेमाघर खंडहरों में तब्दील हो गए. देहरादून में कनक, लक्ष्मी टॉकीज, प्रभात और पायल जैसे सिनेमा हॉल बंद हो गए हैं.
देहरादून के रहने वाले वह लोग जो स्कूल-कॉलेज के बाद अपने दोस्तों के साथ सिनेमा हॉल जाया करते थे, आज भी उस दौर को याद कर बात करते हुए मुस्कुरा देते हैं.
खत्म होते सिनेमाघरों से दुकानदारों पर भी पड़ा बुरा असर
नरेंद्र मधुबन बताते हैं कि हम स्कूल से पिक्चर देखने आया करते थे. एक दिन हम स्कूल बंक करके फ़िल्म देखने आए तो पीछे हॉल में पिता जी ही बैठे थे. इतना बोल कर नरेंद्र मधवाल हंस पड़े.
पायल सिनेमाघर के टूटने के बाद आसपास के दुकानदारों पर भी इसका बुरा असर पड़ा है. पायल सिनेमा घर के नजदीक पिछले 40 सालों से दुकान चलाने वाले तरनजीत कोहली ने बताया कि एक वक्त था जब सिनेमा घर में पैर रखने की जगह नहीं मिलती थी. टिकट के लिए लंबी-लंबी लाइने लगती थीं. बहुत अच्छा काम चलता था लेकिन कुछ सालों से कारोबार मंदा हो गया. अब तो सिनेमाघर के टूटने से यहां लोग नहीं आएंगे.
मल्टीप्लेक्स सिनेमा थिएटर के बढ़ते चलन के चलते सिंगल स्क्रीन सिनेमा पूरी तरह से खत्म होता दिखाई दे रहा है. देहरादून के जो सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर कभी खचाखच भरे रहते थे, वहां आज 10-15 लोग भी आ जाएं तो बड़ी बात है.
लॉकडाउन के बाद आए तंगहाली के दिन
सिंगल स्क्रीन सिनेमा एसोसिएशन के उपाध्यक्ष और छायादीप सिनेमा हॉल के मालिक शिराज खान ने बताया कि हमारा घर-बार इन सिनेमाघरों पर ही चलता था लेकिन आज यह सुनसान पड़े हैं. उन्होंने बताया कि आजकल लोग मॉल के मल्टीप्लेक्स थिएटर में ही फिल्में देखना पसंद करते हैं, जिससे हमारे कारोबार पर बुरा असर पड़ा है. बड़ी फिल्में बेहद महंगी होने के चलते खरीद नहीं पाते हैं लेकिन छोटी भोजपुरी फिल्मों से ही खर्च निकाला जाता था लेकिन अब लॉकडाउन के बाद यह पूरी तरह बंद हो गया है.
उनका कहना है कि हमने लॉकडाउन में भी लाइसेंस फीस दी. इससे पहले भी हम हर टिकट के हिसाब से टैक्स दिया करते थे लेकिन अब जबकि सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों के हाल बदतर हो गए हैं, तो सरकार इन पर ध्यान नहीं दे रही है और इससे प्राइवेट व विदेशी कॉरपोरेट्स को ही बढ़ावा मिल रहा है.
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