रिपोर्ट: रोहित भट्ट
अल्मोड़ा: प्रदेश की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा अपनी अनूठी संस्कृति के लिए जानी जाती है. यहां की होली का भी अपना अलग ही महत्व है. यहां पौष महीने के पहले रविवार से बैठकी होली का गायन शुरू हो जाता है. अल्मोड़ा के हुक्का क्लब में देर शाम से ही होली गायन होने लगता है, जिसमें सबसे पहले गुड़ से लोगों का मुंह मीठा कराया जाता है और उसके बाद बैठकी होली की शुरुआत की जाती है. इसमें नगरवासी भी आकर खूब आनंद लेते हैं.
अल्मोड़ा शहर की बैठकी होली काफी प्रसिद्ध है. इस होली में लोग शास्त्रीय संगीत पर आधारित होली गीत गाते हैं. बताया जाता है कि बैठकी होली करीब 150 साल से गाई जाती है. साल 1860 में इस होली की शुरुआत की गई थी, जो अलग-अलग रागों पर आधारित थी. इसमें तबला और हारमोनियम के साथ लोग सुर में सुर मिलाते हैं. एक व्यक्ति होली गीत गाता है, उसके बाद उसी गाने को लोग राग में गाते हैं. हालांकि, पहले जैसी रंगत अब नहीं है. लोगों का कहना है कि नई पीढ़ी में पर्व को लेकर क्रेज कम है.
1860 से प्रथा की शुरुआत
वरिष्ठ रंगकर्मी त्रिभुवन गिरि महाराज ने बताया कि अल्मोड़ा की बैठकी होली काफी पुरानी है. माना जाता है कि होली की यह प्रथा राजदरबार से निकलकर समाज के बीच आई है. उन्होंने बताया जैसे अल्मोड़ा की रामलीला साल 1860 से शुरू हुई थी, उसी तरीके से यह भी माना जा सकता है कि अल्मोड़ा की बैठकी होली भी उसी समय की रही होगी.
धीरे-धीरे कम हो रहा है रुझान
स्थानीय निवासी दीप जोशी ने बताया कि वह पांच-छह सालों से हुक्का क्लब में आ रहे हैं. बचपन से ही अपने परिवार में बैठकी होली गायन सुनते हुए आ रहे हैं, लेकिन, बैठकी होली का रुझान अब धीरे-धीरे कम हो रहा है. जो पुराने लोग हैं, वहीं परंपरा को चला रहे हैं. शास्त्रीय संगीत सीखने के लिए आपको अपना समय देना पड़ता है और. बैठकी होली के रागों को बैठकर और सुनकर ही आप सीख सकते हैं.
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