2002 के पहले विधानसभा चुनाव में कुंजवाल ने यहां से पहली बार विधायक की कुर्सी अपने नाम की थी.
रिपोर्ट – सुष्मिता थापा
बागेश्वर. 2022 के विधानसभा चुनाव को लेकर पूरे उत्तराखंड में सरगर्मियां हैं, तो उसकी आंच बागेश्वर तक भी पहुंच ही रही है. देहरादून में गुरुवार को राहुल गांधी की रैली में कांग्रेस पार्टी ने 50 हज़ार से ज़्यादा समर्थकों को जुटाने का दावा किया. यह भी बताया कि उत्तराखंड के कई ज़िलों से समर्थक बड़ी संख्या में पहुंचे, जिनमें बागेश्वर का भी नाम रहा. लेकिन बागेश्वर विधानसभा सीट पर कांग्रेस की एकजुटता का इतिहास तो बताता ही है कि यहां क्यों भाजपा पिछली तीन बार से काबिज़ रही है, वहीं मौजूदा हालात भी साफ संकेत कर रहे हैं कि यहां कांग्रेस को अपनी अंदरूनी समस्याओं से जल्द निपटना होगा.
विधानसभा चुनाव 2022 की तैयारियां ज़िले में तेज़ हो गई हैं. बागेश्वर में भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस अपनी रणनीति पर काम तो कर रही है, लेकिन उसके भीतर की मुश्किलें फिलहाल कितनी सुलझ सकी हैं, इस पर सवालिया निशान ही है. एक नज़र में देखें तो उत्तराखंड बनने के बाद बागेश्वर विधानसभा सीट पर अब तक 4 बार चुनाव हुए हैं और भाजपा को तीन तो कांग्रेस को सिर्फ एक बार जीत मिली है. उत्तराखंड में भले ही हर बार सरकार बदली हो, लेकिन 2007 से अब तक भाजपा के चंदन राम दास ही विधायक के तौर पर यहां काबिज़ हैं. क्या इस बार कांग्रेस कोई बदलाव ला पाएगी?
बागेश्वर में पहले चुनाव में कांग्रेस के रामप्रसाद टम्टा जीते थे. उसके बाद दूसरे, तीसरे और चौथे चुनाव में चंदन राम दास ने जीत की हैट्रिक लगाई. भाजपा की हैट्रिक में कांग्रेस की गुटबाज़ी का बड़ा हाथ रहा. बागेश्वर सीट पर कांग्रेस में जिस तरह अंतर्कलह है, वह उसके लिए खतरे की घंटी अब भी है. जानकार कह रहे हैं कि पार्टी ने अपनी समस्याओं को जल्द न समेटा तो भाजपा तो दूर वह अपनों से निपटने में ही ‘खप’ जाएगी.
2007 में भाजपा के दास 17,614 मतों के साथ जीते थे. 2012 में फिर दास 23,396 मत पाकर जीते. 2017 में तीसरी बार फिर भाजपा ने दास पर ही भरोसा किया और जनता ने उन्हें 33,792 वोट देकर विधानसभा पहुंचाया. हर बार भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ता दिखा. जानकारों का मानना है कि कांग्रेस को बागेश्वर विधानसभा में अब तक कोई मज़बूत नेता नहीं मिला, जो कार्यकर्त्ताओं को संगठित कर पार्टी को आगे ले जा सके.
एक तरफ़ ज़िले की कपकोट विधानसभा में जिस तरह पूर्व विधायक ललित फर्स्वाण ने पार्टी को संगठित किया है, उससे कांग्रेस ने भाजपा के लिए ज़बरदस्त चुनौती का माहौल बना दिया है. वहीं, बागेश्वर में फिलहाल कांग्रेस के लिए जल्द गुटबाज़ी से निजात पाना ही लक्ष्य बना हुआ है.
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